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जब पापाजी को मेरे क्रिकेट प्रेम के बारे में पता चला तो उन्होंने तंदूर में जला दी थी मेरी पूरी किट

भोपाल उत्सव मेला समिति की ओर से रवीन्द्र भवन मुक्ताकाश मंच पर आयोजित 'एक शाम सूफी गीतों के नाम' में परफॉर्म करने आए लखविंदर वडाली

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भोपाल

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Vikas Verma

Jan 24, 2019

Lakhwinder Wadali

Lakhwinder Wadali

भोपाल। मेरा म्यूजिक में आने का कोई इरादा नहीं था लेकिन परिवार में माहौल के चलते मैं बचपन से ही गाताथा। दरअसल, मेरे बड़े बहन-भाई ने गाना नहीं सीखा तो ऑटोमैटिकली यह मेरे पास आ गया। मुझे तो क्रिकेट का शौक था, मैं इसमें ही आगे जाना चाहता था लेकिन मेरा यह पैशन ज़्यादा लम्बा नहीं चल पाया। किक्रेट पर ज़्यादा ध्यान था जिस कारण मैं रियाज नहीं कर पाता था। एक दिन जब पापाजी को मेरे क्रिकेट प्रेम के बारे में पता चला तो उन्होंने मेरी पूरी किट तंदूर में जला दी थी।

यह कहना है सूफी संगीत के रब कहे जाने वाले वडाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले लखविंदर वडाली का। लखविंदर पद्मश्री उस्ताद पूरनचंद वडाली के बेटे हैं। बुधवार को वे भोपाल उत्सव मेला समिति की ओर से रवीन्द्र भवन मुक्ताकाश मंच पर आयोजित 'एक शाम सूफी गीतों के नाम' में परफॉर्म करने आए थे। इस दौरान उन्होंने पत्रिका से विशेष बातचीत की। यह पहला मौका था जब लखविंदर भोपाल में परफॉर्म कर रहे थे।

पहलवानी मेरे बस की बात नहीं थी

लखविंदर ने बताया कि मैं बहुत दुबला-पतला सा था तो पापाजी कहते थे कि अखाड़े में थोड़ा सेहत बना तो मैं शौकिया तौर पर पहलवानी के लिए चला गया। वहां मेरे साथ का एक कमजोर सा बंदा था जिसे मैं अक्सर पकड़ कर गिरा दिया करता था लेकिन एक दिन मेरा पाला एक तगड़े बंदे से पड़ गया, उसने मुझे खूब रुलाया, इसके बाद मैंने मान लिया कि यह मेरे बस की बात नहीं है और कभी अखाड़े की शक्ल नहीं देखी।

पापाजी नहीं होते थे तो लोग मुझसे ही गाना सुनकर जाते थे

लखविंदर ने बताया कि जब मैं स्कूल में था तब से ही पापाजी ने मेरा रियाज शुरू करा दिया। बचपन में गाना गाने के चलते कई किस्से भी हुए। हमारे घर जब कोई गाने वाले आते थे तो मैं उनकी खूब आवभगत करता था और इसके बाद मैं उनको गाना सुनाता था। इसके बाद वो लोग गाना सुनाते थे। कई बार तो ऐसा ही कि पापाजी से मिलने कुछ लोग बहुत दूर से आते थे और पापाजी घर नहीं होते थे तो वो कहते थे कि बड़े उस्ताद नहीं तो आप ही सुना दो, तो मैं बिना मन के भी गाना सुनाया करता था।

कमर्शियल तड़का लगाकर गाने को सूफी के नाम पर बेचने की कोशिश

लखविंदर ने बताया कि हमारा गांव गुरु की वडाली है, जहां सिख धर्म के छठवें गुरु हरगोविंद साहब का जन्म हुआ था। मैंने अपनी शुरुआती पढ़ाई वहीं से की। इसके बाद अपने गुरु और पिता पूरनचंद वडाली जी से ही म्यूजिक की ट्रेनिंग ली, अभी मैं तीसरी जेनरेशन के तौर पर लोगों को सूफी म्यूजिक से रूबरू करा रहा हूं। दरअसल, सूफी म्यूजिक एक तरह की वाणी है, जिसमें अपने गुरु की सच्चे शब्दों की प्रार्थना की जाती है। सामान्यत: बॉलीवुड में आने वाले स्लो या सैड सॉन्ग को कई लोग सूफी मान लेते हैं। कमर्शियल का तड़का लगाकर जिसे सूफी बोला जाता है असल में वो उस गाने को सूफी के नाम पर बेचने का तरीका है।

नए अंदाज में पेश करेंगे तू माने या ना माने...

लखविंदर बताते हैं कि बॉलीवुड एक बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है। इससे हम ज़्यादा लोगों तक पहुंच सकते हैं, पापाजी और चाचाजी को भी हर एज ग्रुप के बीच पॉपुलर करने में बॉलीवुड की अहम भूमिका रही है। अब मैं और पापाजी 'तू माने या ना माने' गाने को एक बार फिर नए अंदाज में लेकर आ रहे हैं, जल्द ही यह गाना आपको टी-सीरीज की किसी फिल्म में सुनाई देगा। लखविंदर ने कहा कि पहले मुझे लगता था कि पुराने गानों को रीक्रिएट या रीमिक्स नहीं करना चाहिए लेकिन अब लगता है गानों को रीक्रिएट या रीमिक्स करने से जेनरेशन गैप को खत्म कर सकते हैं क्योंकि आज से 30 साल पहले आए गानों को मौजूदा पीढ़ी से रूबरू कराने के लिए यह सबसे सही जरिया है।

गाना ही है एक सच्चे कलाकार की खुराक

लखविंदर ने कहा कि वडाली ब्रदर्स की वो जोड़ी बहुत बड़ी और अमर है, उसकी जगह कोई नहीं ले सकता। पापाजी कहते हैं कि एक सच्चे कलाकार की खुराक गाना ही है, अगर यह अधूरा छोड़ दिया तो उनके लिए अच्छा नहीं होगा। जब तक लोगों को हमारा साथ अच्छा लगेगा तब तक हम गाना गाएंगे। लखविंदर बताते हैं कि मैं पंजाबी के अलावा बॉलीवुड, सोलो एल्बम, पापाजी के साथ उनके अंदाज में कव्वाली भी करता हूं। भोपाल में शो के लिए पहली बार आया हूं, इससे पहले मैं पापाजी के साथ दो बार आ चुका हूं, हालांकि तब मैं एक दर्शक और श्रोता के तौर पर आया था।

सूफियाना अंदाज में हुए भोपाल वासियों से रूबरू

रवींद्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर लखविंदर वडाली बड़े ही सूफियाना अंदाज में भोपाल वासियों रूबरू हुए। दर्शकों को कई बार लखविंदर में वडाली ब्रदर्स की झलक नजर आई। भोपाल उत्सव मेला समिति के इस आयोजन के तहत लखविंदर ने संतों के सूफी गीत और हिंदी गाने पेश किए। भोपाल इस दौरान लखविंदर ने जुगनी, याद तेरी, सजदा, तेरा इश्क, रांझना, आंख से आंख मिलाओ, मैं तेरी कमली रमली, बलमा, चरखा और वडाली ब्रदर्स का फेसम तू माने या ना माने दिलदारा जैसे गीत सुनाए। लखविंदर सूफी के साथ ही रोमांटिक गीतों, गजल, भजन के लिए फेमस हैं। उनके संगीत में क्लासिकल और मौजूदा ट्रेंड का समावेश सुनने को मिलता है। आलाप और तान उनके संगीत की खासियत है।

कोरस : मिंटू, सुभाष सिंह, अजय कुमार, जसपाल सिंह, गुरुप्रीत सिंह
तबला : अशोक कुमार
ढोलक : राकेश कुमार
ऑक्टोपैड : रजिन्दर कुमार
की-बोर्ड : राहुल आनंद
मैनेजर : योगेश बंसल