
Navratri 2023 October : मां दुर्गा का महापर्व शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इस बार माता रानी हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। मां के भक्त माता रानी के स्वागत की तैयारियों में जुट चुके हैं। इन तैयारियों के बीच हम आपको बता रहे हैं, मप्र के चमत्कारी माता मंदिरों की रोचक कहानियां और तथ्य जिन्हें जानकर आप खुद को धन्य महसूस करेंगे और इस बार नवरात्रि में मां के दर्शन करने उनके धाम पहुंच जाएंगे। आज हम आपको बता रहे हैं कफ्र्यू वाली माता के मंदिर के बारे में।
प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित इस मंदिर को कफ्र्यू वाली माता के मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर शहर ही नहीं बल्कि दूर-दूर तक से आने वाले भक्तों की आस्था का केंद्र है। खास बात यह है कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तरह ही इस दुर्गा मंदिर में भी शिखर पर सोने का कलश लगा है। भक्तों की मदद से ही मंदिर का लगातार विस्तार हो रहा है। दुर्गा देवी का यह देवी मंदिर अब वस्तुत: स्वर्ण मंदिर बन गया है। सबसे पहले मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश का आरोहण किया गया। इसके बाद 2018 में अश्विन नवरात्र में ही मंदिर में सोने का गर्भगृह बनाया गया। इतना ही नहीं मां दुर्गा जिस सिंहासन पर विराजी हैं, वह भी सोने का ही है। अपने आप में ही अनूठा यह मंदिर ऐसा मंदिर है, जो कफ्र्यू वाली माता के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का नाम कफ्र्यू वाली माता क्यों पड़ा, इसके पीछे एक रोचक कहानी है।
दरअसल मंदिर की स्थापना के लिए कुछ विवाद हुए और ऐसे में प्रशासन ने एहतियातन कफ्र्यू लगा दिया। दरअसल इस मंदिर की स्थापना 1981 में हुई थी। तब मंदिर के सामने माताजी की स्थापना की गई थी, लेकिन प्रशासन ने यहां मूर्ति की स्थापना नहीं होने दी और प्रतिमा जब्त कर ले गए। जब्त की गई प्रतिमा को शीतलदास की बगिया के पास रख दिया गया। इसके बाद विरोध स्वरूप शहर के लोग एकत्रित हो गए और उग्र प्रदर्शन करने लगे। लोगों का आक्रोश देखकर प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा और कई दिनों तक कफ्र्यू लगा रहा। लोगों के जबर्दस्त विरोध के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह को आखिरकार झुकना पड़ा। उन्होंने जहां प्रतिमा की स्थापना की गई थी, उसके सामने ही पट्टा दे दिया और प्रतिमा भी प्रशासन ने वापस की। इसके बाद प्रतिमा को यहां लाकर विधि विधान से स्थापित किया गया। तब से ही इस दुर्गा माता मंदिर का नाम कफ्र्यु वाली माता मंदिर पड़ गया।
दो अखंड ज्योत जलती हैं यहां
यहां सदैव घी एवं तेल की दो अखंड ज्योत जलती हैं। इसके लिए छह माह में 45 लीटर तेल और 45 लीटर घी लगता है। नवरात्र के दौरान यहां विशाल भंडारा भी होता है। इसमें शहर के अलावा बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शामिल होते हैं।
सुबह 5 बजे खुलते हैं पट
सुबह पांच बजे मंदिर का पट खुल जाते हैं। माता की पहली आरती सुबह साढ़े छह बजे होती हैं। सुबह नौ बजे दूसरी आरती होती है और दोपहर 12:30 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं, जो शाम साढ़े चार बजे पुन: खोले जाते हैं। नवरात्रि के अवसर पर रात 12 बजे तक लोग दर्शन करने के लिए आते रहते हैं। मंदिर समिति के प्रमोद नेमा बताते हैं कि मंदिर का इतिहास रोचक है।
हर मनोकामना होती है पूरी
इस मंदिर को लेकर भक्तों में मान्यता है कि इस मंदिर में जो भक्तसच्ची श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करता है, उसकी हर मनोकामना मां दुर्गा पूरी करती हैं। इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में अटूट श्रद्धा है। माता के दरबार से शहर के लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। यहां मन्नत मांगने वाले माता के चरणों में अर्जी लगा जाते हैं। इसके अलावा कलावा भी बांधकर जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यथा योग्य चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी लगे हुए हैं।
Updated on:
03 Oct 2023 04:13 pm
Published on:
03 Oct 2023 04:08 pm
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