
राजस्थान हाईकोर्ट के नए भवन के उद्घाटन के साथ ही पश्चिमी राजस्थान की इस सबसे बड़ी कॉलोनी में आया बूम
भोपाल। प्रदेश में सरकारी जमीनों और भवनों पर अब कमलनाथ सरकार ने शिकंजा कसना तय किया है। दरअसल, सरकारी जमीन और सरकारी भवनों से मिलने वाले राजस्व को लेकर सरकार न अब नया फार्मूला तय करने का निर्णय किया है। आर्थिक संकट के दौर में सरकार अब देखेगी कि सरकारी जमीन और सरकारी भवनों से कितना राजस्व मिल रहा है। इसमें पुराना कितना बकाया है और राजस्व बढ़ाने के लिए क्या जतन किए जा सकते हैं। इसके तहत सभी जिलों से सरकारी जमीन और सरकारी भवन का रिकार्ड तलब किया गया है।
पिछले कुछ समय से प्रदेश में आर्थिक चुनौतियां बढऩे के कारण राजस्व बढ़ाने और खर्च कम करने के प्रयास हो रहे हैं। इस कड़ी में प्रदेश में जल संसाधन विभाग, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग सहित अन्य विभागों के जिलों में मौजूद सरकारी गेस्ट हाउस, सरकारी कार्यालय और सरकारी भवनों सहित अन्य संपत्तियों की खोज-खबर लेना तय किया गया है।
अभी तक सरकार में किसी एक चैनल पर यह रिकार्ड ही नहीं है कि इन सभी सरकारी सम्पत्तियों से कितना राजस्व मिल रहा है और इन सम्पत्तियों के संचालन और रखरखाव पर कितना खर्च हो रहा है। सरकार अब यह देखेगी कि राजस्व और मेंटनेंस-संचालन खर्च में कितना अंतर है। यदि कहीं पर घाटा हो रहा है, तो फिर वहां राजस्व बढ़ाने या संबंधित प्रॉपटी-भवन के निपटारे के रास्ते तलाशे जाएंगे। इसके लिए सभी जिलों से पूरी रिपोर्ट बुलाई जा रही है। एक जगह रिकार्ड तैयार होने पर यूनिफार्म साल्यूशन निकालने में आसानी होगी।
जमीन को लेकर अटकी है पॉलिसी-
दरअसल, सरकारी जमीनों के निपटारे को लेकर भी सरकार ने नई पॉलिसी तैयार की है, लेकिन इसका ड्राफ्ट लंबे समय से अटका हुआ है। पिछली शिवराज सरकार के समय सरकारी जमीनों को लेकर पॉलिसी बनी थी, लेकिन वह लागू नहीं हो सकी। कमलनाथ सरकार आई, तो उस पॉलिसी के ड्राफ्ट को रिफार्म किय गया, लेकिन लागू नहीं किया जा सका है। इसमें ऐसी सरकारी जमीनों से राजस्व बढ़ाने का फार्मूला है। किसी कॉलोनी या सड़क किनारे की बेकार पड़ी सरकारी जमीन को कलेक्टर स्तर पर नीलाम करके राजस्व लेना भी प्रस्तावित है।
भवनों को लेकर भी मेंटनेंस ज्यादा-
वर्तमान में प्रदेश में अनेक ऐसे सरकारी भवन है, जो ज्यादा मेंटनेंस बोझ के कारण नुकसान दे रहे हैं। इनमें ऐसे भवन भी शामिल हैं, जहां पर कोई स्टाफ नहीं रहता या कार्यालय संचालित नहीं है। ऐेसे भवनों की जानकारी भी बुलाई गई है। इसके अलावा गेस्ट हाउस के रिकार्ड भी तलब किए गए हैं, ताकि उनके व्यावसायिक इस्तेमाल पर फार्मूला तैयार हो सके।
आर्थिक संकट के कारण उठाने पड़ रहे कदम-
सितंबर 2017 से ही सरकारी खजाना आर्थिक संकट में है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले चुनावी खर्च के बोझ के कारण सरकारी खजाना डगमगाया, तो अभी तक स्थिति पूरी तरह संभल नहीं सकी है। सरकार लगभग हर महीने खुले बाजार से कर्ज ले रही है। अभी तक सरकार 13500 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। जबकि, सरकार का कुल कर्ज 183 लाख करोड़ पार कर चुका है। सरकारी खर्चों को चलाने के लिए 17 दिसंबर से शुरू होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कमलनाथ सरकार अपना पहला अनुपूरक बजट लाएगी। इसमें भी नई योजनाओं की बजाए वचन-पत्र व मौजूदा योजनाओं के संचालन पर ही फोकस होगा। इस कारण सरकार को राजस्व बढ़ाने के प्रयास करना पड़ रहे हैं।
Published on:
16 Dec 2019 08:22 am
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