
दक्ष कलाकार ही बनाते हैं लद्दाखी महिलाओं का जूता थिग्मे पाबू को
भोपाल. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के अंतरंग भवन वीथि संकुल में बुधवार को लद्दाखी महिलाओं का जूता 'थिग्मे पाबूÓ को सितंबर माह के प्रादर्श के रूप में शामिल किया गया है। इसका उद्घाटन सहायक क्यूरेटर मानव संग्रहालय राकेश कुमार भट्ट ने किया। संकलन एवं संयोजन राजेश गौतम संग्रहालय एसोसिएट ने किया। प्रादर्श के बारे में राजेश गौतम ने बताया कि भारत के सुदूर उत्तर में स्थित लद्दाख अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति व सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इनके पहनावे में लद्दाखी पारंपरिक जूते 'पाबूÓ का विशेष महत्व है। इसे क्षेत्र के परिदृश्य और मौसमी परिस्थितियों के अनुरूप डिजाइन किया गया है।
अंगूठे की ओर उठे एवं एड़ी से ऊपर की ओर लंबाई में जूते की आकृति ठंडे वातावरण में पैरों की उष्णता बनाए रखती है। यहां प्रदर्शित थिग्मे पाबू लद्दाखी स्त्रियों का पसंदीदा जूता है। लद्दाख के कई स्थानों पर इसे थिग्माचन अथवा थिक्माचन के नाम से भी जाना जाता है। इसकी बनावट और अलंकरण में लद्दाख के भिन्न क्षेत्रों जैसे दाहानु, चांगपा पहाड़ी, नुब्रा घाटी, जंस्कार घाटी और लेह में थोड़ी बहुत भिन्नता पाई जाती है।
इस तरह होता है निर्माण
पारंपरिक रूप से दक्ष कारीगरों के द्वारा पाबू का निर्माण किया जाता है। ये कारीगर सामान्यत: गांव की बुजुर्ग महिला अथवा पुरुष हो सकते हैं। इसे बनाने के लिए भेड़ अथवा याक से प्राप्त ऊन को पारंपरिक करघे थक्सा पर बुनकर आवश्यक ऊनी कपड़ा तैयार कर लिया जाता है और इसे स्थानीय मोची से प्राप्त चमड़े पर सिला जाता है। पारंपरिक रूप से पाबू निर्माण के प्रमुख घटक कावा, खुल और पम्बू है। कावारू पाबू में चमड़े की सतह को कावा कहा जाता है। कावा याक भैंस की खाल से बनाया जाता है। पैरों में आरामदायक अनुभव के लिए पाबू के भीतर से कावा के ऊपर जूट की सतह तैयार की जाती है।
Published on:
03 Sept 2021 12:28 am
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