ईओडब्ल्यू की जांच में दोनों चार्टर्ड अकाउंटेंट भूमिका संदिग्ध सामने आई। सीए ने न तो लेजर बुक से बकाया राशि का मिलान किया और न ही केशबुक और खातों व किसानों की सूची से मिलान किया। जांच में सामने आया है कि तत्कालीन बैंक सीईओ डीआर सिरोठिया और सीए पंकज अग्रवाल ने सहकारी केंद्रीय बैंक बकायादार किसानों की सूची भोपाल अपेक्स बैंंक प्रबंधन को भेज दी। इसमें किसानों के 25573 खातों का 74 करोड़ 83 लाख 96 हजार लोन बकाया बताया गया।
इसकी जांच की गई तो इतना लोन बकाया था ही नहीं। इसकी सहकारिता विभाग ने जांच की। जांच में गड़बड़ी सामने आई। फिर दूसरी बार बकाया राशि की मांग की गई। इसमें भी सीए ने सूची और बकाया राशि का सही से मिलान नहीं किया और बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर अपात्र किसानों को बकाएदार बताकर लोन की मांग कर ली। इसकी भी जांच की गई तो गड़बड़ी निकली। इसमें भी सीए और अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई। इसके आधार पर ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज कर लिया। एफआईआर में दर्ज किया कि समिति प्रबंधकों से तैयार कराए गए प्रस्तावों परीक्षण पर्यवेक्षकों, शाखा प्रबंधकों, कैडर अधिकारियों और सीए को करना था, जो नहीं किया गया। इससे नाबार्ड, अपेक्स बैंक के नियम-निर्देशों को ताक पर रखकर बेइमानी से अपात्र किसानों को लाभ पहुंचाया गया है। इससे 24 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ।
सीए की भूमिका अहम
जांच में सामने आया है कि तत्कालीन सीईओ डीआर सोरठिया और सीए की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके प्रस्तावों के आधार पर ही लोन राशि जारी की गई है। इनकी मिलीभगत होने के कारण मामला दबा दिया गया था। ईओडब्ल्यू में भी यह मामला 9 साल से फाइलों में बंद पड़ा था। अब फिर से इसकी सुध ली और आरोपियों को तलब किया है।