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इस बेटी के जज्बे को सलाम, शहीदों के सम्मान में किया अनोखा काम, देखें वीडियो

- एमपी की बेटी का भारत-चीन सीमा पर कमाल- देश के पहले गांव में नम्रता ने फहराया तिरंगा- 1962 युद्ध में शहीद भारतीय जवानों को किया नमन- अरुणाचल की जनजातीय विवधताओं को करीब से जाना  

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इस बेटी के जज्बे को सलाम, शहीदों के सम्मान में किया अनोखा काम, देखें वीडियो

आधुनिक भारत के इस दौर में अकसर आपने सुना होगा कि, बेटियां किसी भी क्षेत्र में अब देश के बेटों से पीछे नहीं हैं। लेकिन, कुछ काम ऐसे भी हैं, जिनमें ये भारतीय बेटियां बेटों से कई कदम आगे भी हैं। इसी बात को सार्थक किया है, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाली नम्रता नागर ने। नम्रता ने भोपाल से अकेले 7 हजार किलो मीटर की यात्रा करते हुए देश के सबसे पूर्वी छोर में स्थित अरुणाचल प्रदेश के भारत चीन सीमा पर स्थित 'काहो' बॉर्डर विलेज में तिरंगा फहराया है, जो किसी एतिहासिक कार्य से कम नहीं है।


नम्रता नागर के अनुसार, ये वही स्थान है जहां साल 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था। ऐसे में उन्होंने भारतीय सेना के शहीद जवानों के सम्मान में काहू विलेज पहुंचकर तिरंगा फहराया है। साथ ही, अरुणाचल प्रदेश के अंजो जिले के साथ काहू, किबिथू, वालोंग और शी योमी जिले से लगी मेचुका बॉर्डर पर 1962 में शहीद हुए भारतीय जवानों के स्मारकों पर पहुंचकर उन्हें नमन भी किया। आपको बता दें कि, केंद्र सरकार की 'वाइब्रेंट विलेज योजना' के अंतर्गत इन गावों को विकसित भी कराया जा रहा है। इस हिसाब से इन जिलों के गांव 'वाइब्रेंट विलेज योजना' के तहत विकास कार्य पूरा होने के बाद देश के फर्स्ट विलेज के रूप में जाने जाएंगे।

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40 दिन में तय किया 7 हजरा कि.मी का सफर

पत्रिका से खास बातचीत में नम्रता नागर ने बताया कि, उन्हें देश के पूर्वी छोर को देखने का जुनून था और इसी जुनून को लेकर उन्होंने इस यात्रा की शुरुआत की। कई दिक्कते और परेशानियां सामने आने के बावजूद उन्होंने अकेले ही 40 दिनों के भीतर इस यात्रा को पूरा कर लिया। नम्ता के अनुसार, यात्रा के दौरान उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के 10 जिलों के 21 से अधिक स्थानों की सैर की। ये यात्रा करीब 7 हजार कि.मी की रही, जिसमें उन्हें प्राकृतिक, ऐतहासिक स्थानों के बारे में जानने के साथ - साथ देश की संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला। उन्होंने बताया कि, अरुणाचल राज्य के जिन मुख्य स्थानों पर वो गईं उनमें मुख्य स्थान ईटानगर, ज़ीरो वैली, आलो,
दांबुक, पासीघाट, मेचुका, तेजु, पशुरामकुंड, नामसाई आदि रहे।

मौसम बना चुनौती पर हार नहीं मानी

नम्रता ने बताया कि, जब मार्च के महीने में देशभर में अचानक मौसम बदला था, उसका खासा प्रभाव अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों में भी पड़ा था। यात्रा के दौरान तीन बार तो ऐसा मौका तक आ गया कि, यात्रा को बीच में रोकना पड़ा, साइक्लोन हिट होने के कारण वहां भारी बारिश और ओलावृष्टि हुई। उस दौरान मोबाइल के नेटवर्क भी कई दिन तक बंद रहे। इंटरनेट सेवाएं बाधित होने से ए.टी.म आदि की सुविधा भी बाधित हो गई। उस दौरान वहां पैसे खत्म हो गए तो काफी मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा। फोन बंद होने के कारण घर वालों से भी पूरी तरह संपर्क टूट चुका था। इस सबके बावजूद भी मैने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा कि, अगर हम अपने जीवन में
कोई भी लक्ष्य तय करते हैं तो उसे पाने के लिए परिश्रम के साथ धेर्य होना बेहद जरूरी है।

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जनजातीय संस्कृतियों को करीब से जाना

नम्रता ने बताया कि, अरुणाचल प्रदेश अपनी जनजातीय विवधताओं के लिए देशभर में खास पहचान रखता है। ऐसे में यात्रा के दौरान उन्हें निशि, अपातानी आदि, गालो, रामो, मेम्बा, मिश्मी, इदु मिश्मी, मेयोर, ताई खामती, खाम (तिब्बतन) अन्य जनजातियों को करीब से जानने का मौका मिला। स्थानीय लोगों के निशि समुदाय का प्रमुख त्योहार 'न्योकुम युल्लो' देखने और मनाने का भी उन्हें मौका मिला। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के लोगों की तारीफ करते हुए कहा कि, वहां के लोग बहुत मिलनसार, साफ दिल, सच्चे और सफाई पसंद होते हैं।


मध्य प्रदेश का बढ़ाया गौरव

मध्य प्रदेश की रहने वाली नम्रता नागर एक सोलो ट्रेवलर हैं। पर्यटन के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर देश के कई सुदूर इलाकों तक वो अबतक अकेले यात्रा कर चुकी हैं। कई राज्यों के साथ-साथ , भारत देश के कई सीमांत क्षेत्रो की भी कई यात्राएं कर चुकी हैं। नम्रता का कहना है कि, जब वो भारत-चीन की सीमा पर स्थित 'काहो' पहुंची थी तो उन्होंने वहां उन्होंने मध्य प्रदेश को रीप्रिजेंट किया था। नम्रता के अनुसार, मध्य प्रदेश की पहचान 'बाग प्रिंट' वाला कुर्ता पहनकर उन्होंने यात्रा की, जिसे अरुणाचलवासियों ने खासा सराहा।

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पहले भी नर्मता कर चुकी हैं इन अंतराष्ट्रीय सीमाओं की यात्रा

1) चम्फाई - म्यामांर बोर्डर ( मिजोरम )
2) बांग्लादेश बॉर्डर - ( मेघालय )
3) इंदिरा पाइंट - ( अंडमान निकोबार )
4) धारचूला - लिपुलेख मार्ग ( उत्तराखंड )
5) लद्दाख - आर्यन वेली ( बटालिक सेक्टर )
6) अटारी - वाघा बॉर्डर - ( पंजाब )


वाइब्रेंट विलेज योजना क्या है ?

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत केंद्र सरकार की सीमा से लगे गांवों में विकास करके लोगों का पलायन करने से रोकने के प्रयास कर रही है। इस योजना के तहत सड़कों का निर्माण करने के साथ साथ केंद्र सरकार बिजली, शिक्षा आदि की व्यवस्था सुदृढ़ कर रही है।

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2967 गांवों का होगा विकास

केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 से 2025-26 के लिए 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' योजना को शुरू किया है। सीमावर्ती इलाकों में विकास के लिए सरकार की तरफ से 4800 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसमें से 2500 करोड़ रुपए सड़क निर्माण कार्य में लगाए जाएंगे। इस प्रोग्राम के पहले चरण में करीब 662 गांवों को शामिल किया गया है। प्रोग्राम में 2967 गांवों को शामिल किया जाएगा। इस योजना के तहत सीमावर्ती गांवों में सड़क के साथ पानी और बिजली की भी पूर्ण सुविधा की जाएगी। योजना का उद्देश्य सीमावर्ती गांवों में विकास करके स्थानीय लोगों का पलायन रोकना है।


इन राज्यों के गांवों की हुई है पहचान

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के उत्तरी सीमा से सटे गांवों की पहचान की गई है। इस तरह कुल 2967 गांवों की पहचान हुई है। पहले चरण में 662 गांवों का विकास किया जाएगा, जिनमें अरुणाचल प्रदेश के 455 गांवों के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के 75, लद्दाख के 35, सिक्किम के 46 और उत्तराखंड के 51 सीमावर्ती गांव शामिल हैं।