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महिला अपराध के गवाह को मिलेगा संरक्षण, फिलहाल प्रत्येक जिले से एक-एक चिह्नित केस पर फोकस

-एट्रोसिटी एक्ट के साक्षी संरक्षण योजना की तर्ज पर महिला अपराधों में भी गवाहों को मिलेगी सुरक्षा

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महिला अपराध के गवाह को मिलेगा संरक्षण, फिलहाल प्रत्येक जिले से एक-एक चिह्नित केस पर फोकस

महिला अपराध के गवाह को मिलेगा संरक्षण, फिलहाल प्रत्येक जिले से एक-एक चिह्नित केस पर फोकस

भोपाल. अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लिए लागू साक्षी संरक्षण योजना की तर्ज पर प्रदेश में महिला अपराधों के गवाहों को सुरक्षा देने के लिए मप्र में कवायद की जा रही है। इसका उद्देश्य महिलाओं से हिंसा करने वाले आरोपियों को कोर्ट में अधिकतम सजा दिलाई जा सके। इसके लिए केस में गवाहों को न केवल संरक्षण दिया जाएगा, बल्कि कोर्ट में पेशी की तय तारीख से पहले से अवगत कराया जाएगा। गौरतलब है कि कोर्ट में गवाहों के बयान का महत्व है। यहां बता दें, इस तरह की व्यवस्था एट्रोसिटी एक्ट में दर्ज केसों में है। साक्षी संरक्षण योजना के तहत गवाहों को सुरक्षा देने के साथ ही उनके कोर्ट पेशी के दौरान हुए खर्च की राशि भी मुहैया कराई जाती है। हालांकि महिला अपराधों के मामले में गवाहों को किराया या अन्य किसी तरह की राशि मुहैया नहीं कराई जाएगी।
महिला अपराधों में मिले अधिकतम सजा
पुलिस मुख्यालय की महिला सुरक्षा शाखा द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव में क्रूरतम अपराधों मसलन बलात्कार, हत्या, गैंगरेप आदि में गवाहों को संरक्षण दिया जाएगा। गवाहों को कोर्ट में लगी पेशी की तारीख की जानकारी देने के साथ ही उन्हें कोर्ट में उपस्थिति का फॉलोअप लिया जाएगा, जिससे गवाहों के बयान समय पर और सटीक हो सकें और आरोपियो को अधिकतम सजा मिले।


फिलहाल एक जिले से एक केस
महिला सुरक्षा शाखा फिलहाल मप्र के प्रत्येक जिले से एक-एक केस में गवाहों को संरक्षण देने के साथ ही मामले की समीक्षा की जाएगी। इसके लिए प्रत्येक जिले से उन केसों को चिह्नित किया गया है, जो कोर्ट में हैं और जिनकी प्रकृति कू्ररतम श्रेणी में है। अगले चरण में इस योजना में अधिक केसों को शामिल किया जाएगा।
महिला अपराधों में सजा की दर महज 26.5 फीसदी
मप्र में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों में आरोपियों की सजा का प्रतिशत काफी कम है। वर्ष 2021 में महज 26.5 फीसदी मामलों में ही आरोपियों को सजा मिल सकी, जबकि 73.5 फीसदी में आरोपी साक्ष्य नहीं मिलने या गवाहों के बयान बदलने की वजह से रिहा हुए। एक साल में मप्र के अलग-अलग न्यायालयों में 4530 प्रकरणों में फैेसला आया, जिनमें से 1200 में ही दोष सिद्ध हो सका, जबकि 3330 में दोष सिद्ध नहीं हो सका था।