
नई गणना में वनराज की सख्या 750 तक होने का अनुमान...।
भोपाल। बाघों की गुर्राहट टकरा रही है। खुले जंगलों में विचरण करने वाले वनराज अब 'पगडंडियों' पर हैं। लड़-झगड़कर बाघों ने समझौता कर लिया है। वे चिडिय़ाघर के बाघों की तरह मिलकर रह रहे हैं। शावकों में भी 'जंगल का राजा' बनने की कोई होड़ नहीं है। ये सब सुनने में अजीब लग सकता है, मगर हालात जस के तस रहे तो कुछ साल बाद 'टाइगर स्टेट' के जंगलों की तस्वीर ऐसी ही हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं।
दरअसल, प्रदेश में जैसे-जैसे बाघ बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे उनका बसेरा कम होता जा रहा है। शहरों का विस्तार और गांव के खेत जंगलों की हदों पर कब्जा कर रहे हैं। नतीजा यह है कि बाघ और अन्य जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बाघों में क्षेत्र संघर्ष (टेरेटोरियल फाइट) भी छिड़ गया है।
जानकारों के मुताबिक, एक बाघ का इलाका पांच सौ वर्ग किमी तक होता है और वह भी तब जबकि उसे भोजन, पानी और बाघिन उपलब्ध हो। बाघों के मौजूदा कुनबे के हिसाब से बाघों को इतनी जगह नहीं मिल रही है।
समझौता कर रहे बाघ
वैसे तो बाघ सघन जंगलों में रहते हैं, लेकिन बीते सात वर्षों में वे सामान्य जंगलों को भी अपना बसेरा बनाने लगे हैं। अब सतना, कटनी, भोपाल, शहडोल, देवास, रायसेन, सीहोर, बालाघाट, दमोह, विदिशा, बैतूल, खंडवा, इंदौर, हरदा, बुरहानपुर, डिंडोरी, श्योपुर जिले भी बाघों के घर बने हैं।
यह खबर इस वक्त क्यों
वर्ष 2018 के बाद अब फिर से बाघों की गणना शुरू हो रही है। वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार, 526 बाघों के साथ प्रदेश देश में अव्वल था और वन्य जीव विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस बार यह संख्या 750 से अधिक हो सकती है। बीते तीन वर्षों में जंगलों का दायरा बढ़ाने की कोई बड़ी कोशिश नहीं हुई है।
हमारे जंगलों का दायरा
सघन, विरल, खुले वन मिलाकर 77482 वर्ग किलोमीटर है। इनमें से बाघों के लिए सिर्फ 42 हजार वर्ग किमी ही है, क्योंकि शेष खुले जंगलों में बाघ नहीं रहते हैं।
चार मुश्किलें
चार रास्ते
(वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ और पूर्व आइएफएस अधिकारी एचएच पावला से चर्चा के आधार पर)
100 से ज्यादा शावक जन्मे हैं इस साल
वन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते तीन साल में मध्यप्रदेश में देश में सबसे ज्यादा 80 बाघों की अलग-अलग कारणों से मौत हुई। इनमें से आधे से ज्यादा बाघों ने टेरिटोरियल फाइट में अपनी जान गंवाई। इधर, बीते एक साल में 100 से ज्यादा शावक जन्मे भी हैं।
| बाघों की मौत (वर्ष) | मौत |
| 2021 | 31 (अगस्त तक) |
| 2020 | 28 |
| 2019 | 29 |
| 2018 | 29 |
| 2017 | 25 |
| 2016 | 32 |
| 2015 | 17 |
| बाघों पर खर्च (वर्ष) | खर्च |
| 2014-15 | 166 |
| 2015-16 | 86 |
| 2016-17 | 223 |
| 2017-18 | 252 |
| 2018-19 | 114 |
| 2019-20 | 235 |
| (बाघ संरक्षण पर खर्च राशि करोड़ रुपए में) |
वन्य प्राणी संस्थान देहरादून द्वारा 2018 में जारी आंकड़े
| नेशनल पार्क | बाघों की संख्या |
| बांधवगढ़ | 124 |
| कान्हा | 108 |
| पन्ना | 61 |
| पेंच | 87 |
| सतपुड़ा | 47 |
| संजय डुबरी | 6 |
| रातपानी अभयारण्य | 45 |
Updated on:
24 Sept 2021 10:16 am
Published on:
24 Sept 2021 10:10 am
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