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गोंड कलाकृतियां समुदाय के स्वभाव और रहन-सहन की खुली किताब

मानव संग्रहालय में करो और सीखो संग्रहालय शैक्षणिक कार्यक्रम

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भोपाल। मानव संग्रहालय में करो और सीखो संग्रहालय शैक्षणिक कार्यक्रम के तहत गोंड चित्र कला पर सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें पारम्परिक गोंड चित्रकार रामङ्क्षसह उर्वेती प्रतिभागियों को इस कला की बारिकियां सीखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह चित्रकला लोककथाओं तथा आदिवासी परम्पराओं पर आधारित है। इनमें असल दुनिया व कल्पना की दुनिया की झलक मिलती है। कोइतूर या गोंड, प्रधान जनजाति जैविक रूप से प्रकृति से जुड़े होने के कारण सभी देवी-देवता प्रकृति के सभी रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी कारण गोंड जनजाति के लोग अलौकिक शक्तियों पर ज्यादा विश्वास करते हैं क्योकि ये संरक्षक देवता सभी तरह के नुकसान से रक्षा करते है।

गोंड चित्रकारी में विशिष्ठ छवियां
उर्वेती ने बताया कि गोंड चित्रकारी में गीत, नृत्य, लोकगाथाएं, किवदंतियां, रीति-रिवाज, धार्मिक कृत्यों का प्रकृति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण सभी गोंड चित्रों में मोर, शेर, भालू, मगर, मछली जैसे जीव-जंतु और नदी, पहाड़, खेत, पेड़ ही चित्रों के विषय होते हैं। कैनवास पर रेखाओं और बिन्दुओं के सहारे बहुरंगी रूप देकर विशिष्ठ छवि बनाई जाती है।

प्राकृतिक चीजों से बनाते हैं रंग
उन्होंने बताया कि गोंड चित्रकारी में बिंदुओं से रेखा खींचकर एक-दूसरे को जोड़कर चित्र बनाते हैं। प्राय: इसे घरों के दीवार या फर्श पर बनाया जाता था। पाटनगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले रंगों का उपयोग चित्रों में किया जाता है। इसमें सेम के हरे पत्ते से हरा रंग, पलाश के फूल से पीला, कोयले से काला, सफेद छुई मिट्टी से सफेद रंग, ङ्क्षसदूर से लाल और नील से नीला रंग बनाकर चित्र को आकार देते हैं।