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ये कैसी संस्कृति: अंधा बांटे रेवड़ी, चुन- चुन के देई

साहित्य, कला, रंगमंच की स्थापित संस्थाएं दरकिनार जिन्हें कोई जानता-पहचानता नहीं, उन्हें अनुदान की सौगाात

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भोपाल। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने दो साल लंबे इंतजार के बाद वर्ष 2020-21 के लिए राज्य की साहित्य, कला और रंगमंच के क्षेत्र में काम करने वाली 365 संस्थाओं को दी गई अनुदान राशि की जो सूची जारी की उस पर बवाल मचा हुआ है। आरोप लग रहे हैं कि अनुदान ऐसा बांटा जैसे कि रेवडिय़ां हों। इंदौर, भोपाल और ग्वालियर की 100 साल सुनहरे इतिहास वाली नामचीन और आज भी सक्रिय साहित्य-कला समितियों के आवेदन खारिज कर रद्दी की टोकरी में डाल दिए। वहीं जिनके नाम-पहचान और कलाकारी कोई नहीं जानता उन्हें सुयोग्य पाया गया है। संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर खुद कह रही हैं कि उन तक भी अनुदान को लेकर शिकायतें पहुंच रही हैं, जिनको रेवड़ी बांटी उनकी हकीकत पता लगाने वे भौतिक सत्यापन करवा रही हैं।

365 संस्थाओं में से अकेले भोपाल से 209, बाकी 51 जिलों को महज 154
मालूम हो कि राज्य की जिन 365 साहित्य, कला और थियेटर के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं, समितियों व समूहों को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 10 हजार रुपए से लेकर 10 लाख तक के अनुदान के लिए चुना गया है, उनमें से अकेले 209 राजधानी भोपाल से हैं। वहीं, राज्य के बाकी 51 जिलों की मात्र 154 संस्थाओं के आवेदनों को अनुदान के लिए चुना गया। साहित्यकार और कलावंत ये भी सवाल उठा रहे हैं कि बाकी जिलों को तरजीह कम दी गई।

बड़े सवाल... जिनसे संस्कृति विभाग की धूमिल हो रही साख
प्रदेशभर के रंगकर्मियों-लेखकों और कलाकारों का कहना है कि राज्य सरकार से अपेक्षा है कि संस्कृति विभाग के अनुदान चयन की प्रक्रिया को पूर्ण पारदर्शी बनाई जाए, ठीक वैसी ही जैसे केंद्र सरकार ने अपना रखी है। केंद्र की कमेटियों में सरकारी महकमों के अलावा हर विधा से जुड़ी फैकल्टी यानी शख्सियत की संख्या ज्यादा होती है। अपने प्रदेश में तो अभी किसी को पता ही नहीं कि संस्कृति विभाग ने अनुदान बांटने संस्था चयन के लिए जो कमेटी बनाई उसमें कौन लोग हैं। कितने विभागीय अधिकारी थे और कितने विषय के जानकार यानी विद्वान। बेहतर होगा कि संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर कमेटी के सदस्यों के नाम, जिन संस्थाओं को अनुदान स्वीकृत हुआ उनके नाम दिए जाते। साथ जिनके खारिज हुए, उनके नाम और उनके आवेदन में क्या कमी रही इस संबंध में टीप के साथ सार्वजनिक किए जाते।

जिनका इतिहास सुनहरा... उनके पदाधिकारी भी कह रहे अब नीति बदलो सरकार
उपेक्षा-1
सेवा का सही मूल्यांकन नहीं हुआ- डॉ. पंत
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के तत्वावधान में संचालित हिन्दी भवन भोपाल के अध्यक्ष डॉ. कैलाश चंद्र पंत का कहना है कि सवाल ये नहीं है कि हमारे आवेदन को खारिज कर दिया। बल्कि ये है सरकार को वर्तमान अनुदान नीति की समीक्षा करनी चाहिए। ये देखना चाहिए कि कौन सी संस्थाएं स्तरीय कार्य कर रही हैं, उनमें आगे के लिए क्या संभावनाएं हैं... उनका प्रोत्साहित करना चाहिए। डॉ. पंत की पीड़ा है कि सेवा का सही मूल्यांकन नहीं हुआ, ये मुझे अच्छा नहीं लगा। खैर, जो दे उसका भला औ ना दे उसका भी भला... सरकार नहीं देगी तो समाज के पास जाएंगे। सरकार निराश कर सकती है, अपना-पराया कर सकती है लेकिन समाज हमेशा सहयोग देता है और देता रहेगा।

उपेक्षा-2
पारदर्शिता के साथ बताते कि आवेदन में कमी क्या थी- त्रिपाठी
देश-विदेश में चर्चित और समृद्ध इतिहास वाले रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप वर्ष 1952 से कर्मशील है। मौजूदा प्रमुख राम प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि विश्वभर में पहचान रखने वाली संस्था के खाते में शिखर सम्मान, पद्मश्री और महाराजा मानसिंह राष्ट्रीय पुरस्कार है। रामायण और पंचतंत्र हमारे हेरीटेज प्रोडक्शन हैं। संगीत नाटक अकादमी जैसे प्रमुख समारोह में भागीदारी और केंद्र सरकार से रेपेट्री ग्रांट मिली है। एकमात्र संस्था जिसके पास अपना थियेटर और 10 हजार किताबों की लाइब्रेरी है। इसके बाद भी हमें नहीं मालूम कि अनुदान के लिए क्या मानक हैं। ये भी नहीं मालूम कि आखिर क्यों हमारा आवेदन खारिज कर दिया गया। अफसोस ये है कि पारदर्शिता के साथ हमें ये तो बताते कि आवेदन में कमी क्या थी। खैर, सरकार की मती है, वो जाने उसने क्या सोचा और क्या किया।