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#Navratri: अद्भुत हैं ये देवी, चरण काशी, सिर उज्जैन तो धड़ है भोपाल में

नवरात्र में यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।

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Nitesh Tripathi

Apr 08, 2016

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नवरात्र के अवसर पर mp.patrika.com सीरिज के तहत हर दिन आपको मध्य प्रदेश के कुछ ऐसे अनोखे मंदिरों के बारे में बता रहा है जिनकी परंपराएं रोचक होने के साथ-साथ श्रद्धालुओं को चौंकाती भी हैं। आज जानिए भोपाल के नजदीक तरावाली मंदिर के बारे में...


राजधानी से 35 किमी दूर स्थित है प्राचीन हरसिद्धि माता मंदिर। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। साल भर यहां पर भक्तों की भीड़ रहती है। यहां के देवी मां को लेकर ये किंवदंती है कि देवी मां का मस्तक उज्जैन में, चरण काशी में और धड़ तरावली (भोपाल) में विद्यमान है। कहा जाता है कि देवी मां ने उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे। नवरात्र में यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।


-नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष आयोजन किए जाते हैं। यहां विशाल मेला लगता है।
-किंवदंती है कि दो हजार वर्ष पूर्व काशी नरेश गुजरात की पावागढ़ माता के दर्शन करने गए थे।
-वे अपने साथ मां दुर्गा की एक मूर्ति लेकर आए और मूर्ति की स्थापना की और सेवा करने लगे।
-उनकी सेवा से प्रसन्न होकर देवी मां काशी नरेश को प्रतिदिन सवा मन सोना देती थीं।
-जिसे वो जनता में बांट दिया करते थे।
-यह बात उज्जैन तक फैली तो वहां की जनता काशी के लिए पलायन करने लगी।
-उस समय उज्जैन के राजा विक्रमादित्य थे। जनता के पलायन से चिंतित विक्रमादित्य बेताल के साथ काशी पहुंचे।
-वहां उन्होंने बेताल की मदद से काशी नरेश को गहरी निद्रा में लीन कर स्वयं मां की पूजा करने लगे।
-तब माता ने प्रसन्न होकर उन्हें भी सवा मन सोना दिया।

-विक्रमादित्य ने वह सोना काशी नरेश को लौटाने की पेशकश की।
-लेकिन काशी नरेश ने विक्रमादित्य को पहचान लिया और कहा कि तुम क्या चाहते हो।
-तब विक्रमादित्य ने मां को अपने साथ ले जाने का अनुरोध किया। काशी नरेश के न मानने पर विक्रमादित्य ने 12 वर्ष तक वहीं रहकर तपस्या की।
-मां के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वरदान मांगे, पहला वह अस्त्र, जिससे मृत व्यक्ति फिर से जीवित हो जाए और दूसरा अपने साथ उज्जैन चलने का।
-तब माता ने कहा कि वे साथ चलेंगी, लेकिन जहां तारे छिप जाएंगे, वहीं रुक जाएंगी।
-लेकिन उज्जैन पहुंचने सेे पहले तारे अस्त हो गए। इस तरह जहां पर तारे अस्त हुए मां वहीं पर ठहर गईं। इस तरह वह स्थान तरावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


-तब विक्रमादित्य ने दोबारा 12 वर्ष तक कड़ी तपस्या की और अपनी बलि मां को चढ़ा दी, लेकिन मां ने विक्रमादित्य को जीवित कर दिया।
-यही क्रम तीन बार चला और राजा विक्रमादित्य अपनी जिद पर अड़े रहे।
-ऐसे में तब चौथी बार मां ने अपनी बलि चढ़ाकर सिर विक्रमादित्य को दे दिया और कहा कि इसे उज्जैन में स्थापित करो।
-तभी से मां के तीनों अंश यानी चरण काशी में अन्नपूर्णा के रूप में, धड़ तरावली में और सिर उज्जैन में हरसिद्धी माता के रूप में पूजे जाते हैं।