गौरतलब है कि अगस्तज 2016 में डीजल टैंक घोटाला भी सामने आया था। इसमें भी लगातार जांच सुनवाई हुई और लगभग सभी को क्लिनचिट दे दी गई थी। इसमें भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनने की आशंका जताई जा रही है। तत्कालीन निगमायुक्त छवि भारद्वाज ने दोनों ही घोटालों को पकड़ा था। शुरुआती जांच कर कार्रवाई भी की थी। बाद में सभी अफसर, कर्मचारी अपने पुराने काम पर लौट आए।
करोड़ों रुपए के घोटाले, पुलिस में मामला दर्ज कराने से बचता रहा निगम नगर निगम में परिवहन पाट्र्स, डीजल से लेकर कई घोटाले सामने आए। दो घोटाले तो खुद निगमायुक्त ने ही उजागर किए। बावजूद इसके इनकी जांच पुलिस को सुपूर्द करने की बजाय निगम ने विभागीय स्तर पर ही करने का निर्णय लिया। विभागीय जांच का नतीजा ये रहा कि ये लंबी चली और दोषी भी बच गए।
ये है वाहन पाट्र्स घोटाला
इसमें गैर जरूरी तौर पर वाहनों के पाट्र्स की खरीदी की गई। फाइल बनाई जाती और पहले से तय ठेकेदार से पाट्र्स खरीदी कर भुगतान कर दिया जाता। ये पाट्र्स किस वाहन में लगे, कब लगे, किसकी रिपोर्ट के आधार पर पाट्र्स लगाए गए, फाइलों से ये तथ्य गायब रहे। इसमें आशंका बनी कि सिर्फ पाट्र्स खरीदी की फाइलें बनाकर राशि ठेकेदार को दिलाई गई, इसमें पाट्र्स की खरीदी नहीं की गई। पैसा संबंधितों की जेब में गया। इसकी ही जांच चल रही है।
इसमें गैर जरूरी तौर पर वाहनों के पाट्र्स की खरीदी की गई। फाइल बनाई जाती और पहले से तय ठेकेदार से पाट्र्स खरीदी कर भुगतान कर दिया जाता। ये पाट्र्स किस वाहन में लगे, कब लगे, किसकी रिपोर्ट के आधार पर पाट्र्स लगाए गए, फाइलों से ये तथ्य गायब रहे। इसमें आशंका बनी कि सिर्फ पाट्र्स खरीदी की फाइलें बनाकर राशि ठेकेदार को दिलाई गई, इसमें पाट्र्स की खरीदी नहीं की गई। पैसा संबंधितों की जेब में गया। इसकी ही जांच चल रही है।