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पीटीएम में जाते हैं तो हर माता-पिता पूछें अपने बच्चे की ग्रोथ

  पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग (पीटीएम) बच्चों के स्कोर कार्ड दिखाने तक ही सीमित होकर रह गई है। मीटिंग में टीचर्स अभिभावकों के सामने ही बच्चों पर ज्यादा नंबर लाने का दबाव डालते हंै। जबकि, पीटीएम का उद्देश्य अभिभावक और टीचर्स की आपसी बातचीत के जरिए बच्चे को आत्मनिर्भर बनाना था।

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भोपाल. पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग (पीटीएम) बच्चों के स्कोर कार्ड दिखाने तक ही सीमित होकर रह गई है। मीटिंग में टीचर्स अभिभावकों के सामने ही बच्चों पर ज्यादा नंबर लाने का दबाव डालते हंै। जबकि, पीटीएम का उद्देश्य अभिभावक और टीचर्स की आपसी बातचीत के जरिए बच्चे को आत्मनिर्भर बनाना था। ताकि बच्चे का संपूर्ण व्यक्तित्व उभरकर सामने आए। लेकिन, बच्चों में अधिक नंबर लाने के दबाव के कारण आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ी हंै। इसीलिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पीटीएम के संबंध में स्कूलों को गाइडलाइंस जारी की है। जिसमें ऐसे रिस्क फैक्टर का भी जिक्र है, जिन पर स्कूल, अभिभावक और टीचर्स ध्यान नहीं देते हैं।

इन पांच बातों पर करें फोकस
-बच्चे के सोशल नेटवर्क के बारे में जानें
-दोस्तों के साथ कैसा व्यवहार है, कैसे बोलता है
-अपने इमोशन या स्किल दिखा पाता है या नहीं
-कम माक्र्स आने या फेलियर पर कैसा है रिएक्शन
-टीचर्स से पूछें बच्चे की ग्रोथ में वे क्या करें योगदान
पॉजिटिव बातें सामने लाने से बढ़ता है मनोबल
आजकल पीटीएम का कॉन्सेप्ट बदल गया है। मीटिंग में छात्र खुद को अपमानित महसूस करता है। उसकी कमियां ही नहीं गिनाई जाती है। जबकि पॉजिटिव बातें भी सामने आनी चाहिए। इससे उनका मनोबल बढ़ता है।हेल्पलाइन पर भी इस तरह के कुछ मामले सामने आते हैं। इसमें बदलाव की जरूरत है।
हेमंत शर्मा, संचालक, माध्यमिक शिक्षा मंडल
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पहले पीटीएम में एसडब्ल्यूओटी (विश्लेषण, कमजोरियां, खूबियां और सुधार ) को शामिल किया जाता था, लेकिन आज इसकी परिभाषा बदल गयी है। इसमें बदलाव की आवश्यता है। पैरेंट्स टीचर मीटिंग में यह तय करना जरूरी है कि बच्चे को पढ़ाई में कहां दिक्कत आ रही है। कहां-कहां सपोर्ट की जरूरत है।
राजेश शर्मा, सीबीएसई सहोदय ग्रुप
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आज स्कूल हो या कोचिंग हर जगह बच्चे के नंबरों की बात होती है। जबकि, नंबर कम आने का कारण क्या है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है इस पर बात होनी चाहिए। बच्चों पर लगातार दबाव बढ़ता ही जा रहा है। इसमें सुधार की जरूरत है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की गाइडलाइन का पालन होना चाहिए
कमल विश्वकर्मा, अध्यक्ष, पालक महासंघ
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सोशल मीडिया का भी प्रभाव
बच्चों में रिस्क फैक्टर्स की पहचान जरूरी है। साथ ही आर्ट, म्यूजिक, डांस, नुक्कड़ नाटक आदि के जरिए बच्चों की प्रतिभा निखारी जा सकती है।
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