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अब निमाड़ में कपास की खेती करने वाले किसान सिस्टम के छल का शिकार…

- खरीफ की फसल खसरा रिकॉर्ड से गायब, ट्रॉलियों में किसान कपास बेचने गए तो बिना पंजीयन खाली हाथ लौटाए- निमाड़ के धार जिले के 206 गांव में सबसे अधिक ऐसी गड़बड़ी के मामले- किसानों ने आंदोलन की चेतावनी के साथ प्रशासन के जिम्मेदारों को लिखी चिट्ठी

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अब निमाड़ में कपास की खेती करने वाले किसान सिस्टम के छल का शिकार...

अब निमाड़ में कपास की खेती करने वाले किसान सिस्टम के छल का शिकार...

श्याम सिंह तोमर
भोपाल. निमाड़ अंचल की पहचान रही कपास की खेती करने वाले किसान प्रशासन के सिस्टम के छल का शिकार हो रहे हैं। दरअसल, मामला कुछ महीने पहले का है, जब खरीफ सीजन में पटवारियों ने अंचल के गांवों में कपास उत्पादक किसानों की अनावरी रिपोर्ट बनाई। खसरा नकल बी-1 और बी-2 में दर्ज करने इसकी रिपोर्ट भोपाल भेजी गई थी। अब जब किसान कृषि उपज मंडियों में ट्रॉलियां भरकर कपास बेचने जा रहे हैं, तब उनके बी-1 और बी-2 में किसी प्रकार की फसल दर्ज ही नहीं है। राजधानी से भेजे गए उनके सरकारी रिकॉर्ड में उक्त जानकारी का स्थान खाली है। इसका नतीजा है किसानों को समर्थन मूल्य पर अपनी कपास की फसल बेचने में परेशानी आ रही है। इतना ही नहीं मानसून में लंबी खेंच के बाद पक गई फसल पर कहर बनकर टूटी बेमौसम बारिश के लिए राहत राशि के लिए आवेदन करना भी हुआ दूभर, बीमा का पैसा अटका है। दरअसल, प्रशासन ने उस समय किसी प्रकार का जमीनी सर्वे ही किसानों के खेतों में जाकर नहीं करवाया था।

धार जिले में सबसे अधिक मामले, किसानों ने दी सडक़ पर उतरने की चेतावनी
पत्रिका को इस संबंध में निमाड़ अंचल से लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इसकी जब पड़ताल की गई तो खुलासा हुआ कि ऐसे सबसे ज्यादा केस धार जिले के मनावर तहसील के अंतर्गत हैं। यहां के 206 गांव के किसानों की खसरा नकलों पर चालू वर्ष की खरीफ फसल दर्ज होकर नहीं आ रही है, जिसके कारण किसान अपनी फसल समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए पंजीयन नहीं करवा पा रहे। किसान लंबे समय से इस समस्या के समाधान के लिए शासन के जिम्मेदारों के आगे-पीछे घूमते हुए परेशान हो चुके हैं। अब उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर इस समस्या का निराकरण सात दिन में नहीं हुआ तो वे भारतीय किसान संघ के आंदोलन के लिए सडक़ों पर उतरेंगे।

खरीफ सीजन में लंबी खेंच फिर पकी फसल पर अतिवृष्टि... पर राहत राशि मिलेगी कैसे
भारतीय किसान संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष दयाराम पाटीदार का कहना है कि कृषि प्रधान मप्र के किसान कभी मौसम की मार तो कभी कृषि विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक बेरुखी से परेशान हो रहे हैं। इस वर्ष ग्रीष्म में पहले अतिवृष्टि हो गई। मानसून में लंबी बरसात की खेंच और फसल पकने के समय में अतिवृष्टि के कारण जो नुकसान हुआ है, जिसका किसी प्रकार से सर्वे भी नहीं किया गया। किसानों को राहत राशि भी नहीं दी गई। इसके लिए किसान आवेदन करते हैं तो उनको कहा जाता है कि आपके खसरा नकलों में खरीफ की फसल नहीं दर्शाई गई है। ऐसे में किसान काफी नुकसान में आ रहा है। किसानों की मांग है कि किसान मौखिक और लिखित दोनों तरह से शिकायत दे चुके हैं। शासन के जिम्मेदार इसकी जांच करवाकर किसानो के खसरों में खरीफ की फसल लिखवाएं, ताकि किसान अपनी फसल समर्थन मूल्य पर बेंच सकें।

रबी सीजन में 12 दिन से बादल-बारिश के हालात... फसलों की सेहत खराब
इधर, किसानों को रबी सीजन में भी राहत मिलती नहीं दिख रही। नवंबर के अंत में शुरू हुई मावठे की बारिश को किसान मानसून के दरमियान बारिश की कमी पूरा करने का रामबाण मान रहे थे, लेकिन लगातार विक्षोभ बनने के कारण 12 दिन से बादल घिरे हैं। इसके चलते ग्वालियर-चंबल में ‘‘कटा कीट’’ ने सरसों की पहली बुवाई की फसल बर्बाद कर दी। किसानों को दोबारा बोवनी करनी पड़ी। वहीं, जिन क्षेत्रों में प्याज-लहसुन की फसल खोदने की स्थिति थी, वहां ये काम पिछड़ गया। अब एक साथ फसल बाजार पहुंचेगी तो भाव नहीं मिलेगा। दूसरा, महाकोशल क्षेत्र की पहचान गढऩे वाली मटर की फसल भी बर्बाद हो रही है। वजह ये है कि पानी गिरने के कारण मटर की तुड़ाई नहीं हो पाई। इसके बाद एक साथ तुड़ाई और बाजार में पहुंचने से रेट गिर गए। 5 से 6 रुपए किलो का रेट चल रहा है, जबकि 30 से 35 रुपए किलो चलता था। एक साथ सैकड़ों ट्रॉली मटर मंडी पहुंची, लेकिन नहीं बिकी। ऐसे में जब ये गलने के कारण खराब होने लगी तो किसानों में नालों और खुले में फेंकना शुरू कर दिया। उधर, गन्ना किसान भी बारिश में मजूदरों के लौटने के कारण परेशान हैं, क्योंकि वे गुड़ नहीं बना पा रहे।