कहा जाता है कि जो प्रतिमा यहां है वो दुनिया में कहीं और नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। मान्यताएं तो यहां तक हैं कि पूरी दुनिया में यही एक ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। यह प्रतिमा मराठाकालीन कला का उत्कृष्ट नमूना है। यह प्रतिमा शिव-शक्ति का साकार रूप है।