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मैंने रामायण नहीं पढ़ी, इसलिए सोनाक्षी और मैं कन्फ्यूज हुए थे

भोपाल में उमंग मेले में शामिल होने आई रूमा देवी ने केबीसी को लेकर हुई ट्रोलिंग पर दी सफाई

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मैंने रामायण नहीं पढ़ी, इसलिए सोनाक्षी और मैं कन्फ्यूज हुए थे

मैंने रामायण नहीं पढ़ी, इसलिए सोनाक्षी और मैं कन्फ्यूज हुए थे

भोपाल. मैंने रामायण नहीं पढ़ी। बचपन से ही अभाव देखा। गांव में जब तक बिजली और टीवी पहुंची तब मुझे मौका नहीं मिला। यह कहना है राजस्थान के बाड़मेर की रूमा देवी का, जो हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा के साथ सवाल पर अटककर जबरदस्त ट्रोल हुईं थीं। सवाल था कि हनुमानजी किसके लिए संजीवनी बूटी लेकर आए थे? वह भोपाल हाट में आयोजित नाबार्ड के उमंग मेले के समापन कार्यक्रम में आई थीं। उन्होंने बताया कि केबीसी में वो 11वां सवाल था। जवाब के चार विकल्प सुग्रीव, लक्ष्मण, सीता और राम में से मेरे मन में लक्ष्मण था, लेकिन हम दोनों ही कन्फ्यूज थे। उन्होंने बताया कि 2011 में मैं जर्मनी अपने साथ आटा लेकर गई। वहां खाना बनाती थी। वहां के लोगों ने भारतीय व्यंजन की मांग की। जब मैंने परोसा तो उन्हें पसंद आया। पाक की कुछ महिलाओं को जब पता चला कि मैं भारतीय हूं तो वे खुश हुईं।

अमिताभ सर के सुझाव से शुरू किया रूमी देवी ब्रांड
रूमा देवी ने बताया कि कौन बनेगा करोड़पति से जब कॉल आया तो पहले मुझे यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन जब सोनाक्षी सिन्हा के साथ स्टेज शेयर किया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अमिताभ ने मुझे शूट के दौरान कहा कि आपका एक ब्रांड होना चाहिए। उन्होंने कहा अब तो आप खुद भी एक ब्रांड बन गई हैं, आप अपने नाम से ब्रांड बना सकते हैं और पूरे भारत में स्टोर होने चाहिए। अब हमने रूमा देवी के नाम से अपने स्टॉल्स लगाना शुरू कर दिए हैं।

पहली कमाई 10 रुपए की थी
रूमा ने बताया कि जब मैं पांच साल की थी तो मां का निधन हो गया। पिता ने दूसरी शादी कर ली और मुझे चाचा के पास छोड़ दिया। वहां मैंने 8वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद परिवार ने पढ़ाई छुड़वा दी। शादी के बाद भी ससुराल में अभाव के चलते मुझे समझौता करना पड़ता। मैंने 2006 में 10 महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह शुरू किया। हर महिला से 100 रुपए लिए। इससे सेकंड हैंड सिलाई मशीन खरीदी और हम लोगों ने कपड़ा, धागा और प्लास्टिक के पैकेट्स खरीदकर कुशन और बैग बनाए। हम लोगों को उसी गांव में ग्राहक मिल गए और फिर हमारा बिजनेस चल पड़ा।

22 हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
रूमा ने अपनी लाइफ जर्नी शेयर करते हुए बताया कि उनके स्वसहायता समूहों से करीब 22 हजार महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। उनकी खुद की शादी 17 साल की उम्र में हो गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और स्वयं सहायता समूह बनाकर छोटे स्तर से काम शुरू किया। अपने गांव सहित 3 जिलों के 75 गांव में 22 हजार महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता दिलाई। उनके कारण बाड़मेर, बीकानेर और जैसलमेर की महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर खुद के पैर पर खड़ी हो गई हैं। उन्हें 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार मिल चुका है।