इसके अंतर्गत आजादी की कहानी का वर्णन किया है, जिसमें तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, बाल गंगाधर तिलक, भगत सिंह, राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद, मंगल पांडे, वीर सावरकर जैसे महान क्रांतिकारियों की गाथा का वर्णन किया। नाटक में दिखाया गया कि देश के इन अमर बलिदानियों ने अपना स्र्वस्व न्यौछावर कर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इन्हीं वीर शहीदों के बलिदान ने देश की आजादी की नींव रखी। नाटक में दिखाया गया कि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को अपना राज्य सौंपने की बजाए उन्हें ललकारा और अपनी अंतिम सांस तक उनके खिलाफ युद्ध लड़ा लेकिन हार नहीं मानी। नाटक में आगे दिखाया गया कि चंद्रशेखर आजादी ने खुद को अंग्रेजों के हवाले करने के बाद खुद को गोली मारकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। वे हमेशा आजाद ही रहे। इसी तरह मंगल पांडे ने 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध हुंकार भरकर आजादी का बिगुल बजाया। इसके बाद ही देशभर में स्वंतत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई। वहीं, भगत सिंह भी अपनी अंतिम सांस तक देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।
अगली प्रस्तुति रचना पाठ की रही, जिसमें विजय ने स्वच्छता अभियान पर आधारित निमाड़ी रचना निरमल अपने गांव बणावां, सुरिमल आरती थाल सजावां… रचना सुनाई। महेश ने एक निमाड़ी परिवार की कथा -व्यथा पर आधारित रचना रड़ी-कूड़ी ने बीत्यो स्यालो, हाल चाल सब अच्छा छे… सुनाई। इसके बाद हरीश ने निमाड़ी में नर्मदाजी की महिमा का सुंदर बखान करते हुए नरबदा मैया तू महाराणी छे… रचना पेश की। प्रदीप ने जीवन में मिठास घोलती निमाड़ी बोली पर रचना प्रस्तुत की।