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विवेक तन्खा: एक सामान्य कार्यकर्ता से बड़े नेता के रूप में उभरे, इस्तीफे के हो सकते हैं दूरगामी परिणाम

locationभोपालPublished: Jul 07, 2019 03:17:01 pm

Submitted by:

Pawan Tiwari

राहुल गांधी की नाराजगी के बाद सबसे पहले विवेक तन्खा ने इस्तीफा दिया।
विवेक तन्खा 2014 औऱ 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।
विवेक तन्खा अभी राज्यसभा सांसद हैं।

vivek tankha

विवेक तन्खा: एक सामान्य कार्यकर्ता से बड़े नेता के रूप में उभरे, इस्तीफे के हो सकते हैं दूरगामी परिणाम

भोपाल. लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की। राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) को मनाने के लिए कांग्रेस के सभी नेताओं ने कोशिश की लेकिन किसी ने भी अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया। राहुल गांधी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि मेरे इस्तीफे के बाद किसी भी राज्य के प्रदेश अध्यक्ष, पदाधिकारी और कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा नहीं दिया। ऐसे में मध्यप्रदेश के नेता विवेक तन्खा ( Vivek Tankha ) ने सबसे पहले अपने पद से इस्तीफा दिया।
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राहुल ने जताई नाराजगी
लोकसभा ( Lok sabha ) चुनाव में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हवाले से खबरें आईं को वो मध्यप्रदेश के सीएम कमल नाथ ( Kamal Nath ) और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत से नाराज हैं। कहा गया कि इन दोनों नेताओं ने पार्टी के हितों से ज्यादा अपने बेटों के भविष्य को संवारने का काम किया। बता दें कि कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा तो अशोक गहलोत ने अपने बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से टिकट दिलाया था। नकुल नाथ तो अपना चुनाव जीत गए पर वैभव गहलोत जोधपुर से अपना चुनाव हार गए थे।
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विवेक तन्खा ने सबसे पहले दिया त्याग पत्र
राहुल गांधी की नाराजगी के बाद 27 जून, 2019 को सबसे पहले मध्यप्रदेश के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कांग्रेस के लीगल सेल के प्रमुख के साथ-साथ पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे का कांग्रेस में दूरगामी प्रभाव पड़ा। कांग्रेस में इस्तीफों की झड़ी लग गई। बीते कुछ वर्षों में गांधी परिवार का विवेक तन्खा पर भरोसा बढ़ गया था। तन्खा का कद भी मध्यप्रदेश की सियासत में लगातार बढ़ रहा था तभी तो 2014 में हार के बाद भी 2019 में उन्हें एक बार फिर से लोकसभा का टिकट दिया गया था।
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इस्तीफे का होगा प्रभाव
विवेक तन्खा ने अपने पद से सबसे पहले इस्तीफा दिया। उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दिया था। विवेक तन्खा का इस्तीफा निश्चित रूप से मप्र की राजनीति में बड़ा असर डाल सकता है। वो मध्यप्रदेश की सियासत में एक बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं। कमलनाथ और अशोक गहलोत सीएम हैं। गहलोत के AICC के कार्यकारी अध्यक्ष बनने पर कुछ चर्चा हुई थी, लेकिन राहुल की नाराजगी के बाद यह नहीं कहा जा सकती है कि वो आगे कार्यकारी अध्यक्ष बनेंगे। मुख्यमंत्री पद के लिए कमल नाथ के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव हार गए हैं। अब सिंधिया के समर्थक उनको पीसीसी का चीफ बनाने की मांग कर रहे हैं।
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हो सकते हैं बेहतर विकल्प
एमपी में अभी चुनाव नहीं होने हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की छवि ग्वालियर अंचल से बाहर ज्यादा नहीं है। कहा जाता है कि उनके पास गरीबों के साथ संपर्क का अभाव है और राज परिवार से भी ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस ने एमपी इकाई में लगभग सभी जाति संयोजनों की कोशिश की है। माना जा सकता है कि विवेक तन्खा अपनी स्वच्छ छवि और मंडला, जबलपुर और झाबुआ जैसे आदिवासी इलाकों में काम करते रहने के कारण पार्टी को प्रदेश में फिर से स्थापित करने के लिए एक आदर्श विकल्प हो सकते हैं। विवेक तन्खा के कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साथ भी अच्छे संबंध हैं। इन दोनों के अच्छे समीकरण के कारण तन्खा प्रदेश के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
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बडे़ नेता के रूप में उभरे विवेक तन्खा
विवेक तन्खा कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उभरे। वो मौजूदा समय में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं और 2014 और 2019 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि दोनों बार विवेक तन्खा को जबलपुर संसदीय सीट से भाजपा के राकेश सिंह से हार का सामना करना पड़ा है। विवेक तन्खा कांग्रेस नेता के साथ-साथ कांग्रेस में एक बड़े वकील नेता के रूप में भी उभरे। वो मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता के तौर पर एक विश्वसनीय कानूनी राजनीतिज्ञ के रूप में उभरे हैं। उन्हें आम तौर पर अपने गृह राज्य के नेताओं के सलाहकार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 2012 के राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और दो वोटों से पीछे रह गए।
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पिता कोर्ट में थे जज
विवेक तन्खा और उनके परिवार को राजनीति के अलावा कई अन्य कारणों से उनके क्षेत्र में सम्मानित किया जाता है। उनके पिता दिवंगत, आरके तन्खा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और उनके ससुर, स्वर्गीय कर्नल अजय नारायण मुशरान दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में 10 साल तक वित्त मंत्री रहे। विवेक तन्खा ने 1979 में अपना कानूनी करियर शुरू किया, तो उन्होंने कई वर्षों से विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए शिक्षा में सामाजिक कार्य में सक्रिय रहे। मप्र के प्रमुख जिला अस्पताल के मुद्दे पर भी वो सक्रिय रहे।
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कांग्रेस महाधिवक्ता के रूप में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर प्रभाव डाला था। वरिष्ठ वकीलों और न्यायाधीशों के सुझाव पर, उन्होंने 2004 के बाद दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत की। उनके राजनीतिक कनेक्शन का मतलब यह भी था कि वह राजधानी में पावर सर्किट में शामिल हो गए, जिसके कारण उन्हें 2016 में राज्यसभा सदस्य के रूप में सांसद के रूप में नामित किया गया। इससे पहले, वह यूपीए शासन के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता थे, जो रिलायंस और दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित मामलों को संभालते थे। धीरे-धीरे वो सोनिया गांधी के करीब आते गए। शिवराज सरकार के खिलाफ व्यापमं मुद्दों को लेकर उन्होंने कानूनी लड़ाई शुरू की।
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