
Patrika Postive News : मुस्लिम युवको ने ईद पर हिंदू रीति-रिवाज से किया वृद्धा का अंतिम संस्कार, दाह संस्कार का खर्च भी उठाया
भोपाल/ कोरोना संकट के चलते मध्य प्रदेश में लगे लॉकडाउन के बीच एक तरफ जहां मुस्लिय समुदाय के लोगों ने अपने सबसे बड़े त्योहार ईद-उल-फितर की नमाज के साथ साथ पूरे दिन के त्यौहार को कोरोना गाइडलाइन के तहत घरों में रहकर ही मनाया, तो वहीं राजधानी भोपाल में समुदाय के कुछ युवकों ने नियमों के अतर्गत रहकर ही ईद के मुबारक मौके पर एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की। दरअसल, शहर के कोहेफिजा इलाके में कुछ मुस्लिम युवकों ने एक 80 साल की एक महिला का अंतिम संस्कार कराने में उसके इकलौते बेटे का साथ दिया, बल्कि वृद्धा के शव को पूरे हिंदू रीति-रिवाज के साथ श्मसान तक लेकर पहुंचे और वृद्धा को मुखाग्नि दिलाई।
ईद की खुशी के मौके पर बांटा बेसहारा का गम
आपाको बात दें कि, शहर का मुस्लिम बाहुल इलाका कहे जाने वाले कोहफिजा में शुक्रवार को जहां मुस्लिम समुदाय के लोग अपने घरों में सुबह से ही ईंद की तैयारियों में जुटे थे, तभी इलाके में सूचना फैली कि, मूलरूप से छतीसगढ़ की रहने वाली 80 वर्षीय सुंदरिया बाई की लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई है। सुंदरिया बाई इलाके में अपने एक लौते बेटे के साथ यहां एक झोपड़ी में रहती थीं। उसका बेटा मजदूरी कर घर का खर्च चलाता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते पिछले डेढ़ माह से वो बेरोजगार है। ऐसे में उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी भी नहीं थी कि, वो अपनी मां के अतिम संस्कार का खर्च भी उठा सके।
कोरोना के कारण नहीं आ सके नातेदार
वहीं, जिले समेत प्रदेशभर में लॉकडाउन होने के कारण छत्तीसगढ़ से उसके रिश्तेदार भी दुख की इस घड़ी में आने में असमर्थ थे। ऐसे हालात में महिला के अंतिम संस्कार के लिये उसके बेटे के साथ चार सगे भी नहीं जुट सके। हालांकि, वृद्धा की मौत की जानकारी जैसे ही मुस्लिम युवकों को लगी, तो उन्होंने न सिर्फ वृद्ध महिला के बेटे को हर संभव मदद करने का आश्वासन देकर उसके गम को हल्का किया, बल्कि महिला को रीति-रिवाज के अनुसार पूरी तरह तैयार कराकर छोला विश्रामघाट ले जाकर उनका अंतिम संस्कार भी कराया। यहां तक आने के लिये मुस्लिम युवकों ने एंबुलेंस का खर्च भी खुद ही उठाया।
'दुनिया का सबसे बड़ा मजहब है इंसानियत- जो समझ सका वही सफल हुआ'
महिला को अंतिम संस्कार के लिये ले जाते समय कांधा देने वालों से एक सद्दाम ने बताया कि, 'मजहब हमेशा यही सिखाता है कि, किसी बेसहारा की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म हैं, फिर भले ही मदद किसी भी धर्म में आस्था रखने वाले की की जाए। ईद के दिन किसी के दर्द में शामिल होकर, उसकी मदद करके भी हमने अल्लाह की इबादत ही की है।' वहीं, अंतिम संस्कार में शामिल एक अन्य युवक नहीन खान ने बताया कि, 'दुनिया का सबसे बड़ा मजहब इंसानियत है, अब तक जो भी इसे समझ सका है वही जीवन में सफल हो सका है। इंसानियत के इसी मजहब को हमने भी अपनी ओर से थोड़ा बहुत निभाने की कोशिश की है।'
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Published on:
15 May 2021 12:58 pm
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