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साबुन के काम से बेहतर होने लगी जिंदगी तो नाम रख दिया आजीविका, बच्चों का जीवन सुधरा, कई परिवारों को मिली रोजी रोटी

- 2017 से चंद महिलाओं ने शुरू किया था घर से साबुन बनाना, 10 रुपए से आज 25 रुपए पहुंचा साबुन- अच्छी आय से जब सुधरने लगी जिंदगी तो साबुन का नाम ही आजीविका रख दिया, आज 14 सदस्य जुड़े

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साबुन के काम से बेहतर होने लगी जिंदगी तो नाम रख दिया आजीविका, बच्चों का जीवन सुधरा, कई परिवारों को मिली रोजी रोटी

साबुन के काम से बेहतर होने लगी जिंदगी तो नाम रख दिया आजीविका, बच्चों का जीवन सुधरा, कई परिवारों को मिली रोजी रोटी

भोपाल. मैं ममता कुशवाहा, गुनगा पंचायत की रहने वाली हूं। शुरू से ही छोटे काम की शुरूआत कर उसे ऊंचाइयों पर ले जाने का सपना था। लेकिन स्थिति ऐसी नहीं थी कि कुछ कर सकूं। आय के साधन सीमित हुए तो लगा अब कुछ करना होगा। बस यहीं से कुछ लोगों के साथ मिलकर घर से ही साबुन बनाना शुरू कर दिया। 55 हजार की पूंजी से कच्चा माल लाकर महिलाओं ने मिलकर काम शुरू कर दिया। कुछ सांचे और जरूरी सामान भी खरीदा। साबुन में खुश्बू के लिए कुछ सेंट की जरूरत भी हुई। इसके बाद घर से ही काम शुरू कर दिया। पहले लगा पता नहीं कैसे साबुन बिकेंगे। लेकिन पंचायत में घर-घर से डिमांड आई तो साबुन की बिक्री शुरू हुई। धीरे-धीरे कर साबुन के बारे में और गांव के लोगों को पता चला तो डिमांड और बढ़ती चली गई। काम बढ़ा तो हम लोगों ने और कच्चा माल बढ़ाकर उत्पादन बढ़ा दिया। धीरे-धीरे स्व सहायता समूह की स्थापना कर दी गई। करीब 14 महिलाएं आज स्व सहायता समूह से जुड़ चुकी हैं। आजीविका का साधन बढऩे से समूह और साबुन का नाम आजीविका ही रख दिया। आज पंचायत ही नहीं, शहर से सटी कई दुकान और शहर में भी साबुन की डिमांड आती है। कई परिवार तो उनके यहां से ही साबुन खरीद कर ले जाते हैं। इस काम में उनके पति भी मदद करते हैं। बाजार से कच्चा माल लाने और बने हुए माल को बाजार में बेचने के लिए लोगों से सम्पर्क भी करते हैं।

सैनेटरी पैड भी बनाने शुरू कर दिए
ममता ने बताया कि महिलाओं की आजीविका बढ़ी तो समूह में और आमंदनी बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे गु्रप बनाकर एक ग्रुप को सैनेटरी पैड बनाने में लगा दिया। तो एक अन्य ग्रुप को अचार पापड़ बनाने में। धीरे-धीरे कर आजीविका स्व सहायता समूह का जो नाम रखा था, काम ठीक वैसे ही शुरू हो गया। ममता ने बताया कि इससे होने वाली आय से न केवल उनके परिवारों का अच्छे से भरण पोषण हो रहा है। बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढऩे लगे हैं।

एक किलो में दस साबुन बनते हैं
इनके द्वारा बनाए जा रहे साबुन का वजन 100 ग्राम होता है। इसकी पैकिंग अलग से की जाती है। बाजार में साबुन की कीमत 25 रुपए रखी है। अगर कोई घर से साबुन खरीदता है तो उसे कुछ रियायत दी जाती है। एक किलो साबुन के कच्चे माल से दस साबुन तैयार होते हैं। एक दिन में दस से पंद्रह किलो कच्चा माल खपाना आम बात है। साबुन की शुरूआती कीमत दस रुपए थी जो अब बढ़कर पच्चीस रुपए हो गई है।

वैक्स के हिसाब से रेट तय होते हैं
बाजार में वैक्स की कीमत से साबुन का रेट तय होता है। कच्चे माल में वैक्स ही सबसे ज्यादा लगता है। सौ रुपए किलो कीमत से वैक्स बाजार में मिल जाती है। अगर कहीं से किसी की डिमांड खुश्बूदार साबुन की आती है तो उसमें खुश्बू मिलाकर साबुन तैयार कर दिया जाता है। उसके रेट अन्य साबुन के मुकाबले थोड़े ज्यादा होते हैं।