
mp news patrika investigation(फोटो: सोशल मीडिया)
MP news: बीमार होने पर इलाज के लिए लोग अस्पताल जाते हैं, लेकिन क्या अस्पताल से लौटकर भी कोई बीमार हो सकता है? जवाब है हां। वजह है हॉस्पिटल एक्वायर्ड इंफेक्शन -एचएआइ। भारत सहित विश्व के अधिकतर देश इससे जूझ रहे हैं। अस्पताल आए मरीज को 48 घंटे में हुए संक्रमण को विश्व स्वास्थ्य संगठन अस्पताल से हुआ संक्रमण यानी एचएआइ मानता है। जैसे बुखार-खांसी का अस्पताल से इलाज करा घर आए मरीज को अगले 3-4 दिन में तेज बुखार आए, ठंड लगे, पेशाब में जलन हो, तो यह एचएआइ हो सकता है।
कैंसर, किडनी, थैलेसीमिया जैसी बीमारी से ग्रस्त मरीजों व आइसीयू में भर्ती मरीजों में यह संक्रमण चिकित्सकीय उपकरणों से हो सकते हैं। इंटरनेशनल नोसोकोमियल इंफेक्शन कंट्रोल कंसोर्टियम की 2023 की रिपोर्ट बताती है, भारत में आइसीयू में इन संक्रमण की दर 9.06 प्रति 1,000 दिन है। यानी आइसीयू में मरीज 1000 दिन रहे तो 9 दिन संक्रमण के कारण रहना पड़ा। यह दर अमरीका के 4.4 से दोगुनी से ज्यादा है। इससे इलाज का खर्च भी बढ़ रहा है। अन्य रिपोर्ट गंभीर बीमारी के मरीजों के मामले में यह आंकड़ा 16.5 दिन बताती हैं। इसे लेकर अस्पतालों व कई संस्थानों ने हालात जानने के प्रयास किए। पत्रिका ने की पड़ताल तब तैयार हुई ये रिपोर्ट...
एम्स भोपालके चिकित्सकों ने चार वर्ष के अध्ययन के आधार पर 2023 में रिपोर्ट दी। आइसीयू में भर्ती हुए 281 मरीजों के रेकॉर्ड का विश्लेषण कर बताया कि इनमें से 89 को आइसीयू में भर्ती होने के बाद नया संक्रमण हुआ।
इनमें से 33 फीसदी मामले रक्त में संक्रमण, 30.68 फीसदी सांस की नली में संक्रमण, 25.56 फीसदी कैथेटर से पेशाब की थैली में संक्रमण और 6.76 फीसदी सर्जरी की जगह हुए संक्रमण के थे।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जहां संक्रमण न होने पर मरीज औसतन 8.2 दिन आइसीयू में बिता रहे थे, संक्रमित मरीजों को यहां 13.85 दिन लग रहे थे। इन मरीजों में 42.86 फीसदी शुगर से पीड़ित थे।
बता दें कि ये मामले सेंट्रल लाइन एसोसिएटेड ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन के थे। वहीं कैथेटर लगाने के दौरान 9.3 फीसदी मामलों में संक्रमण हो रहे हैं। अधिकतर में एसिनेटोबेक्टर और क्लेब्सिएला न्यूमोनिए जैसे एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट बैक्टीरिया मिले।
कर्नाटक में एचएआइ के हालात जानने 18 माह तक आइसीयू में अध्ययन किया। यहां देखभाल के कुल दिनों में संक्रमण को मापा।
अध्ययन में पता चला, मरीजों में संक्रमण दर 10.4 प्रति 1,000 मैकेनिकल वेंटिलेटर दिवस, 10.6 प्रति 1,000 मूत्र कैथेटर दिवस, 7.92 प्रति 1,000 सेंट्रल लाइन दिवस थे। दक्षिण कर्नाटक में 11.7त्न एचएआइ के शिकार हुए।
बेंगलूरु के डॉ. आदर्श नायक ने बताया, वार्ड में भीड़, फर्श, चादरें संक्रमण फैलाते ही हैं। कैथेटर, वेंटिलेटर से संक्रमण की आशंका है।
नई दिल्ली. अस्पताल में होने वाले संक्रमण कई बार मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस में बदल जाते हैं। इसे हॉस्पिटल एसोसिएटेड ड्रग रजिस्टेंस इंफेक्शन (एचएआरआइ) कहते है। पेनिसिलिन और सेफालोस्पोरिन जैसे बैक्टीरियल संक्रमण अब सामान्य एंटीबायोटिक से ठीक नहीं रहे।
राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल सवाई मान सिंह (एसएमएस) मेडिकल कॉलेज ने 2021 में संक्रमण पर रिपोर्ट जारी की। बताया कि आइसीयू में भर्ती 186 मरीजों में से 37 मरीजों को संक्रमण मिला।
वेंटिलेटर एसोसिएटेड निमोनिया सांस की नली में लगी ट्यूब से हो रहा है। ट्यूब में चिपके बैक्टीरिया फेफड़ों में संक्रमण करते हैं। सही इलाज न मिले तो 10-15 दिन में मरीज की मौत हो सकती है।
हालात: 105 मरीजों को अस्पताल की वजह से निमोनिया हुआ, इनमें से 23 यानी करीब 22त्न मारे गए।
कीमोथेरेपी, डायलिसिस या आइसीयू में दवा देने के दौरान गले या हाथ की नस में लंबी नली यानी सेंट्रल लाइन डाली जाती है।इसमें भी मौजूद बैक्टीरिया संक्रमण कर सकते हैं।
हालात: इसकी वजह से संक्रमित हुए 38 मरीजों में से 9 को बचाया नहीं जा सका।
जब मरीज को पेशाब नहीं आता तो ब्लैडर में प्लास्टिक की नली (कैथेटर) डालते हैं। इसमें भी मौजूद बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक से किडनी तक संक्रमण कर सकते हैं। भारत में यह सबसे ज्यादा हो चुका है।
हालात: पुणे में इसके कुल 54 संक्रमण मिले। इनमें से 25.9त्न यानी 14 मरीजों की जान नहीं बचाई जा सकी।
Published on:
10 Nov 2025 12:00 pm
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