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इस किले से निकलती हैं रहस्यमयी चीजें, महाभारत से जुड़ी हैं इसकी मान्यताएं

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मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक डायरी, जिसके पन्नों पर इनकी गौरव गाथा, इनकी सुंदरता के चर्चे, इनके अस्तित्व की कहानियां मिलती हैं। कई वास्तविकताओं का रहस्य टूरिस्ट को रोमांच से भर देता है। क्या आप भी देखना चाहते हैं मध्य प्रदेश के ऐसे ऐतिहासिक स्पॉट्स जिनकी अपनी रहस्यमयी है...अगर मिस्टीरियस हिस्टॉरिकल प्लेसेज पर घूमने आप भी कर रहे हैं तैयारी, तो आइए एमपी की इस रहस्यमयी अजब-गजब दुनिया में आपका स्वागत है...

बुरहानपुर किला

महाभारत के अश्वत्थामा के बारे में एक पौराणिक मान्यता है कि अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के दौरान उनसे अनजाने में एक बड़ी भूल हो गई थी। ये भूल उन पर इतनी भारी पड़ी कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया।

तब से यहां भटक रहे हैं अश्वत्थामा

ऐसा कहा जाता है कि इस श्राप के बाद पिछले लगभग 5 हजार वर्षों से अश्वत्थामा बुरहानपुर के इस किले में भटक रहे हैं।

इस किले का नाम है असीरगढ़

मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किमी दूर असीरगढ़ का किला है। कहा जाता है कि इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आते हैं। स्थानीय निवासी अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं। वे बताते हैं कि अश्वत्थामा को जिसने भी देखा, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई, यानी अश्वत्थामा जिसे दिख जाए वह पूरी तरह से पागल हो जाता है।

कभी खत्म नहीं होते इस किले के रहस्य

किले के आसपास रहने वाले लोगों की मानें तो, उनका मानना है कि इस किले के रहस्य कभी खत्म नहीं होते। आए दिन यहां लोगों को किले से जुड़ी नई-नई चीजों के बारे में पता चलता रहता है। यही वजह है कि, पुरातत्व विभाग की टीम इस किले का समय-समय पर मुआयना करती रहती हैं। हाल ही में किले की पश्चिमी दिशा में खुदाई हुई थी। इस दौरान पुरातत्व की टीम को कई खास चीजें मिलीं। खुदाई किए जाने वाले स्थान पर जमीन के नीचे एक सुंदर महल मिला। जांच टीम का मानना है कि, ये महल रानी के लिए बनवाया गया होगा। इस रानी महल में गुप्त 20 कमरे मिल चुके हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक, महल 100 बाय 100 की जगह में बना है। इस महल में एक स्नान कुंड भी है। साथ ही, खुदाई में एक जेल भी मिली है। जेल में लोहे की खिड़कियां लगी हैं। साथ ही, दरवाजे भी मिले हैं। जेल में लगभग चार बैरकें हैं।

असीरगढ़ किला भारत की खास संरचनाओं में से एक है। ये किला सतपुड़ा की पहाड़ियों में बना हुआ है। समुद्र तल से करीब 250 फिट ऊंचाई पर बना ये किला आज भी अपने वैभवशाली अतीत की गाथा सुनाता है। ऊंचे पहाड़ पर स्थित इस किले में एक जलाशय भी है, ऐसा कहा जाता है कि, भले ही कितनी भी गर्मी पड़ जाए, ये जलाशय इतिहास में अब तक कभी सूखा नहीं है। यहां के लोगों का मानना है कि, भगवान कृष्ण के श्राप के शिकार हुए अश्वत्थामा इसी जलाशय में स्नान करके अब भी पास में स्थित शिव मंदिर में पूजा करने जाते हैं। भगवान शिव का मंदिर तालाब से थोड़ी दूर गुप्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के चारों तरफ गहरी खाईंयां बनीं हैं। माना जाता है कि इन खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता है, जो मंदिर से जुड़ा है।

महाभारतकाल से जुड़ी मान्यताएं

ये भी कहा जाता है कि, किले में महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा आज भी वहां वजूद हैं। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ गई और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया। लोगो का मानना है कि, अश्वत्थामा लगभग पिछले पांच हजार सालों से यहीं भटक रहे हैं। किले के संदर्भ में लोगों का मानना है कि, किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों पर शिव की उपासना करते हैं। ये सिलसिला पिछले 5 हजार सालों से जारी है। हालांकि, ये सिर्फ लोगों की मान्यता है। अब तक कहीं से भी इस मान्यता की पुष्टि नहीं हुई है।

कौन थे अश्वत्थामा

अश्वत्थामा महाभारतकाल यानी द्वापर युग में जन्मे थे। उन्हें उस युग का श्रेष्ठ योद्धा माना जाता था। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या सिखाई थी। महाभारत के युद्ध के समय गुरु द्रोण ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था।

ऐसे हुआ था किले का नामांकरण

किले को लेकर देश-प्रदेश के विद्वानों का मानना है कि, इसका निर्माण रामायण काल में हुआ है। असीरगढ़ के नामकरण के पीछे एक इतिहास से संबंधित एक कथा जुड़ी है। कथा के अनुसार यहां कभी कोई आशा अहीर नाम का इंसान रहने आया था, जिसके पास हजारों पशु थे। कहा जाता है कि उन पशुओं की सुरक्षा के लिए आशा अहीर ने ईंट गारा - मिट्टी व चूना-पत्थरों का इस्तेमाल कर दीवारें बनाई थी। इसी वजह से कथा को महत्व देते हुए अहीर के नाम पर इस किले को असीरगढ़ नाम दिया गया। इस किले पर कई सम्राटों का शासन रहा है। यहां कई समय तक चौहान वंश के राजाओं ने भी राज किया है।

कैसे पहुंचे

असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है। 20 किमी का यह छोटा सफर आप स्थानीय परिवहन साधनों की मदद से पूरा कर सकते हैं। बुरहानपुर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप बुरहानपुर रेलवे स्टेशन का मार्ग पकड़ सकते हैं।

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