नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सेंट्रल जोन बेंच ने डॉ सुभाष सी पांडे की याचिका पर यह निर्देश जारी करते हुए प्रकरण को निराकृत कर दिया। एनजीटी ने राज्य शासन को निर्देश दिए हैं कि नदी में सीवेज नहीं मिले इसके लिए पर्याप्त संख्या में एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट आदि बनवाए जाएं। इसकी टाइमलाइन गुजर चुकी है इसलिए अब इस काम में तेजी लाएं। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देशित किया गया है कि यदि अनुपचारित सीवेज जलस्रोत में मिलता हुआ पाया जाए तो सीपीसीबी द्वारा तय फॉर्मूले के अनुसार पर्यावरण क्षति हर्जाने का आकलन कर उसकी वसूली करें। इसे पर्यावरण संरक्षण पर खर्च किया जाएगा। याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान बताया था कि अभी तक न तो 33 मीटर दायरे के निर्माण चिन्हित हो पाए हैं और न इस दायरे में ग्रीनबेल्ट विकसित हुआ है। यही नहीं अनुपचारित सीवेज सीधे नदी में जा रहा है। क्योंकि एसटीपी नहीं बन पाए हैं। इससे नदी का पानी प्रदूषित हो गया है।
अवैध सीवेज निकासी की निगरानी के लिए बनाएं एप ट्रिब्यूनल ने स्टेट मॉनीटरिंग कमेटी को निर्देशित किया है कि वे अवैध सीवेज निकासी की शिकायतों और उनके निराकरण के लिए एक एप बनाएं। इससे लोगों को शिकायत करना और उसका निराकरण पाना आसान होगा। इसके साथ वाटर बॉडीज और उसके वेटलैंड का सीमांकन कर उसका संरक्षण करें।
जलस्रोतों में प्रदूषण की निगरानी के लिए यह करने के निर्देश – अनट्रीटेड सीवेज को जलस्रोतों में मिलने से रोकने के लिए पर्याप्त एसटीपी बनाए जाएं – स्लज मेन्योर का उपयोग कर पानी साफ करना
– इंडस्ट्रीज के साथ होटल, आश्रम, धर्मशालाओं में एसटीपी बनवाना – नदी के पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच – सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 का पालन – संबंधित एजेंसियों की निगरानी में हों खनन गतिविधियां
– चिन्हित किए गए प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई