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गर्भावस्था में मां और बच्चे पर अटैक करता है स्क्रब वायरस, पहचानें इसके लक्षण

गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है, जिसके कारण गर्भवती महिला का शरीर किसी अन्य व्यक्ति के मुकाबले बाहर की चीजों से ज्यादा तेज़ी से प्रभावित होता है। इसका बड़ा नुकसान भ्रूण को होता है, क्योंकि उसका विकास मां के रक्त से ही होता है।

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गर्भावस्था में मां और बच्चे पर अटैक करता है स्क्रब वायरस, पहचानें इसके लक्षण

भोपाल/ मध्य प्रदेश समेत देशभर में बारिश का सिलसिला अपने चरम पर है। जहां एक तरफ ये बारिश जलापूर्ति का काम कर रही है, वहीं दूसरी तरफ ये कई जानलेवा बीमारियां का कारण भी बन रही है। इन्हीं में से एक जानलेवा बीमारी स्क्रब टाइफस भी है, बारिश के कारण हरियाली, जलभराव, गंदगी में जूं के आकार के रिकेटसिया कीट, जिन्हें आम भाषा में पिस्सू भी कहा जाता है, उत्पन्न हो रहे हैं। ये कीट इतने जहरीले हैं कि, इनके काटने से स्क्रब टाइफस नामक जानलेवा बुखार काफी तेज़ी से फैल रहा है। हैरानी की बात ये है कि, इससे ग्रस्त लोगों की पुष्टी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल, इंदौर, रतलाम और मंदसौर जैसे शहरों में भी हो चुकी है। इस बुखार का जाल देशभर में काफी तेज़ी से फैल रहा है।


वैसे तो स्कर्ब टाइफस बुखार का समय पर उपचार ना किया जाए, तो ये किसी के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है। लेकिन खासतौर पर ये गर्भवती महिलाओं के लिए काफी खतरनाक है। क्योंकि, गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है, जिसके कारण गर्भवती महिला का शरीर किसी अन्य व्यक्ति के मुकाबले बाहर की चीजों से ज्यादा तेज़ी से प्रभावित होता है। इसका बड़ा नुकसान भ्रूण को होता है, क्योंकि उसका विकास मां के रक्त से ही होता है। लेकिन, इस कीट के काटने से गर्भवती महिला के रक्त में मिलने वाले लार के कारण उसके पेट में पलने वाले भ्रूण के दिमाग और नर्वस सिस्टमपर प्रभाव पड़ता है, जिससे या तो वो मां के पेट में ही जान गंवा सकता है और अगर जान बच भी गई, तो वो जीवनभर के लिए मासनिक या शारिरिक दिव्यांग भी हो सकता है। इसलिए इस बीमारी को खासतौर पर प्रेगनेंट महिलाओं के लिए ज्यादा नुकसान दे माना जा रहा है।

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WHO ने शौध कर की पुष्टी

स्क्रब टाइफस गरीब भ्रूण के परिणामों से जुड़े भारत में अघोषित तीव्र ज्वर की बीमारी के लिए एक महत्वपूर्ण अपरिचित कारण है। जनवरी 2010 से जुलाई 2012 तक एक तृतीयक देखभाल विश्वविद्यालय शिक्षण अस्पताल में उपस्थित स्क्रब टाइफस के साथ गर्भवती रोगियों के बीच मातृ और भ्रूण के परिणामों का अध्ययन किया गया। स्क्रब टाइफस को क्लिनिकल मानदंड के साथ-साथ स्क्रब एलिसा पॉजिटिविटी या एक एस्केर द्वारा निदान किया गया था। कुल मिलाकर, स्क्रब टाइफस से पीड़ित 738 रोगियों ( 4.5 फीसदी ) में से 33 गर्भवती थीं; तीसरी तिमाही में 57.6%, दूसरे में 27.3%, और पहली तिमाही में केवल 15.2 फीसदी थे। गहन देखभाल के लिए 69.7 फीसदी प्रवेश आवश्यक है। पहले बताई गई 12.2 फीसदी मृत्यु दर की तुलना में मृत्यु दर कम ( 3%, n = 1 ) थी। सभी रोगियों का उपचार एज़िथ्रोमाइसिन से किया गया था। इन गर्भधारणों में से 51.5% में भ्रूण का खराब परिणाम देखा गया, जिसमें भ्रूण की क्षति 42.4% और प्रीटरम चाइल्डबर्थ में 9.1 फीसदी थी। स्क्रब टाइफस जटिल गर्भावस्था, एज़िथ्रोमाइसिन के साथ उपचार के बावजूद एक खराब भ्रूण परिणाम से जुड़ा हुआ है। एक बहुमत को जीवित रहने के लिए गहन देखभाल उपचार की आवश्यकता होती है।

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लाइलाज होने के कारण खतरनाक है बीमारी

फिलहाल, इस बीमारी का अब तक कोई इलाज ना होने के कारण इसे लाइलाज बीमारियों में गिना जा ररहा है, जिसके कारण इसे जानलेवा कहा जा रहा है। इस बीमारी को जानलेवा मानने का एक महत्वपूर्ण कारण भी है। क्योंकि इस बीमारी का वायरस दिन पर दिन फैलते जा रहा हैं, बावजूद इसके अब तक इसकी कोई पर्याप्त दवा बाजार में उपलब्ध नहीं है। ऐसे में विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस बीमारी के प्रति पूरी जानकारी ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।


ऐसे फैलती है ये बीमारी

पिस्सु के लार में एक खरनाक जीवाणु "रिक्टशिया सुसुगामुशी" मौजूद होता है जो पिस्सू के काटते ही उसके लार के द्वारा मनुष्य के खून में फैल जाता है। सुसुगामुशी दो शब्दों को मिलाकर बनाया गया है।

मुशी - मतलब माइट।

इस जीवाणु की वजह से लिवर, दिमाग व फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं जो मरीज को मल्टी ऑर्गन डिसऑर्डर के स्टेज पर ले जाते हैं। यहां पहुंचने के बाद पीड़ित लाइलाज अवस्था में चला जाता है।

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दिखने लगते हैं ये लक्षण

-इस बीमारी में प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है, जिसके कारण पीड़ित के बचने की उम्मीदें काफी कम हो जाती हैं।


स्क्रब टाइफस से बचने का घरेलू उपचार

-दूध और हल्दी

इस बीमारी में कैल्शियम की कमी हो जाती है साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी तेजी से कम होती है, जिसे नियंत्रित रखने के लिए कम से कम दिन में दो बार एक गिलास दूध में एक से दो छोटे चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर पीना फायदेमंद होता है।

-मेथी का सेवन

मेथी की पत्ती या पाउडर को एंटी बैक्टीरियल माना जाता है। रोज़ाना दिन में एक बार इसे पानी के साथ पीने से रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

-एप्सम साल्ट और नीम

सेंधा नमक और नीम में शरीर के रक्त में मौजूद जर्म्स से लड़ने की क्षमता मिलती है। इसे आप एक कप पानी में एक चुटकी एप्सम साल्ट और आधा चम्मच नीम पाउडर मिलाकर पी सकते हैं। साथ ही, रोगी को एक बाल्टी में दो चम्मच सेंधा नमक को नीम में उबालकर स्नान भी किया जा सकता है। इससे चमड़ी के जर्म्स से मुक्ति मिलेगी।

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इन बातों का रखें ध्यान

-अगर आप घास में बिना कुछ बिछाए बैठते हैं तो ये पिस्सु आपको काट सकता है। ऐसे में, घास में नंगे पैर चलने से बचें।


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