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विदा हो रहा मुबारक माह, क्या आप जानते हैं 27वीं शब की यह ख़ासियत

विदा हो रहा मुबारक माह, क्या आप जानते हैं 27वीं शब की ख़ासियत

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shab e qadr

विदा हो रहा मुबारक माह, क्या आप जानते हैं 27वीं शब की ख़ासियत

भोपालः रमज़ान का मुकद्दस महीना अपनी आखरी मंजिल की तरफ आ पहुंचा है। चंद घंटों के महमान रहे इन मुकद्दस दिनो की 27वीं शब भी गुज़र गई। शब-ए-कद्र की अहम रात होने की वजह से इस रात में ज़्यादार मस्जिदों में खत्म तराबीह का सिलसिला रहा। आमतौर पर 27वीं शब (रात) को कई मस्जिदो में खास नमाज़ तराबीह में कुरआन पाक खत्म होता है। इसके साथ ही, कई मस्जिदों में लोग अल्लाह से दुआ में अपने गुनाहों की माफी मांगते नज़र आए तो, कहीं हाथ उठाकर देश-दुनिया में अमनो अमान की दुआएं करते नज़र आए। इसके बाद रातभर इबादत करने के बाद कई अक़ीदतमंदो ने सुबह का रोज़ा रखा।

मस्जिद के इमाम ने बताई 27वीं शब की ख़ासियत

पुराने शहर की मस्जिद नक़्शबंदान में तराबीह के ज़रिए क़ुरआन करीम पूरा हुआ, इसके बाद नमाज़ अदा करने वाले मुख्तदियों ने एक दूसरे को ख़त्म क़ुरआन पाक
की ख़शी के मौके पर एक दूसरे को मुबारकबाद दी, साथ ही मस्जिद के ज़िम्मेदार साथियों ने तराबीह पूरी होने की खुशी में तबर्रुख़ के तौर पर मिठाई बाटी। इस मौके पर मस्जिद के इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाले) मोलवी मो. जुबैर साहब ने खिताब करते हुए सदक़ातुल फ़ितर और ऐतकाफ की फज़ीलत पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि, अपने साथ ही अपने गरीब भाइयों को भी ईद की खुशियों में शामिल करने का सबसे अच्छा ज़रिया सदक़ातुल फ़ितर के ज़रिए उनकी मदद करना है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा क़ुरआन इंसानियत के लिए सीधी राह दिखाने का ज़रिया है। खुशनसीब हैं वो लोग जो क़ुरआन के हाफ़िज है।

रहमतों वाला है यह महीना

उन्होंने रमजान में शब-ए-कद्र की फजीलत पर ब्यान किया। शब-ए-क्रद में अल्लाह की इबादत कर हमें अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि अल्लाह फरमाता है कि, तुम इस रात को खोजो क्योंकि, यह रात हज़ार महीनो की इबादत से कहीं ज़्यादा बेहतर है। अगर इंसान शब-ए-कद्र की रात को पा ले यानि उसमें अपने रह की इबादत कर ले तो उस इबादत को पूरी ज़िंदगी इबादत करने बेहतर बताया है। इस रात में अल्लाह किसी भी मांगने वाले को ख़ाली हाथ नहीं लौटाता। उन्होंने आगे कहा कि, अल्लाह ने रमज़ान को अपना महीना करार दिया है। इसी महीने में अल्लाह ने क़ुरआन को ज़मीन पर भेजा और 27वीं शब में इसे मुकम्मल (पूरा) किया, इसलिए भी रमज़ान और क़ुरआन का काफी गहरा रिश्ता है।