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अधिकतर विदेश भेजने के लिए होता है बच्चों का अपहरण, लड़कियों को देह व्यापार तो लडक़ों से मंगवाते हैं भीख

बाल संरक्षण आयोग, एक्शन-एड व ब्रिटिश हाई कमीशन की वर्कशॉप में सामने आए तथ्य, भेजे जाएंगे केंद्र को

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Attempting to kidnap student returning from school

Attempting to kidnap student returning from school

भोपाल. बच्चों की तस्करी के कई कारण हैं। भारतीय बच्चों को विदेशों में भेजा जा रहा है। वहां श्रम महंगा होने, घरेलू काम करवाने के लिए बच्चों की तस्करी की जा रही है। विदेश तक बच्चों को भेजने में ठेकेदारों की अहम भूमिका होती है। यह बात शनिवार को मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग, एक्शन एड एसोसिएशन और ब्रिटिश हाई कमीशन द्वारा होटल शुभ इन में चाइल्ड प्रोटेक्शन एंड एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग इन मप्र विषय पर आयोजित वर्कशॉप में कही।

उन्होंने बताया कि लड़कियों की तस्करी कर उनसे देह व्यापार करवाया जाता है तो लडक़ों से भीख मंगवाई जाती है। वर्कशॉप में जमीनी स्तर पर सुदूर व आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रही संस्थाओं के पदाधिकारियों ने स्थानीय स्तर पर मानव खरीद फरोख्त की समस्याओं और वर्तमान परिदृश्य पर अपने-अपने विचार व अनुभव रखे।

तस्करी के कई कारण सामने आए

बच्चों की खरीद फरोख्त व तस्करी के गरीबी, अशिक्षा, घरेलू काम, बंधुआ मजदूरी, देह व्यापार, सामाजिक असमानता, लैंगिक असंतुलन, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, भीख, मांग और आपूर्ति का सिद्धांत, मानव अंगों की तस्करी एवं विवाह जैसे अहम कारण सामने आए हैं। तस्करों द्वारा इन कारणों से बच्चों की तस्करी की जाती है।

हालांकि यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम की रिर्पोट में मानव तस्करी के 500 प्रकार बताए गए हैं। लेकिन मप्र में प्रमुख रुप से करीब दो दर्जन कारणों से बच्चों की तस्करी हो रही है। गृह मंत्रालय भारत सरकार की 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में लगभग 55 हजार बच्चों के अपहरण के मामले सामने आए थे।

दुनिया भर में मानव तस्करी के पीडि़तों में एक तिहाई बच्चे इसका शिकार है। मानव तस्करी में दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्प संख्यकों और समाज के बहिष्कृत परिवारों की महिलाओं, लड़कियों के सर्वाधिक प्रकरण सामने आए है।

इन्होंने भी रखे अपने विचार

एडीजी अन्वेष कुमार मंगलम ने कहा कि बच्चों की खरीद फरोख्त रोकने के लिए प्रमुख रुप से इस समस्या के विभिन्न स्रोतों की जड़ों की पहचान कर काम करना होगा। मौजूदा समय में हम प्रकरणों को दृष्टिगत रखते हैं, जबकि हमें उनकी जड़ों पर काम करना आवश्यक है। बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि हमें बच्चों की स्थितियों को देखते हुए और जो उनसे संबंधित आंकड़े आ रहे हैं, वह हमें आईना दिखाते हैं ताकि हम अपने काम को गंभीरता से करें।

वर्कशॉप राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ राघवेन्द्र शर्मा, नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार जस्टिस गिरिबाला सिंह, सेवानिवृत आईपीएस पीएम नायर उपस्थित थे। 25 जिलों से बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं सदस्य उपस्थित थे।