
भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों ने रवीन्द्र भवन में नाटक ‘जीवन के रंग बिज्जी के संग’ का मंचन किया गया। देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में साहित्यकार विजयदान देथा की तीन कहानियों अनेकों हिटलर, दूजौ कबीर और आदमखोर को मंच पर जीवंत किया गया। नाटक की पहली कड़ी में अनेकों हिटलर में पांच चचेरे भाइयों का चित्रण किया गया है, जो आजादी के बाद निर्वासित हुए लोगों की जमीनों का फायदा उठाते हैं और शहर जाकर ट्रैक्टर खरीदते हैं। लौटते समय रास्ते में एक साइकिल सवार उनसे आगे निकल जाता है और वो इसे अपना अपमान समझते हैं। पांचो भाई अपना रौब दिखाने के लिए साइकिल सवार को टक्कर मार देते हैं और साइकिल सवार के साथ उसके सपने, उसकी प्रेमिका के सपने सब खत्म हो जाते हैं। वहीं, दूजौ कबीर में दिखाया गया कि एक राज्य के राजा व उनकी बेटी एक बार कबीर के नगर से गुजरते हैं। राजकुमारी कबीर व उसकी कलाकृतियों को देखने की इच्छा राजा से जाहिर करती है। कलाकृतियां देख कर राजा बहुत प्रभावित होता है और उन्हें खरीदने की इच्छा जाहिर करता है किंतु महज पैसों के बदले अपनी कलाकृतियों का सौदा कबीर के आदर्शों के खिलाफ होता है। अतः कबीर राजा का प्रस्ताव ठुकरा देता है। जिससे राजा क्रोधित होकर कबीर से दुर्यव्यवहार करता है किंतु कबीर के आदर्श राजकुमारी के हृदय में ऐसी छाप छोड़ते हैं जो आज तक किसी पुरुष ने न छोड़ी हो।
दूसरों से ईर्ष्या में खुद का नुकसान
वहीं, कहानी आदमखोर में दिखाया गया कि एक पुजारी के मां बाप उसकी हरकतों से तंग आकर एक मंदिर में देवी के हवाले कर देते हैं। वो देवी की भक्ति में लीन हो जाता है पर शायद देवी तक वो भक्ति पहुंच नहीं रही थी। एक दिन वो देवी से तंग आकर ये ठान बैठा कि अब वो देवी कि मूर्ति को चूर-चूर करके ही चैन की नींद सोएगा। देवी उसके सामने प्रकट हो जाती है और उसे वरदान देती है कि तू जो भी मांगेगा वो सारी इच्छाएं पूरी होंगी। लेकिन वरदान आस-पड़ोसियों को दूना फलेगा। जलन के मारे उसने अपने पड़ोसियों के लिए मौत का कुआ खोदा जिसमें स्वयं उसकी पत्नी समा गई और वो चाह कर भी अपनी पत्नी को बचा ना सका और अंत में पुजारी के विवेक के आगे देवी का वरदान हार गया।
Published on:
15 Jun 2022 10:34 pm
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