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धर्म ध्यान के बिना शांति संभव नहीं, इसके लिए शुभ विचार होना जरूरी: आचार्य आर्जव सागर महाराज

अशोका गार्डन जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास प्रवचन के दौरान आचार्य ने कहा कि अशुभ भावों एवं बुरे विचारों से अशुभ ध्यान होता है। केवल आसन लगाने से धर्म ध्यान नहीं होगा।

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धर्म ध्यान के बिना शांति संभव नहीं, इसके लिए शुभ विचार होना जरूरी: आचार्य आर्जव सागर महाराज

धर्म ध्यान के बिना शांति संभव नहीं, इसके लिए शुभ विचार होना जरूरी: आचार्य आर्जव सागर महाराज

भोपाल.धर्म ध्यान के बिना जीवन में शांति कभी संभव नहीं और उसके लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है, ताकि एकाग्रता में सक्षमता आ पाए और इसके लिए शुभ विचारों का होना जीवन में जरूरी है। अशोका गार्डन जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास प्रवचन में यह बात आचार्य आर्जव सागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि केवल हाथ पर हाथ रखकर, आसन जमाकर बैठने से ध्यान नहीं होता। धर्म ध्यान केवल एकाग्रता से किया जा सकता है। क्योकि ध्यान का अर्थ भावना और विचार की एकाग्रता है। शुभ भावनाओं और शुभ विचारों से धर्म ध्यान होता है, जबकि अशुभ भावों एवं बुरे विचारों से अशुभ ध्यान होता है ।

ध्यान का अर्थ भावना और विचार की एकाग्रता है
आचार्य ने कहा केवल आसन लगाने से धर्म ध्यान नहीं होगा, इसके लिए मन पर विजय प्राप्त करना होगी। बुरी भावनाओं एवं अशुभ विचारों से बचने के लिए हम एक निश्चित समय में उचित स्थान पर विशेष आसन में बैठकर ध्यान लगाते हैं, लेकिन मन को तत्व चिंतवन में लगाना आवश्यक है, क्योकि जिसने मन को नियंत्रित कर लिया उसी ने सबकुछ पाया है। प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

जब संस्कारों का क्षरण होता है, तभी संस्कृति लुप्त होती है
आचार्य ने संस्कार और संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब संस्कारों का क्षरण होता है, तभी संस्कृति लुप्त होती है। यदि संस्कार पावन बने रहे तो फिर संस्कृति की महानता सबको सुख-शांति देती रहेगी। अच्छे संस्कारों से ही संस्कृति को बचाया जा सकता है, इसलिए इसकी रक्षा करें। आचार्य ने कहा कि चाहे भगवान आदिनाथ के जन्म हो या श्रीराम का हो, हमें उनके जीवन से कुछ ना कुछ अच्छाइयां जरूर गृहण करनी चाहिए।