
बंगाल में जेलों में पाक कैदियों की सुरक्षा बढ़ाई
भोपाल। जेल विभाग ने राजधानी सेंट्रल जेल पर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदियों का जीवन संवार दिया है। जेल महकमे ने अच्छे आचरण वाले कैदियों के लिए खुली जेल (ओपन जेल) की सौगात दी है। मप्र में सबसे पहले ओपन जेल की शुरूआत वर्ष 2009 में होशंगबाद से की गई थी, यहां 20 कैदी अपने परिवार के साथ सुकून का जीवन बिता रहे हैं।
बाहरी सामान पर जल्द हटेगा प्रतिबंध
राजधानी सेंट्रल जेल पर बुधवार दोपहर खुली जेल का शुभारंभ गृह एवं जेल मंत्री बाला बच्चन और सहकारिता संसदीय क्षेत्र मंत्री डॉ.़ गोविंद सिंह ने किया। इस दौरान भोपाल सांसद आलोक संजर, जेल डीजी संजय चौधरी और खुली जेल में रहने वाले 9 कैदियों के परिजन मौजूद रहे। अगले पड़ाव में ग्वालियर सेंट्रल जेल पर ओपन जेल बनाई जाएगी। इधर, गृह एवं जेल मंत्री ने कहा कि सिमी जेल ब्रेक के बाद बाहरी सामान पर जो प्रतिबंध लग गया था, उसे जल्द ही हटाया जाएगा। सख्त चैकिंग के बाद सामान को अंदर भेजा जाएगा।
क्या है ओपन जेल
ओपन जेल का मतलब स्वतंत्र आवास। जिसमें एक बेडरूम, एक हॉल, किचन और लेट-बॉथ है, जो एक कैदी परिवार को रहने के लिए दिया गया है। इसमें कैदी अपनी हैसियत के मुताबिक सुविधाएं घटा-बढ़ा सकता है। परिवार को पालने के लिए कैदी जेल से बाहर जाकर रोजगार कर सकता है। इसके लिए जेल विभाग द्वारा एक परिचय पत्र जारी किया जाएगा और शहर के अंदर जिस कंपनी में कैदी काम करेगा वहां की पूरी जानकारी जेल विभाग के पास रहेगी। यदि कैदी बाहर काम करने नहीं जा सकता तो उसे जेल के भीतर ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था की गई है।
खाानदानी लड़ाई का 'दंशÓ झेल रहा परिवार, चौपट हो गया कारोबार
यह बात उन दिनों की जब मैं कक्षा 12वीं की पढ़ाई कर आगे की पढ़ाई के लिए इंदौर जाने वाला था। फेब्रीकेशन का कारोबार था, लेकिन परिवार खानदानी लड़ाई का दंश झेल रहा था। वर्ष 1993-94 में मेरे चाचा की हत्या कर दी गई। चाचा जी की हत्या का बदला लिया गया, जिसमेंं मेरे साथ भाई पिता समेत 9 आरोपी बने। दादाजी भी इस दंश से अछूते नहीं रहे। आज दादाजी की उम्र करीब 90 साल है, वे उज्जैन जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। मेरा एक बेटा 8 साल का और बेटी चार साल की है।
मैं अपने बच्चों को अब अच्छी तालीम देकर उन्हें अपने साथ रखूंगा और मेहनत की दम पर उनका सपना पूरा करूंगा। यह जेल विभाग की मेहरबानी है, जो मेरे साथ मेरे परिवार का जीवन संवार दिया। यह कहना है 32 साल के शाजापुर जिले के बड़ी पोलाय निवासी कय्यूम खान का। कय्यूम खान अब खुली जेल में अपने बेटा-बेटी और पत्नी के साथ रह सकेगा और एक रिश्तेदार के यहां करोंद में जाकर फेब्रीकेशन का काम करेगा, जिससे गृहस्थी चलाएगा।
तनिक क्षण के गुस्से ने पहुंचा दिया सलाखों के पीछे
ग्राम हुलाखेडी सिरोंज जिला विदिशा निवासी 50 वर्षीय आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदी रामबाबू शर्मा का कहना है कि वर्ष 2008 में मेरे पड़ोसी ने बडे भाई जगदीश शर्मा का पैर तोड़ दिया। परिवार के लोग जमा हुए और तनिक क्षण भर के गुस्से में उस युवक की हत्या कर दी, जिसने बड़े भाई का पैर तोड़ दिया। आज उस गुस्से पर पछतावा होता है, क्योंकि उसमें मेरे बड़े भाई समेत छोटे चारों भाई और पिताजी आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। मेरे अच्छे चाल-चलन के चलते मुझे यह मौका मिला, जिससे मैं परिवार के साथ रहकर शेष सजा काट सकूंगा। मैं जेल परिसर के बाहर हाथ-ठेला लगाकर आलू बड़े बनाउंगा, जिससे अपना परिवार चला सकूंगा। मुझे जेल विभाग की तरफ से एक हाथ-ठेला और पूरा राशन मुहैया कराया गया है।
चेन्नई तक प्रसिद्ध हैं मिट्टी के तोते
ग्राम अमौधा गंजबासौदा निवासी 45 वर्षीय आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे विजय अहिरवार बताते हैं कि उनके परिवार के हाथों में एक हुनर है, जिसकी दूसरे राज्यों तक प्रसिद्धि है। वह हुनर है छोटे से पिंजरे के अंदर मिटटी के तोते बनाना। जमीनी लड़ाई के चलते आज वह सलाखों के पीछे हैं, चाचा को साथ में सजा पड़ी। जबकि अगस्त 2018 से उनके दो भाई भी आजीवन कारावास की सजा में जेल के अंदर आ गए हैं। अब वह अपनी पत्नी धनबाई और बेटे संजू के साथ मिट्टी के तोते बनाएंगे, जिन्हें बेटा भोपाल के साथ दूसरे राज्यों में बेचने जाएगा।
Published on:
07 Mar 2019 09:30 am
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