
राइट टू कम्युनिकेशन जरूरी पर राइट टू क्लीन एयर सबसे बड़ा मानवाधिकार... ये सनद रहे
श्याम सिंह तोमर
भोपाल. सरकार और उसकी अधिकार संपन्न एजेंसियों की नाक के नीचे बेतरतीब शहरीकरण और सुखद जीवन की चाहत रखने वाले समाज के बीच अधिकारों की जंग जारी है। कमाई की होड़ और आपाधापी के इस दौर में अक्सर ये देखने में आ रहा है कि सरकारी हो या प्राइवेट सेक्टर सेवा प्रदाता ही अधिकारों पर कैंची चला देते हैं और आम आदमी मन मसोस कर रह जाता है। ऐसे में जरूरत है अपने अधिकारों के बारे में जागरुक रहने की। बदलते दौर में अधिकारों का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है। जैसे शुद्ध वायु, जल और प्रकाश का अधिकार... जिसे समग्रता में शुद्ध वातावरण भी कह सकते हैं, उसके लिए संघर्ष बढ़ा है। इसी तरह से निर्बाध इंटरनेट सेवा जिसे राइट टू कम्युनिकेशन कहा जाता है, वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। राइट टू लिव विथ डिग्नटी यानी सम्मान के साथ जीवनयापन या जीना भी मानव अधिकार है, जिसकी रक्षा हर हाल में करनी है। मध्य प्रदेश में मानव अधिकारों की तस्वीर बनिस्बत साफ है लेकिन ये और उज्ज्वल और धवल हो सकती है अगर सरकारी एजेंसियां सक्रियता रखें। ये लगातार तत्पर रहकर अपना हिस्से का काम ईमानदारी से करती रहें। ये कहना है मध्य प्रदेश मानवाअधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन का। मानवाधिकार दिवस पर विशेष साक्षात्कार में जस्टिस जैन ने ऐसे ही तमाम ज्वलंत और जीवंत विषयों पर खुलकर अपने विचार रखे। बताया कि आयोग अपना काम बखूबी कर रहा है। कई बार देरी से प्रकरण आयोग के संज्ञान में आ पाते हैं अत: आम आदमी जागरूक बने ताकि कोई उनके अधिकारों को नजअंदाज ना कर सके। पढि़ए इस साक्षात्कार के अंश...
सवाल- बदलते दौर में नए क्षेत्रों में भी मानवाधिकार के संरक्षण की जरूरत महसूस हो रही है, रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से जागे अब निर्बाध इंटरनेट सेवा, स्वस्थ मनोरंजन, गगनचुंबी इमारतों के बीच हवा, पानी औ रोशनी जैसे बीसियों नए विषय आम आदमी के लिए संघर्ष का पर्याय बन गए हैं?
जवाब- बदलते परिदृश्य में नए क्षेत्रों में भी ध्यान दिया जा रहा है। इंटरनेट कम्युनिकेशन यानी संवाद के लिए बेहद जरूरी है। आजकल हर गतिविधि इससे जुड़ी हुई है, जिसकी अगर निर्बाध आपूर्ति न हो या कंपनियों के प्लान हद से ज्यादा महंगे होकर आम पहुंच से दूर हो जाएं तो कैसे काम चलेगा। इसीलिए राइट टू कम्युनिकेशन प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।
सवाल- सम्मान के साथ जीवन जीने को मिले, ये भी बेहद जरूरी है... लेकिन भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में गाहे-बगाहे इस पर अतिक्रमण होता दिखाई देता है?
जवाब- संविधान के आर्टीकल 21 में जीने का अधिकार वह भी ससम्मान शामिल है। इसके लिए आयोग में राइट टू लिव विथ डिग्नटी पर फोकस किया जाता है। सम्मान के साथ जीवन जीना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
सवाल- मध्य प्रदेश, राजस्थान हो या फिर देश का कोई अन्य राज्य बच्चों और महिलाओं के अधिकारों के मामलों में भी लगातार इजाफा हो रहा है, मप्र में आपके कार्यकाल के दरमियान कई मामले तो आपके पास भी पहुंचे?
जवाब- ये सच है कि बच्चों और महिलाओं के अधिकारों के हनन के मामले हर राज्य में लगातार आ रहे हैं लेकिन उसके लिए स्वतंत्र रूप से काम करने वाले बाल संरक्षण अधिकार आयोग और महिला आयोग हैं। हमने मध्य प्रदेश में रहते हुए बाल और महिला अधिकारों के कई मामलों में संज्ञान लिया, उनमें जवाब तलब किया। पीडि़तों को राहत दिलाने वाले कदम भी उठाए। पर मेरा मानना है कि इस दिशा में समाज जागरण के प्रयास होना चाहिए... लगातार होना चाहिए।
सवाल- क्या आम आदमी अभी अपने अधिकारों को लेकर जागरुक नहीं है?
जवाब- मैं यह मानता हूं कि आम आदमी इतना जागरूक होना चाहिए उसे पता हो कि अगर उसे मानवाअधिकारों का हनन हो रहा है या ऐसा कोई प्रयास कर रहा है तो आयोग में शिकायत करें। उससे आगे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खुला है। संवैधानिक और मूल अधिकारों का संरक्षण आवश्यक है।
सवाल- मानवाधिकारों को लेकर मध्य प्रदेश की तस्वीर कैसी लगी, सरकार के प्रयासों से आप संतुष्ट हैं?
जवाब- मध्य प्रदेश में मानवाधिकारों की स्थिति ठीक है... लेकिन बेहतरीन की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। आयोग इस दिशा में हर प्रतिवेदन पर त्वरित कार्यवाही के फॉर्मूले को अपनाए हुए है। जेल और पुलिस कस्टडी में मौत के मामलों पर तत्काल संज्ञान लिया जाता है... कंप्लाइंस भी किया।
सवाल- वैसे अगर देखा जाए तो मध्य प्रदेश को अब किस दिशा में ध्यान देना चाहिए?
जवाब- 13 सितंबर को मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग का स्थापना दिवस होता है। इस साल इस कार्यक्रम को मुख्या वक्ता की मांग पर 11 सितंबर रविवार को किया गया। इसमें शुद्ध वायु का अधिकार का विषय मुखर रहा। सभी विशेषज्ञों और कानूनविदों ने इसे सबसे बड़ा अधिकार माना। ये सभी को सनद रहे।
आयोजन के बाद एक किताब जिसका शीर्षक शुद्ध वायु का अधिकार... मानवाधिकार है, उसे प्रकाशित किया गया।
सवाल- हवा, पानी, ध्वनि, प्रकाश... इनका प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, आम आदमी का सुख-चैन भी प्रभावित हो रहा है?
जवाब- यूएनओ और केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए गाइडलाइन और कानून बनाए गए हैं। राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निकाय जैसी एजेंसियां हैं, लेकिन उनका सिस्टम ऐसा हो कि वे स्वत: सक्रिय रहें और अपना काम ईमानदारी से करें। बदलते समय के साथ इसकी जरूरत महसूस हो रही है।
मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग में पिछले पांच साल की तस्वीर... शिकायतें और निराकरण
वर्ष---वर्षारंभ में शिकायतें---वर्ष के दौरान मिली शिकायतें---शिकायतों का निपटान--- लंबित शिकायतें
2018-2019---4195---9422---10291---3326
2019-2020---3326---9651---9842---3135
2020-2021---3135---8677---9014---2798
2021-2022---2798---8821---9129---2490
2022-2023---2490---4135---3819---2806 (नोट- 30 नवंबर 2022 तक की स्थिति)
Published on:
10 Dec 2022 11:34 pm
बड़ी खबरें
View Allभोपाल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
