
हमें प्रकृति की जरूरत है, प्रकृति को हमारी जरूरत नहीं
भोपाल. भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्तमान 52 प्रकार के कानून मौजूद हैं। वहीं राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आठ अधिनियम पारित कराये हैं। फिर भी क्लाईमेट चेंज तेजी से मानव जाति को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यह एक बडी चुनौती है। सबकी जिम्मेदारी है कि पर्यावरण, धरा और अस्तित्व को बचाने के लिए पर्यावरण को साफ और स्वच्छ रखें। हमें प्रकृति की जरूरत है, प्रकृति को हमारी जरूरत नहीं है। इसलिए इस दिशा में हमें ही आगे आना होगा। यह बात अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर मानव अधिकार आयोग द्वारा मंगलवार को प्रशासन अकादमी में आयोजित कार्यक्रम में एनजीटी के पूर्व अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका ने स्वच्छ पर्यावरण को मूलभूत अधिकार के रूप में मान्यता दी है। हर व्यक्ति को स्वच्छ वायु, स्वच्छ भूमि और स्वच्छ जल मिलना, उसका मूलभूत और मानवीय अधिकार है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिये हमें तीन सिद्धांतों यानी प्रदूषण आधारित सिद्धांत, एहतियाती सिद्धांत और संवहनीय विकास आधारित सिद्धांत पर फोकस होकर काम करने की जरूरत है। तभी हम अपने पर्यावरण और अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकेगें। 72वें अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर आयोग ने स्वच्छ पर्यावरण - मानव अधिकार विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया था।
प्रकृति के लिए मधुमक्खी को भी बचाना होगा
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार जैन ने कहा कि न्यायपालिका ने जनहित के जरूरी विषय पर विभिन्न निर्णय देकर अपनी भूमिका निभाई है। न्यायपालिका ने स्वच्छ पर्यावरण को मूलभूत अधिकार माना है। इस अधिकार के तहत हम सभी को प्रदूषण रहित पर्यावरण, साफ और स्वच्छ जल, वायु, भूमि, समुद्र और शुद्ध वानस्पतिक व जैविक विविधता की उपलब्धता हम सबको उपलब्ध होना ही चाहिये। आज जरूरत इस बात की है कि स्वच्छ पर्यावरण के लिये हम सब एकजुट होकर प्रभावी प्रयास करें। पर्यावरणविद् पाण्डुरंग हेगड़े ने कहा कि यदि हमें अपने जीवन में मधु की मधुरता बनाए रखनी है, तो हमें मधुमक्खी को भी बचाना होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम स्वच्छ जलवायु चाहते हैं, तो जीवनशैली बदलना होगा। पानी और प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें।
Published on:
11 Dec 2019 08:03 am
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