scriptकांटों भरी डगर, उस पर भितरघात का डर, कैसे पार होगी चुनावी नैया | Thorns full of dread, fear of tremors over him, how will cross the el | Patrika News

कांटों भरी डगर, उस पर भितरघात का डर, कैसे पार होगी चुनावी नैया

locationभोपालPublished: Mar 25, 2019 09:56:45 pm

Submitted by:

anil chaudhary

– लोकसभा चुनाव : दिग्गजों के लिए अपने ही बन रहे चुनौती, सीट बदलने से भी बढ़ी मुश्किलें

loksabha chunaav

Loksabha Chunav 2019

जितेन्द्र चौरसिया, भोपाल. कांग्रेस-भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए पहली किस्त के प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इसमें कहीं सीट बदलने से दिग्गज नेता का सियासी कैरियर दांव पर है तो कहीं भितरघात का भंवर उनकी नैया को डगमगा रहा है। सबसे ज्यादा कांटों भरी राह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की है, क्योंकि उनके सामने 35 साल से भाजपा का अभेद्य गढ़ बनी भोपाल सीट को जीतने की चुनौती है।
– कांग्रेस के दिग्गज
1. दिग्विजय सिंह – भोपाल से दिग्विजय का उतरना नए समीकरण रच रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को गोविंदपुरा और हुजूर में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। इस बार भी इन दोनों इलाकों को साधने की चुनौती रहेगी। उत्तर व मध्य कांग्रेस के मजबूत इलाके हैं। राष्ट्रवाद के नाम पर भाजपा के वोटों का धुव्रीकरण करने से नुकसान हो सकता है।
ये बाधा – हार्ड कोर हिन्दुत्व-राष्ट्रवादी वर्ग में विरोध। संघ से अदावत। भाजपा का चुनाव को राष्ट्रवाद बनाम दिग्विजय बनाना। पार्टी में गुटबाजी का विरोध। सुपर सीएम की छवि से विरोधी बढ़े।
ये सकारात्मक- बड़ा राजनीतिक चेहरा। एससी-एसटी वोटबैंक में बड़ी सेंध। मुस्लिम वोट एकजुट होंगे। भाजपा की अंदरूनी कलह का फायदा मिल सकता है। पूरे क्षेत्र की पकड़। तीन विधायक (एक मंत्री) भोपाल से। बेटे जयवद्र्धन भी मंत्री।
2. कांतिलाल भूरिया – रतलाम-झाबुआ कांग्रेस का गढ़ है। आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में कांतिलाल को सबसे ज्यादा खतरा भितरघात से है। पूर्व विधायक जेवियर मेढ़ा विरोध में हैं। जयस का दखल है। मोदी लहर के बाद इसी सीट पर देश में सबसे पहले उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में 8 में से 3 सीट पर कांग्रेस की बढ़त है।
ये बाधा – पार्टी में भितरघात। जेवियर मेढ़ा सहित अन्य का विरोध। बेटे विक्रांत के विधानसभा चुनाव हारने से मनोवैज्ञानिक नुकसान। क्षेत्र में संघ की पकड़ बढ़ी। जयस का दखल।
ये सकारात्मक – लगातार सक्रिय। राजनीतिक रसूख है। आदिवासी वोटबैंक में तगड़ी पकड़। आदवासी चेहरा होने के साथ सकारात्मक राजनीति। भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद उतना मजबूत प्रतिद्वंद्वी का न होना।
3. मीनाक्षी नटराजन – पिछली बार मोदी लहर में मीनाक्षी से यह सीट चली गई थी। मंदसौर गोलीकांड के बाद कांग्रेस के यहां बढ़त बनाने के आसार थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विधानसभा चुनाव में आठ में से सात सीटें भाजपा ने जीती हैं। किसान आंदोलन के गुस्से को भुनाने में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस असफल रही। यही सबसे बड़ी चुनौती है।
ये बाधा – क्षेत्रीय गुटबाजी। किसानों के गुस्से को न भुना पाना। अफीम-डोडाचूरा कारोबार पर अंकुश और दखल न होना। भाजपा-संघ का वर्चस्व लगातार बढऩा।
ये सकारात्मक – पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की कोर टीम में होना। मिलनसार व्यक्तित्व। क्षेत्र में सक्रियता। जमीनी पहचान रखना। भाजपा के अंदरूनी विवादों का फायदा मिलना।
भाजपा के दिग्गज
1. नरेंद्र सिंह तोमर- ग्वालियर सीट बदलकर मुरैना से लडऩे के दांव पर ही जीत-हार टिकी है। वे पिछली बार ग्वालियर में कम अंतर से जीते थे। इस बार फिर हालात अच्छे नहीं थे। विधानसभा चुनाव में ग्वालियर संसदीय क्षेत्र की 8 में से 7 सीट पर कांग्रेस आगे रही। हालात मुरैना में भी ऐसे ही हंै, लेकिन मुरैना में तोमर को पांच साल की एंटी इंकम्बेंसी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
ये बाधा – मुरैना सांसद रहे हैं। क्षेत्र में नाराजगी बढऩे पर 2014 में सीट छोड़ ग्वालियर से लड़े। यहां हालात बिगड़े तो फिर मुरैना का रुख किया। मौकापरस्ती के चलते कार्यकर्ताओं में अंदरूनी विरोध है। इससे जमीनी नेटवर्क ध्वस्त हुआ।
ये सकारात्मक – मुरैना में अनूप मिश्रा के विरोध का फायदा तोमर को मिल सकता है। ग्वालियर की तुलना में एंटी इंकम्बेंसी कम है। अंचल में कद्दावर नेता की छवि। भाजपा के परंपरागत वोट बैंक का साथ मिलना।
2. राकेश सिंह – जबलपुर भाजपा का गढ़ है, इसलिए राकेश सिंह के सारे समीकरण परंपरागत वोटबैंक पर निर्भर हैं। फिलहाल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की करीबी राकेश की मुश्किलें आसान कर रही है, लेकिन इस बार कांग्रेस कठिन सीटों पर मजबूत प्रत्याशी लाने की रणनीति अपना रही है। फिलहाल जबलपुर प्रत्याशी कांग्रेस ने घोषित नहीं किया है, लेकिन महाकौशल मुख्यमंत्री कमलनाथ का क्षेत्र है, इसलिए जबलपुर में पार्टी की मजबूती के लिए काम करेंगे।
ये बाधा – लोकप्रिय चेहरा न होना। मिलनसार व सहज उपलब्ध नहीं। प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद खुद का उतना कद न बना पाना। क्षेत्रीय पकड़ में कमी। जमीनी नेटवर्क नहीं।
ये सकारात्मक – प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते संगठन का साथ। अमित शाह का सपोर्ट। भाजपा का गढ़ होना। परंपरागत वोटबैंक का साथ। कांग्रेस में मजबूत प्रत्याशी न होना।
3. नंदकुमार सिंह चौहान – खंडवा सीट पर नंदकुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती भितरघात की है। पिछली बार कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष व सांसद अरुण यादव को हराकर यह सीट नंदकुमार ने जीती थी। पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस विधानसभा चुनाव में अपनी हार के लिए नंदकुमार को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार मानती हैं। ऐसी ही स्थिति अरुण यादव के साथ है। उनका कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा खुलकर विरोध कर रहे हैं।
ये बाधा- पार्टी की स्थानीय अंदरूनी कलह। चिटनीस ने पटरी न बैठना। क्षेत्र में कम सक्रियता। बयानबाजी के विवादों से नकारात्मक छवि बनना। बेटे के कारण विवादों में घिरना। पार्टी में लगातार साइडलाइन होना।
ये सकारात्मक – प्रतिद्वंद्वी अरुण यादव का उनकी पार्टी में विरोध। कांग्रेस की कमजोरी का फायदा मिल सकता है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते क्षेत्रीय संगठन का साथ मिलना। मिलनसार हैं। बूथ नेटवर्र्किंग बेहतर।
4. प्रहलाद पटेल- दमोह सीट भी भितरघात के जोखिम से भरी है। प्रहलाद की स्थानीय भाजपाई दिग्गजों से पटरी नहीं बैठती। उमा भारती की करीबी के कारण प्रदेश नेतृत्व में हाशिए पर चले गए थे, लेकिन उनकी सक्रियता ने ही अस्तित्व बचाए रखा। अभी कांग्रेस ने यहां टिकट घोषित नहीं किया है।
ये बाधा- पार्टी की स्थानीय गुटबाजी व कलह। उमा की करीबी का नुकसान। भितरघात को कंट्रोल न कर पाना। स्थानीय दिग्गज नेताओं से मतभेद।
ये सकारात्मक- सरल व्यक्तित्व। क्षेत्र में सक्रिय। बड़ा राजनीतिक कद रखना। क्षेत्र में पकड़। स्थानीय परंपरागत वोटबैंक साथ होना।
कोई चुनाव आसान नहीं होता है। दिक्कतें हर जगह होती हैं। हर सीट और हर चुनाव मुश्किल होता है, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व पर जनता को भरोसा है। इस बार 2014 से भी प्रचंड जीत होगी।
– राकेश सिंह, अध्यक्ष, प्रदेश भाजपा
भाजपा पहले मध्यप्रदेश से गई और अब दिल्ली से जाने की बारी है। जहां तक स्थानीय सीट की बात है तो हर जगह की स्थिति अलग होती है। हमारे यहां कोई अंदरूनी विरोध नहीं है। इस बार कांग्रेस 20 से ज्यादा सीट प्रदेश में लाएगी।
– कांतिलाल भूरिया, सांसद, रतलाम-झाबुआ

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