
कालीबाड़ी में 'सिंदूर खेला' (Photo Source- Patrika)
Vijayadashami 2025 :दुर्गा पूजा के समापन के बाद अकसर माता पांडालों से आंसुओं के साथ खुशी की मुस्कान का अनोखा संगम देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश में मां दुर्गा को बेटी के समान विदा किया जाता है। लेकिन, राजधानी भोपाल के न्यू मार्केट के कालीबाड़ी में हर बार की तरह इस बार भी बंगाली परम्परा का संगम भी देखने को मिला। यहां माता की पूजा के साथ बंगाली महिलाओं ने 'सिंदूर खेला' की भावुक रस्म भी निभाई। इस परम्परा के तहत महिलाओं ने सिंदूर से होली खेली। इसे सुहाग की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख की कामना का प्रतीक माना जाता है। खास बात ये है कि, गुरुवार को आयोजित सिंदूर खेला कार्यक्रम में हर साल की तरह इस साल भी अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली भी शामिल हुईं।
आपको बता दें कि, इस परंपरा को न सिर्फ बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है, जिसमें हृदयस्पर्शी विदाई का वो क्षण देखने को मिलता है, जहां लाल सिंदूर आंसुओं को रंगीन बना देता है। इस साल का आयोजन 'ऑपरेशन सिंदूर' को समर्पित रहा, जो परंपरा के संरक्षण का संदेश देता है। आयोजन में नव्या नवेली अपनी नानी जया बच्चन की बहन नीता भादुड़ी के साथ आयोजन में पहुंची थी। आपको बता दें कि, जया बच्चन का मायका भोपाल में है।
सिंदूर खेला दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, विजयादशमी पर खेली जाने वाली भावपूर्ण रस्म है, जिसे 'सिंदूर की होली' भी कहते हैं। विवाहित महिलाएं पारंपरिक लाल-सीधी सफेद साड़ियों में सजकर मां दुर्गा के चेहरे पर पान के पत्तों से सिंदूर लगाती हैं, मानो अपनी सखी को विदा कर रही हों। फिर, वे आपस में सिंदूर मलकर एक-दूसरे के माथे, गालों और कंधों पर लगाती हैं। इस खेल की शुरुआत हंसी-ठिठोले से होती है, लेकिन जैसे जैसे मां दुर्गा की विदाई का समय करीब आता है एकाएक माहौल भावुक होने लगता है। देखते ही देखते हर महिला की आंखों से आंसू बहने का सिलसिला शुरु हो जाता है, जो बेहद भावुक कर देने वाला पल है।
यह रस्म पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्रार्थना भी मानी जाती है, जो बंगाली संस्कृति में 400 साल पुरानी है। माना जाता है कि, मां दुर्गा हर साल मायके आती हैं और सिंदूर खेला उनकी भावुक विदाई का प्रतीक है।
भोपाल की दक्षिणेश्वर कालीबाड़ी में यह रस्म बड़े धूमधाम से निभाई गई। महिलाओं ने माँ दुर्गा को मिठाई और पान अर्पित कर भोजन कराया, फिर ढोल-नगाड़ों पर धुनुची नृत्य किया, जहां जलती धुनची में नारियल जलाते हुए नृत्य करतीं महिलाएं आग की लपटों में अपनी भक्ति उड़ेलती दिखीं। विदाई के क्षण में हर आंख नम हो गई, क्योंकि मूर्ति विसर्जन के साथ मां का प्रस्थान हो जाता है। इस आयोजन ने समुदाय में प्रेम और एकता का संदेश दिया, जहां युवा पीढ़ी भी जुड़कर परंपरा को जीवंत कर रही है। 'रंग-रस-रीति' थीम पर सजे पंडालों में बंगाली संस्कृति की झलक मिली।
Published on:
02 Oct 2025 02:47 pm
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