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हाथरस की नौटंकी शैली में आम आदमी की दशा

शहीद भवन में नाटक 'डाकू' का मंचन  

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हाथरस की नौटंकी शैली में आम आदमी की दशा

भोपाल। शहीद भवन में शुक्रवार को नाटक 'डाकू' का मंचन हम थिएटर ग्रुप ने किया। कानपुर-हाथरस की नौटंकी शैली में हुए इस नाटक में दर्शकों को दोबोला, चौबोला, बहरतवी, दौड़ शैली में संवाद अदायगी सुनने को मिली। 1.30 घंटे के इस नाटक का लेखन मुद्राराक्षस और निर्देशन बालेन्द्र सिंह बालू ने किया। नाटक के माध्यम से ये मैसेज देने की कोशिश की गई कि सत्ता में बैठे लोग लालच देकर आम आदमी को अपने जाल में फंसा देती है। जब उस आम आदमी पर जूल्म होता है तो वह बागी बन जाता है।

नाटक की शुरुआत एक महाराजा के दरबार से होती है। राजा कुछ ऐसा काम करना चाहता है, जिससे उसकी पूरे राज्य में वाहवाही हो जाए। वह अपने हाकीम को इस काम की जिम्मेदारी सौंपता है। हाकीम एक डकैत गिरोह को सरेंडर करने को कहता है, लेकिन गिरोह उसे ही लूट लेता है।

वह गांव में रहने वाले बचनराम को नकली डाकू बनने के लिए कहता है, और उसके बदले बड़ी रकम देता है और कुछ ही दिनों में जेल से छुड़ाने का आश्वासन देकर उसे राजा के सामने पेश कर देता है। जब उसकी पत्नी रिहाई के लिए जाती है तो राजा उसके साथ दुष्कर्म कर हत्या करवा देता है। जब ये बात बचनराम को पता चलती है वह जेल तोड़कर राजा के महल में घुस जाता है और राजा की हत्या कर सच में डाकू बन जाता है।

इंसान को नादान बनाती हैं रोटियां
डायरेक्टर का कहना है कि नाटक में गानों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने की कोशिश की गई। इस नाटक के 25 से ज्यादा शो हो चुके हैं। नाटक में जो आज डाकू ना रहा, उन्हीं के आगे बिका जमाना, इंसान को नादान बनाती है रोटियां, लाचार बनाती है रोटियां, किस्मत पर है ताला हो रामा सुन निर गुमिया, नाम जान क्या करोगें, बचन राम था नाम, बचन सिंह डाकू हुआ बदला लेना काम... जैसे संवाद गायन शैली में सुनने को मिले।