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गर्जना महारैली में जुटेगा जनजातीय समुदाय, डीलिस्टिंग आंदोलन को किया जाएगा मुखर

- आरएसएस का समविचारी संगठन जनजाति सुरक्षा मंच 10 फरवरी को राजधानी में उतरेगा मैदान में - संगठन के पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं ने गर्जना रैली की सफलता के लिए प्रदेश के विकासखंड स्तर तक प्रयास किए तेज- आयोजन में वनवासी समाज के भाई-बहन अपनी परंपरागत वेशभूषा और वाद्ययंत्रों के साथ होंगे शामिल

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गर्जना महारैली में जुटेगा जनजातीय समुदाय, डीलिस्टिंग आंदोलन को किया जाएगा मुखर

गर्जना महारैली में जुटेगा जनजातीय समुदाय, डीलिस्टिंग आंदोलन को किया जाएगा मुखर

भोपाल. वनवासियों की सनातनी पंरपराओं के संरक्षण, उनके अधिकारों और समस्याओं के निराकरण के लिए मुखर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समविचारी संगठन जनजाति सुरक्षा मंच 10 फरवरी को राजधानी में हल्लाबोल प्रदर्शन करेगा। मप्र-छग के जनजातीय सुरक्षा मंच के क्षेत्र संयोजक कालू सिंह मुजाल्दा, मंच के मप्र संयोजक कैलाश निनामा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रकाश उइके, पूर्व आईएएस और मंच के क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य श्याम सिंह कुमरे, राजधानी में होने वाली गर्जना डीलिस्टिंग महारैली के संयोजक सोभाग सिंह मुजाल्दा और सह-संयसोजक संजय सक्सेना ने बताया कि इस गर्जना महारैली का उद्देश्य धर्मांतरित हो चुके लोगों के कारण जनजातीय समुदाय के अधिकारों पर हो रहे अतिक्रमण के मुद्दे को मुखर करना है। इसके लिए 'डीलिस्टिंग महारैलीÓ का आगाज किया जा रहा है। भोपाल में दशहरा मैदान पर होने वाली इस महारैली के लिए प्रदेश के कोने-कोने से जनजातीय समुदाय के लोग इक_े होंगे। मंच के पदाधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि गर्जना रैली के लिए वनवासी बंधु और बहनें अपनी परंपरागत वेशभूषा और वाद्ययंत्रों के साथ शामिल होंगे। इसके लिए संगठन ने विकासखंड स्तर तक प्रयास किए हैं।

ये हैं मुख्य मांगें
जनजाति सुरक्षा मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि पुरखों की संस्कृति ही संविधान के हक का आधार है। धर्मांतरित होकर जिन्होंने संस्कृति छोड़ दी, उन्होंने जनजाति की पहचान भी छोड़ दी। अब ऐसे लोग आरक्षण भी छोड़ दें। ऐसे में अनुसूचित जाति की तर्ज पर अनुसूचित जनजाति में भी ईसाइयों और इस्लाम को अपनाने वाले यानी धर्मांतरित हो चुके सदस्यों की डीलिस्टिंग हो। ऐसे लोग कानून की परिभाषा में अल्संख्यक श्रेणी में हैं, उन्हें वहीं रहना चाहिए।

वर्ष 1970 से लंबित है डीलिस्ंिटग बिल
मंच के पदाधिकारियों का कहना है कि संसद में वर्ष 1970 से डीलिस्टिंग बिल लंबित है, जिसे अब हर हाल में पारित होना ही चाहिए। इसके अभाव में 5 प्रतिशत धर्मांतरित लोग, मूल जनजातियों की 70 फीसदी नौकरियां, छात्रवृत्ति और विकास संबंधी निधियों-फंड को लील रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि 95 प्रतिशत वनवासियों को मात्र 30 प्रतिशत लाभ ही मिल पा रहा है। यह स्थिति अन्यायपूर्ण है।

जो भोलेनाथ का नहीं...
मालूम हो कि संगठन की ओर से आंदोलन के लिए जनजातीय समुदाय के बीच जो ब्रोशर, पर्चें और साहित्य बांटा गया है, उसमें स्पष्ट लिखा है कि जो भोलेनाथ का नहीं वो मेरी जात का नहीं। इसके साथ ही सभी का आह्वान किया है कि आओ, हम सब पंचायत से लेकर संसद तक एकजुट हो जाएं। संवैधानिक हक के लिए इस आंदोलन को अपनी ताकत दें। इसलिए कहा गया है कि चलो भोपाल... ज्यादा से ज्यादा संख्या में।