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कभी धूप में गश खाकर गिर जाती थी मुस्कान, महिला सशक्तिकरण का संदेश देने 25 दिन में की 3500 किमी की यात्रा

जब मैंने नर्मदा परिक्रमा करने का निर्णय लिया था तो लोग मजाक उड़ाते थे कि लड़की साइकिल से ये यात्रा क्या कर पाएगी। उनके उपहास ने ही प्रेरित किया कि चाहे जो हो जाए, मुझे खुद को साबित करना है। मैंने 19 दिन में यात्रा पूरी की और ऐसा करने वाली देश की पहली महिला राइडर बनी। सफर में साइकिल चलाते हुए घुटने जाम हो जाते थे।

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muskan

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भोपाल। 22 वर्षीय मुस्कान पत्रिका कार्यालय पहुंची और अपनी यात्रा से जुड़े किस्से शेयर किए। उन्होंने बताया कि नर्मदा परिक्रमा की यात्रा के दौरान डॉक्टर से दवाई लेकर साइकिल चलाती थी। दर्द के कारण रात में नींद नहीं आती थी। यह कहना है साइकिलिस्ट मुस्कान रघुवंशी का। मुस्कान ने हाल ही में कश्मीर से कन्याकुमारी तक 3500 किलोमीटर की यात्रा साइकिल से पूरी की है। मुस्कान ने बताया कि मैं अपनी यात्रा से ये संदेश देना चाहती थी कि लड़कियां चाहे तो हर मंजिल को पा सकती हैं। मैं यात्रा कश्मीर से शुरू करना चाहती थी लेकिन कांग्रेस लीडर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के चलते अनुमति नहीं मिली। फिर मैंने एक फरवरी को जम्मू स्थित सीआरपीएफ कैंप, सिंदरा से यात्रा शुरू की और 25 फरवरी को कन्याकुमारी पहुंच गई। मैं ये सफर 19 दिन में पूरा कर सकती थी, लेकिन मेरा मकसद लोगों को मोटिवेट करना भी था। यात्रा के दौरान 25 से ज्यादा स्कूलों में जाकर बच्चियों को बताया कि वे भी अपने सपने पूरे कर सकती हैं।

लॉकडाउन में फिटनेस के लिए शुरू की थी साइकिलिंग

मुस्कान ने बताया कि मैं अशोक नगर में परिवार के साथ रहती हूं। स्कूल असेंबली में यदि धूप में ज्यादा देर खड़ी रह जाती थी तो गश खाकर गिर जाती थी। लॉकडाउन में फिटनेस के लिए साइकिलिंग शुरू की। भोपाल में पुलवामा शहीदों की स्मृति में 150 किलोमीटर की राइड में शामिल होने आई थी। ये राइड 9 घंटे 50 मिनट में पूरी की। तब लगा कि मैं इसी फील्ड में करियर बना सकती हूं। इसके बाद 200, 300, 400 और 600 किलोमीटर की राइड एक कैलेंडर ईयर में पूरी की और यंगेस्ट फीमेल राइडर बनी।

6 माह तक खुद को माहौल में ढाला

मुस्कान ने बताया कि 6 माह तक भोपाल में रहकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की यात्रा की तैयारी की। खुद को माहौल में ढाला। दक्षिण में पहुंचते ही गर्मी ने परेशान किया। खुद को डिहाइड्रेशन से बचाने लगातार पानी पीती रही। धूप में हेलमेट गर्म हो जाता था, सिर चकराने लगता था, लेकिन मैंने खुद को थमने नहीं दिया। कन्याकुमारी में वहां के राजा रहे रामनाथ रामेश्वर भास्कर सेतुपति की ग्रेंड डॉटर राजलक्ष्मी नाचार्य ने मेरा स्वागत किया तो मुझे लगा कि मैं अपना संदेश लोगों तक पहुंचाने में कामयाब हुई हूं।