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RSS में दो फाड़ : पूर्व प्रचारकों ने बनाई नई पार्टी, चुनाव में ठोकेगी ताल

देश के कोने-कोने से आरएसएस के पूर्व प्रचारक और स्वयंसेवक भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए।

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RSS में दो फाड़ : पूर्व प्रचारकों ने बनाई नई पार्टी, चुनाव में ठोकेगी ताल

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 और लोक सभा चुनाव से एक साल पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस में दो फाड़ हो गए हैं। इसकी हकीकत देखने को मिली रविवार को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में, जब यहां देश के कोने-कोने से आरएसएस के पूर्व प्रचारक और स्वयंसेवक एक आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान संघ के पूर्व प्रचारकों ने एक नई पार्टी का गठन कर दिया है, जिसका नाम 'जनहित पार्टी' रखा गया है। खास बात ये है कि, इस राजनीतिक पार्टी के गठन का उद्देश्य भाजपा सरकार को घेरना है। जनहित पार्टी बैठक के दौरान पांच सूत्रीय एजेंडा भी सुनिश्चित किया गया है। इन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर पार्टी आगामी चुनाव में सरकार को घेरने की योजना बना रही है।


बैठक के दौरान आरएसएस के पूर्व प्रचारक अभय जैन ने कहा कि, देश की जनता आज एक स्वच्छ राजनीति की तरफ देख रही है। लेकिन, देश के नेता अब जनता से जुड़े मुद्दों को उठाना भूल गए हैं। भाजपा की ही बात करे तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान विचारकों ने जिन विचारों के आधार पर पार्टी की स्थापित की थी, वो विचार आज की भाजपा ने कहीं नजर नहीं आते। हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का पालन करते हुए राजनीति में एक नया उदाहरण पेश करेंगे। बैठक के दौरान जनहित पार्टी ने जिन पांच मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में उतरने की बात कही गई वो कुछ इस प्रकार हैं।

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इन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी जनहित पार्टी

- शिक्षा

बैठक के दौरान अभय जैन ने कहा कि, हर बच्चा देश की पूंजी है, इसे संवारें। प्रतिभा के हिसाब से योग्यता पाना हर एक का अधिकार है। शिक्षा समाज का दायित्व है। जन्म से इंसान पशुवत पैदा होता है, शिक्षा और संस्कार से वो समाज का अभिन्न घटक बनता है। जो काम समाज के अपने हित में हों उसके लिए शुल्क दिया जाए, ये उल्टी बात है। पेड़ लगाने और सींचने के लिए हम पेड़ से पैसा नहीं लेते, क्योंकि वो ही आगे चलकर हमारा जीवन है। पैसे देकर शिक्षित होने वाला बचपन से ही व्यक्तिवादी बनता है और समाज की अवहेलना करता है। भारत में 1947 से पहले सभी देशी राज्यों में कहीं भी शिक्षा पर शुल्क नहीं वसूला जाता था, उच्चतम शिक्षा तक निशुल्क हुआ करती थी। गुरुकुलों में तो भोजन के साथ-साथ रहने तक की व्यवस्था रहा करती थी।


- स्वास्थ्य

जन्मा हुआ हर नागरिक देश की संपति है, उनका जीवन बचाना ही दूसरे इंसान की सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से एक है। चिकित्सा के लिए पैसा देना पड़े ये अचंभे की बात है। चिकित्सा भी निशुल्क होना चाहिए हमारे यहां पहले चिकित्सा के लिए भी पैसा नहीं देना पड़ता था। लेकिन, आजकल तो कई मंदिरों में भी जाने तक का पैसा चुकाना पड़ता है।


- दंडनीति

कहां जाएं लोग, पुलिस या न्यायलय। 70 फीसदी लोग आज भी अन्याय सहते हुए ही जीवन गुजार देते हैं पर कोर्ट नहीं जाते। न्यायालय से न्याय दिलाने की पहली जिम्मेदारी पुलिस की होती है, जिसपर भरोसा नहीं है, वकील महंगे हैं और न्यायलयों में मुकदमों के अंबार हैं। पेशी पर जाओ तो कई बार तारीख बढ़ाई जाती है। न तो क्षीणदंड होना चाहिए और न ही उग्रदंड। बल्कि मृदुदंड होना चाहिए। दंड से ही जनता को नियंत्रित करने से धर्म की हानि होती है।


- अर्थव्यवस्था

देश की अर्थव्यवस्था का सिद्धांत हर एक के लिए काम होना चाहिए। चाणक्य ने कहा है कि, भुभुक्षिता किं न करोति पापम् यानी भूखा आदमी कोई भी पाप कर सकता है। अर्थव्यवस्था में व्यक्ति। मनुष्य, श्रम और मशीन में समन्वय ही अर्थव्यवस्था का उद्देश्य है। धन के अधिकारिक सम वितरण की जरूरत है। हर एक को श्रम का अवसर देना सरकार का दायित्व है। आधिकाधिक उपभोग का सिद्धांत ही मनुष्य के दुखों का कारण है। भारत में न्यूनतम उपभोग को या संयमित उपभोग को आधार माना गया है। प्रत्येक को काम अर्थव्यवस्था का आधारभूत लक्ष्य होना चाहिए।

अभय जैन ने कहा कि, देश के हालात कुछ प्रकार के हैं कि, यहां 10 साल का बच्चा और 70 साल का बुजुर्ग तो काम में जुटा है। लेकिन, दूसरी तरफ 25 साल का नौजवान बेकारी से ऊबकर आत्महत्या कर रहा है। मशीन मानव का सहायक है, प्रतिस्पर्धी नहीं। अगर मशीन मानव का स्थान लेकर उसे भूखा मारे तो वह यंत्र के आविष्कार के उद्देश्य के विपरीत होगा। निर्जीव मशीन इसके लिए दोषी नहीं है, बुराई उस अर्थव्यवस्था की है, जिसमें विवेक लुप्त हो जाता है। विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल हर देश को परिस्थितियों और जरूरतों के हिसाब से करना चाहिए। खाली मशीन सिर्फ पूंजी खाता है, लेकिन मनुष्य बेकार हो तो रोजाना खाना चाहिए ही ये तो विकेंद्रित अर्थव्यवस्था से ही संभव है।

जिम्मेदार कार्यपालिका

हम सरकार तो बदल सकते है, सरकारी काम का तरीका नहीं। राजा कालस्य कारणम् यानी परिस्थिति का दोषी शासक होता है। जिम्मेदार कार्यपालिका सांसद या विधायिका कानून बनाती है कार्यपालिका यानी सरकार शासन तंत्र कानून नहीं बनती परंतु कानून के अनुसार देश चले यह जिम्मेदारी उसी पर होती है आज भी हम कह सकते हैं कार्यपालिका का लक्ष्य कारणम् अर्थात आज जो भी बुराइयां दिख रही हैं उसमें कार्यपालिका की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है अतः नेता को अपने आचरण का पूरा ध्यान रखना चाहिए।