
कारगिल विजय दिवस : जरा याद करो कुर्बानी, जिन्होंने जंग में दुश्मन को धूल चटा दी
भोपाल.भारतीय सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम से 26 जुलाई के ही दिन दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए करगिल पर फतह हासिल की थी। आज ( kargil vijay diwas 2019 ) करगिल विजय दिवस 2019 के 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस अवसर पत्रिका प्लस ऐसे जांबाज ऑफिसर्स ( Kargil war hero ) से आपको रू-ब-रू करा रहा हैं,
जो वतन की रक्षा के लिए दिन-रात दुश्मनों के सामने चट्टान की तरह डटे रहते हैं। एक ओर दुश्मन की गोलियां बरस रही थीं, तो दूसरी ओर सर्द मौसम परीक्षा ले रहा था। हमारी सेना के ये ऑफिसर्स अपनी जान की परवाह किए बगैर वहां डटे रहे और दुश्मन को खदेड़ दिया।
रात के अंधेरे में चलते दिन में छुप जाते
उन दिनों में मेरी पोस्टिंग बारमुला में थी। हमारी टीम की जिम्मेदारी करगिल जा रहे फोर्स और हैवी वेपेंस की सुरक्षा करना था। चोटी पर बैठा दुश्मन करगिल, द्रास और सियाचीन जाने वाले मार्ग को टारगेट किए था। यदि यह रास्ता बंद हो जाता, तो सेना के लिए रसद और हथियार पहुंचाना मुश्किल हो जाता। मैं प्लाटून कमांडर था। मैं और मेरी टीम के 40 सदस्य अपने मिशन में लगे थे।
वहां सुरक्षा करना भी आसान नहीं था, क्योंकि सिर्फ रात में ही मूवमेंट हो सकती थी। हम टॉर्च या अन्य कोई भी रोशनी उपयोग नहीं कर सकते थे, क्योंकि ऐसा करने में पर दुश्मन को हमारा मूवमेंट पता चल जाता। हम अपने पांव में रस्सी बांधकर चढ़ाई करते थे।
अंधेरे और बारिश के बीच भी हमारी जाबांज साथी हिम्मत नहीं हारे। जैसे ही सबेरा होता, हमें किसी पहाड़ी की आड़ लेना होती थी। क्योंकि दिन की रोशनी में वो हमें आसानी से हीट कर सकते थे। हमारी टीम को खाना भी रात के समय ही मिलता था। बोफोर्स गन की मदद से ओपनिंग पार्टी का रोल अदा करते थे।
- कैप्टन मुश्ताक खान
हम बमबारी में आगे बढ़ते गए और कई टॉरगेट ध्वस्त कर दिए
बतौर कैप्टर मेरी पोस्टिंग 315, आर्टिलरी फील्ड रेजीमेंट में थी। हमें हिल पर दुश्मनों का पता लगाकर उन्हें बर्बाद करना था। 14 मई 1999 को हमने कूच करते हुए द्रास सेक्टर में घुमरी के पास शाम 4.30 बजे चढ़ाई शुरू की। कुछ ही समय में बमबारी होने लगी। हमें दुश्मनों की संख्या का भी अंदाजा नहीं था। हिल से पहले एक नाला पड़ता है, जो बर्फ से जमा था।
हमें उसके पास टैंट और खाना पकाने के निशान दिखाई दिए। रात हमने उसी बर्फ पर गुजारी। सुबह फिर बमबारी हुई। हमने भी फायरिंग की, तो उधर से रूक गई, जिससे हमें उनकी लोकेशन का अंदाजा हो गया। हम दूसरे रास्ते से तीसरे दिन पिछले हिस्से में पहुंचे। यहां जमी हुई झील थी।
हमारा प्लान था कि रात को अटैक कर रसद लाइन काट दी जाएगी। चांदनी रात में उन्होंने अटैक किया। पांच जवान शहीद हो गए। उनका टाइगर हिल पर कब्जा था। अगले दिन रात तक बमबारी चली। हमारी एक टीम आगे बढ़ती और दूसरी बमबारी करती। हमने कई टारगेट पूरी तरह से ध्वस्त कर दिए।
- कर्नल ओपी मिश्रा
फायरिंग के बीच तैयार किया अस्पताल
मे री पोस्टिंग उन दिनों सिलिगुड़ी में 116, इंजीनियरिंग रेजिमेंट में थी। हमारी टीम को करगिल मूव किया गया। वहां हमें टास्क दिया गया कि आपकी टीम को घायल जवानों के इलाज के लिए अस्पताल बनाना है। हमारी टीम को इससे पहले एक हैलिपेड का निर्माण करना था, क्योंकि अस्पताल बनाने के लिए जेसीबी को इसी से लाया जाना था।
खुले एरिया के कारण हमारी टीम पर अक्सर फायरिंग होती रहती थी। हमारे एक ऑफिसर भी फायरिंग में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। फायरिंग के बीच भी निर्माण कार्य बंद नहीं होता, क्योंकि हमें अपनी जान से ज्यादा हमारे सैनिक साथियों की जान की चिंता थी। चंद दिनों में ही हमने हेलिपैड और अस्पताल तैयार मिशन को पूरा किया।
- लांस हवलदार यासिन अहमद कुरैशी
Published on:
26 Jul 2019 09:38 am
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