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म्यूजिक कंपोजर आनंद-मिलिंद ने कहा – 7 फिल्मों के बाद मिली पहली सफलता

संगीतकार आनंद-मिलिंद ने साझा किए अनुभव

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म्यूजिक कंपोजर आनंद-मिलिंद ने कहा - 7 फिल्मों के बाद मिली पहली सफलता

म्यूजिक कंपोजर आनंद-मिलिंद ने कहा - 7 फिल्मों के बाद मिली पहली सफलता

भोपाल. म्यूजिक कंपोजर आनंद-मिलिंद ने कहा कि हमारे पिता चित्रगुप्त ने करीब 200 फिल्मों में म्यूजिक दिया। घर में संगीत का माहौल तो था, लेकिन पिताजी नहीं चाहते थे कि बेटे इंडस्ट्री में आए। हम घर में फिल्मी मैग्जीन पढ़ते थे तो पिता कहते थे कि साइंस मैग्जीन पढ़ो। हम दोनों ही भाई पढ़ाई में अव्वल थे। जब मैं में 8वीं में आया तो पिताजी ने पियानो सीखने को कहा।

मिलिंद गिटार सीखने लगा। कई बार लोगों को लगता था कि ये कैसे धुनें बना लेते हैं। पापा को 1967 में हार्ट अटैक आया। जब वे रिकवर हुए तो उन्हें सपोर्ट की जरूरत थी। हम उनके असिस्टेंट बन गए। डायरेक्टर की डिमांड समझना शुरू कर दिया। मराठी डायरेक्टर के साथ डॉक्यूमेंट्री में काम करना शुरू किया। अनूप जलोटा के साथ कार्यक्रमों में गिटार बजाने।

पहली फिल्म में लता मंगेश्कर के साथ किया काम

उन्होंने कहा कि 1979 में पापा को भोजपुरी फिल्म बलम परदेसिया मिली, जो हिट रही। इसके बाद करीब 40 भोजपुरी फिल्मों में संगीत दिया। 1982 में पहली फिल्म अब आएगा मजा... का प्रोजेक्ट मिला। लता आंटी के साथ पहला सॉन्ग राजा तेरे रास्ते से हट जाऊंगी... रिकॉर्ड किया। पहली सफलता 7वीं फिल्म 1987 में आई कयामत से कयामत तक से मिली। उस दौर में डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, एक्टर और म्यूजिक कंपनी के साथी बैठते।

हमें तीन-तीन मुखड़े तैयार करने पड़ते थे। उसमें से एक सिलेक्ट होता था। अब संगीत में इंस्टूमेंट का ज्यादा इस्तेमाल होता है। जब हमने पहला गाना रेकॉर्ड किया था तो वो मोनो ट्रैक पर रिकॉर्ड किया। एक गलती पर पूरी रिकॉर्डिंग फिर से करना होती थी। रिकॉर्डिंग के लिए पूरी म्यूजिकल टीम होती थी। वो म्यूजिक दिल से जुडता था। आज मल्टी ट्रैक आ गए। कंपोजर अकेला ही म्यूजिक तैयार कर लेता है।

गीत और संगीत में मौलिकता का अभाव

उन्होंने कहा कि आज के दौर में हमारे गाने सबसे ज्यादा रिक्रिएट किए जा रहे हैं। ये अच्छी बात है कि यंग जनरेशन को पुराने गाने सुनने को मिल रहे हैं लेकिन इन गानों में संगीत को बिगाड़ दिया जाता है। कंपोजर एक गाने के म्यूजिक में दूसरे गाने का म्यूजिक डाल देता है और उसे रिक्रिएशन कहने लगता है।

हमें लगता है कि आज गीत और संगीत मं मौलिकता का अभाव होता जा रहा है। गीतकार-संगीतकार के पास नया करने के लिए कुछ नहीं है। गाने से मेलोडी और पोएट्री तो गायब ही हो गई है। अब डायरेक्टर पहले रिद्म तैयार करते हैं, फिर धुन बनती है। मैं ऐसे डायरेक्टर्स से कहता हूं कि नींव तैयार की नहीं और बिल्डिंग के इंटीरियर की चिंता पहले करने लगे हो।