
विंड एनर्जी को घर-घर पहुंचाया तो कोई बायो फ्यूल से इमीशन कर रहा कम
भोपाल. मध्य प्रदेश बीमारू राज्य से उन्नत प्रदेश की दौड़ में सरपट है, इसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी का भी विशेष योगदान है। यहां के राष्ट्रीय संस्थानों से लेकर राज्य के प्रतिघ्ठानों तक में वैज्ञानिक जी-जान लगाकर अपनी भूमिका का निर्वहन शिद्दत से कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार भी आम लोगों के लिए विज्ञान को सरल-सहज बनाने मेंं जुटी है। युवाओं और स्कूली छात्र-छात्राओं को विजन वैज्ञानिक बनाने की कवायद भी तेज है। ऐसे में सुखद यह है कि विश्व के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिक जिनके सबसे अधिक शोध पत्र दुनिया के स्तरीय रिसर्च जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं, उनमें से 12 हमारे मध्य प्रदेश से हैं। राजधानी स्थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) इन वैज्ञानिकों में से चार से पत्रिका ने उनके शोध कार्यों, उसके आउटकम और समाज-लोगों को होने वाले फायदे को बताया।
शीर्ष वैज्ञानिकों में शामिल होने के लिए ये है क्राइटेरिया
विश्व के टॉप 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों में से शामिल होने के लिए का्रइटेरिया तय होता है। वैज्ञानिक के कितने स्तरीय जर्नल्स में रिसर्च पेपर पब्लिश हुए हैं। इसलिए ज्यादा से ज्यादा रिसर्च पब्लिकेशन पर फोकस करना होगा। क्वॉलिटी पब्लिकेशन में पेपर्स पब्लिकेशन को साइंस साइटेशन इंडेक्स कहा जाता है। इसके साथ ही कुल साइंस कॉन्फ्रेंस, बुक चैप्टर, बुक्स पब्लिकेशन आदि भी मायने रखते हैं।
इधर देश में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में तस्वीर बेहतर नहीं
विशेषज्ञ बताते हैं कि बीते पांच साल में जेईई से चयनित होकर इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडिमशन लेने वाले छात्रों की संख्या 30 से 35 प्रतिशत तक घटी है। वहीं गेट के माध्यम से एमटेक यानी चार साल से पीजी में एडमिशन लेने वालों का रुझान भी चिंताजनक रूप से कम हुआ है। ये स्थिति तब है जब सरकार प्रतिमाह 12 हजार 400 रुपए स्कॉलरशिप देती है। ये तस्वीर विज्ञान में बच्चों का रुझान दिखा रहा है।
ईजाद-1
शहरों में हवा का कम प्रवाह होता है लेकिन अब वहां भी लगा सकते हैं वर्टिकल एक्सिस विंड टरबाइन
वैज्ञानिक- डॉ. प्रशांत बारेदार
जर्नल पेपर- 124
साइटेशन/ रिसर्च से प्रेरणा लेने वाले- 6172
एरिया ऑफ रिसर्च- बायो एनर्जी और विंड एनर्जी
विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों में शामिल डॉ. प्रशांत बारेदार रिन्यएूबल एनर्जी यानी गैरपरंपरागत ऊर्जा क्षेत्र में 24 साल से कार्य रहे हैं। वे मुख्य रूप से विंड और बायो एनर्जी पर में समाज के लिए नवाचार के लिए प्रयासरत हैं। वे बताते हैं कि बायो एनर्जी तो आम आदमी की पहुंच में है, लेकिन पवन ऊर्जा यानी विंड एनर्जी दुरूह है। ऐसे में हमने होरिजेंटल टरबाइन को कमर्शियली और ओर वर्टिकल टरबाइन को घरेलू उपयोग लायक बनाया। डॉ. प्रशांत बारेदार बताते हैं कि वर्टिकल एक्सिस विंड टरबाइन के लिए कम हवा की जरूरत होती है। इसे आवासीय क्षेत्रों में बिल्डिंग और घर की छत पर लगा सकते हैं। राज्य में देवास के अलावा अब नीमच और बैतूल में भी विंड एनर्जी के लिए अच्छी संभावना है।
गाजर घास, पराली और कॉटन डस्ट को रिसाइकिल करके बनाते हैं ब्रिकेट ईंधन
बायो एनर्जी में वेस्ट मटेरियल ऑर्गेेनिक और इनऑर्गेनिक ईंधन पर शोध करके उसे परिष्कृत करने में जुटे हैं, जिससे जलाने पर हवा प्रदूषित कम हो। रिसाइकिल करके भविष्य के ईंधन जिसे ब्रिकेट कहते हैं, बनाने में जुटे हैं। ब्रिकेट को इंडस्ट्रियल फर्नेस यानी भट्टी में जला सकते हैं। ये ईंधन डीजल, पेट्रोल, कैरोसीन और कोयला का भी विकल्प है। प्रदूषण कम होता है तो लागत भी घटती है। मालूम हो कि ऑर्गेनिक श्रेणी में आती है गाजर घास जिसे जलाएंगे तो अस्थमा और कैंसर होता है। इससे रिसाइकिल करके ईंधन बना सकते हें। पराली और कॉटन डस्ट को भी इसी तरह से रिसाइकिल करके ईंधन बना सकते हैं।
मध्य प्रदेश में सौर ऊर्जा पर हो रहा बेहतर काम
बतौर वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत बारेदार को लगता है कि मप्र में सौर ऊर्जा पर बहुत फोकस हो रहा है। केंद्र के सहयोग से बड़ा प्लांट रीवा में लग चुका है। इसी तरह से प्राइवेट सेक्टर की डिस्टीबूशन कंपनी घरों में प्लांट लगा रही हैं। वहीं बड़े कार्यालयों में रेस्को मॉडल का कॉन्सेप्ट आया है, जिसमें छत देकर पंजीकृत कंपनी सोलर पॉवर प्लांट लगाकर देेंगे। एमओयू के तहत संबंधित कार्यालय को पॉवर खरीदना होगा। उसका टैरिफ बिजली कंपनी की प्रति यूनिट दरों से भी कम होता है। प्रोजेक्ट की लाइफ 25 साल है, उसके बाद संस्थान को फ्री दे दिया जाएगा। साथ ही उनका मानना है कि शासन विज्ञान को लेकर सपोर्टिव है। सरकार अपरांगत क्षेत्र में बड़े लेवल पर फोकस कर रही है। उनका सुझाव है कि उज्ज्वला गैस योजना शुरू की है, लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग परंपरागत चूल्हे जला रहे हैं। अगर सरकार ब्रिकेट ईंधन बनाने के लिए ज्यादा बने प्रोजेक्ट लाए तो अंचल में फायदा होगा। विशेष चूल्हे दिए जाएंगे जिसमें ब्रिकेट ईंधन जलेगा कम और उर्जा ज्यादा मिलेगी।
ईजाद-2
डीजल-पेट्रोल में 20 प्रतिशत बायोडीजल की मिक्सिंग से सुधरेगा वाहन का परफॉर्मेंस, कम्बशन, एमिशन
वैज्ञानिक- डॉ. टिकेंद्रनाथ वर्मा
जर्नल पेपर- 185
साइटेशन/ रिसर्च से प्रेरणा लेने वाले- 3227
एरिया ऑफ रिसर्च- बायो डीजल और थर्मल कम्फर्ट
डॉ. टिकेंद्रनाथ वर्मा बायोडीजल और थर्मल कम्फर्ट जिसे रूम कम्पर्ट भी कहते हैं, उस पर कई सालों से शोध में जुटे हैं। वे बताते हैं कि दुनिया में सामान्य तौर 100 से कहीं ज्यादा बायोडीजल हैं, जिनका पर फोकस होना अभी बाकी है। वे थर्ड जनरेशन माइक्रो एल्गी पर शोध और नवाचार में जुटे हुए हैं। अभी जो काम चल रहा है, उसमें गाड़ी में एवरेज यानी माइलेज, पॉवर यानी पिकअप पर ध्यान ज्यादा दिया जाता है। लेकिन बतौर वैज्ञानिक उनकी कोशिश है कि ऐसा बायोडीजल बनाया जाए जिससे वाहन का परफॉर्मेंंस, कम्ब्शन और एमिशन तीन चीजों में सुधार हो। इससे ही प्रकृति सुरिक्षत रहेगी। डीजल और पेट्रोल से एमिशन कम होगा तो प्रकृति और लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा। हमें ये दुनिया अपनी आगामी पीढ़ी के लिए भी साफ- सुथरी रखनी है।
शोध से डीजल के पीएम को कर रहे कम ताकि लोगों को श्वसन तंत्र की बीमारियां न हों
डीजल में पीएम यानी पर्टीकुलेट मैटर निकलते हैं जो श्वसन तंत्र संबंधी बामीरियों की वजह बनता है। इससे अस्थमा समेत अन्य समस्याएं हो रही हैं। ऐसे में वे अपने शोध में डीजल के साथ बायोडीजल की मिक्सिंग करके देखते हैं कि जिससे अलग-अलग चीजें मिलती हैं। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से 20 प्रतिशत तक बायोडीजल मिक्स कर सकते हैं। उसमें इंजन में परिवर्तन या सुधार की भी कोई जरूरत नहीं है।
हाइड्रोजन फ्यूल और इलेक्ट्रिक वीकल पर फोकस
सरकारी स्तर पर दो चीजों पर फोकस किया जा रहा है। एक है हाइड्रोजन फ्यूल और दूसरा है हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक वीकल। हाइड्रोजन को बनाकर उसे फिर फ्यूल के रूप में कन्वर्ट करते हैं। उनका कहना है कि अभी ईवी में कम से कम 10 साल का समय लगेगा सुधार के लिए। इस दरमियान जो भी शोध होंगे, बैटरी की लाइफ बढ़ेगी, किलोमीटर यानी रेंज बढ़ेगी और चार्जिंग में कम समय लगे, ये भी ध्यान देने वाली बात है। पेट्रोल पंप की तर्ज पर चार्जिग स्टेशन भी बनाने होंगे। नीतियों में सुधार व संशोधन भी समय की मांग। ईवी में तो स्वदेशी तकनीक का ईजाद किया जाए, ये बेहतर होगा।
मध्य प्रदेश में अभी ईवी में बहुत कुछ करना बाकी
विशेषज्ञों का कहना है कि हाइब्रिड वाहन या इलेक्ट्रिक वीकल देश और प्रदेश में लोगों की पसंद हैं, लेकिन उनको लेकर शंका भी बहुत है। वर्ष 2010 के आस-पास भी इसी तरह से कंपनियां इलेक्ट्रिक वीकल लेकर आई थीं, लेकिन टिक नहीं पाए। न तो उनमें गुणवत्ता थी और भारतीय सड़कों के हिसाब से मजबूत रहे। मध्य प्रदेश की अगर बात की जाए तो ईवी वाहनों के लिए बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है।
ईजाद-3
बीते एक दशक में
डॉ. गौरव द्विवेदी
जर्नल पेपर- 126
साइटेशन/ रिसर्च से प्रेरणा लेने वाले- 3300
एरिया ऑफ रिसर्च- रिन्यूएबल एनर्जी
डॉ. गौरव द्विवेदी रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में तीन साल से शोध कार्यों में जुटे हुए हैं। वे विशेष रूप से वेस्ट वेजीटेबल ऑयल, नीम ऑयल, महुआ ऑयल, करंज ऑयल, जेट्रोपा और इथेनॉल से जैव ईधन बनाने के प्रोजेक्ट पर फोकस कर रहे हैं। खास बात यह है कि ये ईंधन 15 से 20 प्रतिशत तक सस्ता है पेट्रोल डीजल के मुकाबले। प्रदूषण के मामले में भी ये 15 से 20 प्रशिशत तक पर्यावरण फ्रेंडली है। इस क्षेत्र में जितना शोध होगा, उतना परिष्कृत स्वरूप हमें मिलेगा। नवरत्न कंपनियां जैसे एचपीसीएल और ओएनजीसी भी काम कर रही हैं।
शासन-प्रशासन को बढ़ानी होगी जागरुकता
मालूम हो कि वेजीटेबल ऑयल को कितनी बार इस्तेमाल करना है और जले हुए ऑयल का निस्तारण कैसे करना है, ये लोगों को नहीं पता। ऐस में वे बार-बार एक ही तेल में तलने-भूनने में लगे रहते हैं तो उसे खुले में फेंक देते हैं। यह जागरुकता की कमी है, तो जले तेल को खरीदने के मामले में एजेंसियां भी नहीं हैं। ऐसे में शासन-प्रशासन को आम लोगों के बीच ये जागरुकता लानी होगी कि तेल फेंकने के बजाय उसको रियूज किया जा सकता है। लोग इसे नगर निगमों में दे सकते हैं। भोपाल और इंदौर नगर निगम की ओर से इस दिशाा में काम हो रहा है।
एक ही प्रदेश में दो तरह की तस्वीर
मध्य प्रदेश जैव विविधिता वाला राज्य है। इंदौर में काम हो रहा है, लेकिन भोपाल में ये दिखाई नहीं देता। आदतों, स्वच्छता को लेकर। यहां पर शोध पत्रों के माध्यम से आगे कंपनियां आगे काम कर सकती हैं। साइंस से के लोगों को पढ़े लिखे लोगों को जागरुका काम करते हैं।
ईजाद-4
रूरल टेक्नोलॉजी के मार्फत गांव-गांव में लोगों की कर रहे मदद
विकास शेन्डे, प्रधान वैज्ञानिक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लोकव्यापीकरण योजना, मेपकास्ट
जर्नल पेपर- 20
साइटेशन/ रिसर्च से प्रेरणा लेने वाले- 100
एरिया ऑफ रिसर्च- रूरल टेक्नोलॉजी, साइंस पॉपुलराइजेशन
मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मेपकास्ट) में प्रधान वैज्ञानिक विकास शेन्डे राज्य में विज्ञान को जन-जन में लोकप्रिय बनाने या कहें कि लोगों के बीच उसे ग्राह्य कराने के अभियान में जुटे हैं। वे रूरल टेक्नोलॉजी, साइंस पॉपुलराइजेशन और रिन्यूएबल एनर्जी के विषय विशेषज्ञ हैं। वे ग्रामीण लोगों के श्रम कम करने, आय बढ़ाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए शोध कार्यों में जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में नवीनतम तकनीक से ग्रामीण लोगों को उपयोगी बनाना भी लक्ष्य है। वैज्ञानिक शेन्डे बीते चार साल से प्रदेशभर में विज्ञान की अलख जगाने में जुटे हुए हैं। इसके तहत अंचल से लेकर शहरों तक 500 से अधिक कार्यक्रम कर चुके हैं। विशेष से जनजातीय समाज को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से मुख्य धारा में लाने की कवायद जारी है।
विज्ञान और गणित से दूर भागते हैं लोग
वैज्ञानिक शेन्डे बताते हैं कि हम भारतीयों को रुझान इतनी आसानी से विज्ञान को अपनाने वाला नहीं होता है। आमतौर पर विज्ञान और गणित से लोग दूर भागते हैं। ऐसे में वे जीवन से जुड़े हर पहलू में विज्ञान है, इस अवधारणा के माध्यम से जनजागरुकता के लिए प्रयासरत हंै। कई बार दैनिक गतिविधियां जो लोग पीढिय़ों से कर रहे हैं, उनके माध्यम से भी समझाया जाता है। उनके इन प्र्रयासों को देखते हुए जनजातीय कार्य विभाग ने इन्हें सम्मानित भी किया है।
Published on:
04 Mar 2023 10:37 pm
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