
भोपाल. पंचायत चुनाव टलने से प्रदेश के 23 हजार से ज्यादा पूर्व सरपंचों को अधिकारों की चिता सताने लगी है। ऐसे में ग्वालियर- चंबल संभाग, हरदा, सीहोर, छतरपुर समेत कई जिलों से सरपंच राजधानी में मंत्री-विधायक के सामने प्रदर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। वे मंत्री कमल पटेल, महेंद्र सिंह सिसोदिया समेत अन्य से मिल रहे हैं। सोमवार को प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मिले। मंगलवार को करीब 3 हजार सरपंच सीएम से मिलने की कोशिश में हैं। इसके लिए सोमवार को 1000 से ज्यादा सरपंच पहुंचे।
सरपंचों का कहना है कि 2015 में चुने जाने के बाद उनका कार्यकाल 2020 तक था। कोरोना काल में सरपंचों को प्रशासनिक समिति का अध्यक्ष बनाकर सभी शक्तियां दी। पिछले दिनों चुनाव आचार संहिता लगने पर इनके अधिकार खत्म हुए तो शक्तियां पीसीओ को चली गईं। 4 जनवरी को चुनाव निरस्त हुए। इसके बाद फिर से सरपंचों को प्रशासनिक समिति का अध्यक्ष बनाकर अधिकार दे दिए गए। 6 जनवरी को अधिकार स्थगित कर दिए गए।
प्रदेश सरकार के 4 जनवरी को जारी आदेश में सरपंचों को वित्तीय पावर दे दी गई थी। आदेश के अनुसार जबतक चुनाव नहीं होते तब तक सरपंच पंचायतों का संचालन करने के लिए वित्तीय आहरण कर सकता था लेकिन सरकार ने अपने आदेश को स्थगित कर दिया है। अब पंचायतों में सारी व्यवस्थाएं एक बार फिर ठप्प हो गई हैं। अब प्रदेश सरकार की तरफ से नया आदेश जारी होने पर ही साफ होगा कि आखिर पंचायतों में वित्तीय अधिकारों का प्रयोग कैसे और कौन करेगा।
मध्य प्रदेश सरकार ने पंचायतों के संचालन ने पंचायतों के संचालन की जिम्मेदारी तय कर दी थी। लेकिन एक दिन बाद ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने अपने फैसले में बदलाव करते हुए सरपंचों को दिए वित्तीय अधिकार छीन लिए। 4 जनवरी के आदेश में पंचायतों के संचालन की जिम्मेदारी प्रधान प्रशासकीय समिति बनाकर सचिव और सरपंच को सौंपी गई थी।
Published on:
11 Jan 2022 04:48 pm
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