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मंदसौर गोलीकांड : पुलिस को मिली क्लीनचिट, कलेक्टर व एसपी को भी नहीं माना सीधे दोषी

जस्टिस जेके जैन आयोग ने मंदसौर गोलीकांड में पुलिस एवं सीआरपीएफ को क्लीनचिट दे दी है।

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भोपाल

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Umesh yadav

Jun 19, 2018

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मंदसौर गोलीकांड

भोपाल. जस्टिस जेके जैन आयोग ने मंदसौर गोलीकांड में पुलिस एवं सीआरपीएफ को क्लीनचिट दे दी है। नौ महीने देरी से आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ को तितर-बितर करने और आत्मरक्षा के लिए गोली चलाना आवश्यक और न्यायसंगत था।

आयोग ने निलंबित चल रहे तत्कालीन कलेक्टर स्वतंत्र कुमार और एसपी ओपी त्रिपाठी को सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया है। केवल इतना कहा है कि पुलिस और जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर था। आपसी सामंजस्य नहीं होने से आंदोलन उग्र हुआ। जिला प्रशासन को किसानों की मांगों व समस्याओं की जानकारी नहीं थी। उन्होंने जानने का प्रयास भी नहीं किया।

गोली चलाने में पुलिस ने नियमों का पालन नहीं किया। पहले पांव पर गोली चलानी चाहिए थी। छह जून 2017 में हुई इस घटना में 5 किसानों की मौत हुई थी। सूत्रों के अनुसार इस रिपोर्ट के विधानसभा के 25 जून से शुरू हो रहे मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना बहुत कम है।

यह बताया घटनाक्रम
रिपोर्ट में कहा गया है कि 6 जून 2017 को महू-नीमच फोरलेन पर बही पाŸवनाथ फाटे के पास चक्काजाम किया गया था। असामाजिक तत्वों ने आंदोलनकारियों में शामिल होकर तोडफ़ोड़ की। दोपहर 12.30 बजे तत्कालीन सीएसपी साईं कृष्णा थोटा जवानों के साथ पहुंचे।

इसी बीच आसमाजिक तत्वों ने सीआरपीएएफ एएसआइ सहित 7 जवानों को घेर लिया। उन पर पेट्रोल बम फेंके और मारपीट की। पुलिस ने स्थिति नियंत्रण से बाहर जाते देख गोली चलाने की चेतावनी दी। उसके बाद आरक्षक विजय कुमार ने दो गोली चलाई, जिससे कन्हैयालाल और पूनमचंद की मौत हो गई। एएसआइ बी शाजी ने तीन तो अरुण कुमार ने दो गोली चलाई जो मुरली, सुरेंद्र और जितेंद्र को लगी।

थाना पिपल्यामंडी में घुसकर तोडफ़ोड़ करने वालों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस आरक्षक प्रकाश ने 4, अखिलेश ने 9, वीर बहादुर ने 3, हरिओम ने 3 और नंदलाल ने 1 गोली चलाई। इसमें चैनराम, अभिषेक और सत्यनारायण मारे गए। इसके अलावा रोड सिंह, अमृतराम और दशरथ गोली लगने से घायल हुए।

आयोग ने ये उठाए सवाल
अफसरों ने किसानों की मांगें जानने की कोशिश नहीं की। जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर रहा। मंदसौर से 13 किमी दूर सुबह 10.30 बजे चक्काजाम हुआ। सूचना 2 घंटे बाद मिली। इससे स्थिति ज्यादा बिगड़ी। 5 जून को आंदोलनकारियों ने तोडफ़ोड़ व आगजनी की। उन पर तत्काल कार्रवाई नहीं हुई।

5 जून की घटना को देखते हुए प्रशासन ने पर्याप्त मात्रा में अग्निशामक उपाय नहीं किए। आंदोलन के पहले पुलिस ने असामाजिक तत्वों को पकडऩे में रुचि नहीं दिखाई। कलेक्टर ने एसपी को आदेश दिया था कि पुलिस के साथ कार्यपालक मजिस्ट्रेट व वीडियोग्राफर भेजा जाए, पर सीएसपी के साथ दोनों नहीं थे। प्रशासन व पुलिस में सामंजस्य नहीं दिखा।

सीएसपी ने गोली चलने की तत्काल सूचना दी होती तो गोली चलने की दूसरी घटना रोका जा सकता था। अप्रशिक्षित बल से आंसू गैस के गोले चलवाए गए जो असफल साबित हुए। महत्वपूर्ण साक्ष्य सीआरपीएफ अफसरों व जवानों की जली वर्दी, जूते और राइफलें घटना के 13 दिन बाद जब्त किए।

9 महीने देरी से आई रिपोर्ट
यह रिपोर्ट 11 सितंबर 2017 को देनी थी, लेकिन जांच पूरी नहीं होने के कारण 11 जून को मुख्य सचिव को बंद लिफाफे में सौंपी। सामान्य प्रशासन विभाग ने कार्रवाई के लिए गृह विभाग को दो दिन पहले यह रिपोर्ट दी।

ये तथ्य भी शामिल
सीआरपीएफ की गोलियों से 2 किसानों की मौत और 3 घायल। पुलिस की गोलियों से 3 किसानों की मौत और 3 घायल। सीआरपीएफ और राज्य पुलिस का गोली चलाना न तो अन्यायपूर्ण है और न ही बदले की भावना से उठाया कदम।

मजिस्ट्रेट की अनुमति के बाद पिपल्याहाना थाना प्रभारी ने पहले लाठी चार्ज, फिर गोली चलाने के आदेश दिए। बही पाŸवनाथ फाटे पर कोई भी किसान नेता मौजूद नहीं था। ऐसे में आंदोलन असामाजिक तत्वों के नियंत्रण में आ गया।

211 गवाहों के बयान
आयोग ने घटना के 100 दिन बाद कार्रवाई शुरू की। उसने 211 गवाहों के बयान लिए, जिनमें 185 आमजन और 26 सरकारी गवाह थे। आयोग के समक्ष सरकारी गवाहों का प्रतिपरीक्षण वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने किया। 20 सितंबर को आयोग ने पहला बयान दर्ज किया।
अंतिम गवाह के रूप में 2 अप्रैल 2018 को तत्कालीन मंदसौर कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह के बयान लिए गए।