
भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से आंचलिक बोलियों में लोक नाट्यों पर केन्द्रित तीन दिवसीय पहचान समारोह का प्रसारण ऑनलाइन किया जा रहा है। पहले दिन मालवांचल की माच शैली में लोकनाट्य राजा विक्रमादित्य की प्रस्तुति हुई। प्रस्तुति का निर्देशन उज्जैन की कृष्णा वर्मा ने किया। मालवा का लोक नाट्य माच विशेष गायकी और अभिनय के लिए जाना जाता है। खुले मंच की इस शैली में सभी रूपों, लोक गीतों, लोक वार्ताओं, लोक नृत्यों और लोक संगीत का समावेश होता है। माच की एक विशिष्ट अभिनय शैली है, इसमें कलाकार के सुर-ताल के साथ अभिनय का विशेष महत्व है।
नाटक में दिखाया गया कि एक बार राजा विक्रमादित्य के नगर में एक नट आता है जो अपनी कलाएं और करतब आकाश में दिखाता है उसे देख राजा प्रभावित होते हैं। राजा नट से उसकी विद्या के बारे में पूछते हैं तो वह कहता है कि यह विद्या उनके गुरु ही सिखा सकते हैं। राजा नगर के एक ब्राह्मण को लेकर गुरु के पास जाते हैं। विक्रमादित्य और ब्राह्मण को देख गुरु कहते हैं कि यह विद्या सीखने के लिए बहुत तपस्या करनी होगी। यह सुनते ही दोनों कहते हैं कि विद्या सीखने के लिए वे हर एक चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।
राजा के शरीर में प्रवेश कर जाता है ब्राह्मण
दोनों काया पलट विद्या में दक्षता हासिल कर नगर में लौटते है। ब्राह्मण विद्या के जरिए राजा की आत्मा को हाथी और तोते के शरीर में प्रवेश करा देता है और खुद राजा के शरीर में अपनी आत्मा को प्रवेश करा देता है। जब वह विक्रमादित्य के महल में जाता है तो प्रजा और महारानी को शंका होती है कि महाराज का व्यवहार बदल क्यों गया। एक दिन एक व्यापारी तोता लेकर महल के पास बेचने के लिए आता है। उस तोते में महाराज की आत्मा होती है। उसे देख महारानी काफी प्रसन्न होती है। महारानी अपनी दासियों से उस तोते को खरीदने की बात कहती है। कुछ दिन बाद तोते की मृत्यु हो जाती है तो महारानी राजा को बुलाकर उसे जिंदा करने की बात कहती हैं। अंत में राजा की आत्मा उनमें वापस लौटती हैं और तोते में ब्राह्मण की आत्मा को डालकर उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है।
Published on:
10 Sept 2021 11:32 pm
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