
नवरात्रि में लाभकारी होती है ये विशेष पूजा, प्रसन्न होकर मां दुर्गा देती हैं नौ दिनों का फल
भोपाल/ शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इन दिनों में माता को प्रसन्न करने की होड़ लग जाती है। भक्त अपने अपने तरीके से और क्षमता के अनुसार माता पूजन करने में जुट गए हैं। हालांकि, कई लोग ऐसे भी है, जो अपनी व्यस्तताओं या समस्याओं के कारण इन महत्वपूर्ण दिनों में भी माता की विशेष पूजा करने से वंचित हैं। अगर आप भी उनमें से एक हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी पूजा विधि जो न सिर्फ नवरात्रि में करने से विशेष फल देती है, बल्कि मां दुर्गा को भी अत्यंत प्रिय है।
नवरात्रि का महत्व
वैसे तो मां दुर्गा अपने भक्तों पर हर दिन बनाए रखती हैं, लेकिन नवरात्र के इन 9 दिन दिनों को अन्य दिनों के मुकाबले विशेष फलदायी माना जाता है। क्योंकि इन दिनों में मां दुर्गा अपने भक्तों के बीच पृथ्वी पर आकर निवास करती है। जिससे भक्तों के साथ मां दुर्गा का संबंध सीधे जुड़ जाता है और इस दौरान मां की पूजा और भक्ति का फल जल्दी प्राप्त होता है। ये भी माना जाता है है कि, माता अपने भक्तों को कभी दुखी नहीं देख सकतीं। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती। यही वजह है कि मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए कभी भी उनकी उपासना की जा सकती है। चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना जल्दी मिलता है।
पंचांग साधन का प्रयोग होता है प्रभावी
मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध पंडितों में शुमार ज्योतिषाचार्य पं. वीरेन्द्र रावल जी के अनुसार, देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्रोत हैं। पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के देवी सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। देवी सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। देवी सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है।
सहस्त्रार्चन देता है अभूतपूर्व फल
सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है, जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वो शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए। अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
मौन रहकर इस तरह करें अर्चन
अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए। इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए।
प्रसाद में दें ये खास चीज़
अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए। बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस अर्चन में आपकी आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है।
Published on:
30 Sept 2019 03:20 pm
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