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यादेंः दो ख्वाहिशें अपने सीने में दबा ले गए हबीब दा, आज भी लोग करते हैं याद

patrika.com भोपाल के थियेटर आर्टिस्ट हबीब तनवीर की पुण्य तिथि के मौके पर बता रहा है उनसे जुड़े कुछ किस्से...

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भोपाल

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Manish Geete

Jun 08, 2020

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भोपाल। आखिरी वक्त में भी हबीब तनवीर ऊर्जा से लबालब थे। वे लगातार काम कर रहे थे। थियेटर, आर्ट और जनता के लिए। कभी थकान उनके इर्दगिर्द भी नहीं फटकती थी। वर्ष 1959 में हबीब तनवीर ने भोपाल में नए थिएटर की नींव रखी। जो आज भी चल रहा है। उन्हें शौहरत भोपाल के भारत भवन ने दिलाई। उनके नाटक 'चरणदास चोर' ने उन्हें थियेटर से लेकर बालीवुड का स्टार बना दिया। इस नाटक को लोग आज भी याद करते हैं।

patrika.com भोपाल के थियेटर आर्टिस्ट हबीब तनवीर की पुण्य तिथि के मौके पर बता रहा है उनसे जुड़े कुछ किस्से...


यह कम ही लो जानते होंगे कि वे हबीब अपने सीने में कई बातें दफन कर ले गए, वहीं कई ख्वाहिशें अधूरी छोड़ गए। थिएटर के इस महान नायक हबीब का निधन 8 जून 2009 को भोपाल में ही हुआ था।


दो ख्वाहिशें जो रह गईं अधूरी
पहली: हबीब दा के वालिद यानी पिता चाहते थे कि वे एक बार पेशावर जरूर जाएं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में हबीब साहब ने अपनी इस ख्वाहिश का जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि उनके अब्बा चाहते थे कि वे पेशावर के ऑडिटोरियम में कुछ पेश करें। वहां के चप्पली कबाब जरूर खाएं।

दूसरी: अफगानिस्तान के लोक कलाकारों के साथ एक वर्कशॉप करना। 1972 में सरकार की ओर से उन्हें फरमान मिला कि मालूम करो कि काबुल में थियेटर वर्कशॉप हो सकती है कि नहीं। तब बन्ने भाई सज्जाद जहीर के साथ काबुल पहुंचे थे। कहवा पीते हुए हमने काबुल में थियेटर की बातें कीं। वहां जबरदस्त लोक थियेटर है। अफगान की तवायफों का नाच लगातार चलता है, पर एक गम था वो ये कि वहां हालात थिएटर के लायक नहीं थे।

रायपुर में हुआ था जन्म
रंगमंच को नई सूरत देने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर (85) साल की उम्र में गुजर गए। उनका जन्म छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 1 सितम्बर 1923 को हुआ था। जबकि उनकी मृत्यु 8 जून 2009 को भोपाल में हुई। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) आदि शामिल है। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी।

उनका पूरा नाम हबीब अहमद खान था, लेकिन कविता लिखनी शुरू की तो अपना तखल्लुस 'तनवीर' रख लिया। उसके बाद हबीब तनवीर के नाम से मशहूर हुए। हबीब ने पत्रकार की हैसियत से कॅरियर शुरू किया था। रंगकर्म तथा साहित्य की अपनी यात्रा के दौरान कुछ फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं और उनमें अभिनय भी किया।

रायपुर के लौरी म्युनिसिपल स्कूल से मैट्रिक पास की थी औरनागपुर के मौरिश कालेज से BA किया। हबीब की MA प्रथम वर्ष की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई। केवल 22 साल का यह लड़का 1945 में मुंबई चले गया। उन्होंने आकाशवाणी में काम करने लगा। इस दौरान कुछ हिन्दी फिल्मों के गीत भी लिखे।

ब्रिटिश शासन में जेल भी गए हबीब
मुंबई में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ की सदस्यता ले ली और इप्टा का प्रमुख हिस्सा बन गए। ऐसा समय आया जब इप्टा के प्रमुख सदस्यों को ब्रिटिश राज के खिलाफ काम करने के लिए गिरफ्तार किया गया था और तब इप्टा की बागडोर हबीब को सौंपी गई थी। वर्ष 1954 में वह दिल्ली आ गए और उन्होंने कुदमा जैदी के हिन्दुस्तान थिएटर के साथ काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान वह बच्चों के थिएटर से भी जुड़े रहे और कई नाटक लिखे। इसी दौर में उनकी मुलाकात कलाकार और निर्देशिका मोनिका मिश्रा से हुई और बाद में उनकी पत्नी बन गई।

भोपाल में बनाया नया थियेटर
वर्ष 1959 में हबीब तनवीर ने भोपाल में नए थिएटर की नींव रखी। जो आज भी चल रहा है। हबीब उस समय विवादों में आ गए थे जब 90 के दशक में उन्होंने धार्मिक ढकोसलों पर आधारित नाटक 'पोंगा पंडित' बनाया था। नाटक का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों ने विरोध किया था। भोपाल गैस त्रासदी की एक फिल्म में भी उन्होंने भूमिका निभाई थी। उनकी पत्नी मोनिका मिश्रा का 28 मई 2006 को निधन हो गया था। तभी से वे एकाकी जीवन जी रहे थे। अंततः मृत्यु 8 जून 2009 को उन्होंने भोपाल में अंतिम सांस ली थी।