
450 वर्ष पहले गुरूनानक देव के बसाए मंगू मठ को किया ध्वस्त
भुवनेश्वर। ओडिशा के जगन्नाथपुरी ( News of puri temple ) के 75 मीटर के दायरे में आने वाले सदियों पुराने मठ ध्वस्त ( News of demolish historical monastery ) किए जाने की कड़ी में सोमवार को मंगू मठ ध्वस्त कर दिया गया। जिला प्रशासन की देखरेख में शांतपूर्ण माहौल में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई।
पंजाब के मुख्यमंत्री (C M of Punjab) का पत्र नहीं आया काम
श्रीमंदिर का 75 मीटर का दायरा सिक्योरिटी जोन घोषित किया गया है। दरबार साहिब श्रीअमृतसर की तर्ज पर यहां भी 75 मीटर चौड़ा गलियारा बनाया जा रहा है। मंगू मठ को बचाने के लिए सिख समुदाय के लोगो के प्रयास विफल रहे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मंगू मठ न तोडऩे की अपील की थी। उन्होंने पत्र में श्रीगुरुनानक देव के 550 वां प्रकाश दिवस का भी हवाला दिया था। ओडिशा सरकार की इस कार्रवाई से सिख संगत में रोष है।
आरती वाला स्थल मंगू मठ
यह मामला ओडिशा हाईकोटज़् की वकील सिख सुखविंदर कौर और इतिहासकार अनिल धीर तथा सिख मामलों के जानकार प्रो.जगमोहन सिंह द्वारा उठाए जाने के बाद चर्चा में आया था। मंगू मठ गुरु साहिबान द्वारा उच्चारण की गयी आरती वाला स्थल बताया जाता है। उल्लेखनीय है कि पुरी ? का मंगू मठ नानक पंथी उदासीन संप्रदाय का मठ है। इसे गुरु नानक देव के पुत्र ने 450 साल पहले स्थापित किया था। इन दिनों पुरी में प्राचीन मठ मंदिरों को तोडऩे का क्रम जारी है। कई मठाधीशों ने आरोप लगाया है कि उनकी राजनीतिक पहुंच न होने के कारण मठ- मंदिर तोड़े जा रहे हैं।
लंगुली व एमार सहित कई मठ ढहाए जा चुके
पुरी के जगननाथ मंदिर के आसपास कई मठ हैं। इनमें प्रमुख मठों में से लंगुली मठ, एमार मठ तोड़े जा चुके हैं। इन मठों के लिए जगह भी मंदिर द्वारा ही आवंटित की गई बताई जाती है, परन्तु समय बीतने से पुजारियों ने मठों के स्थान का व्यापारीकरण कर लिया और कई अन्य निर्माण भी कर लिए। जहां तक मंगू मठ का संबंध है, इस समय इसका एक कमरा मंदिर के रूप में है, जिसमें पांच-छ: मूर्तियां रखी हुई हैं, जिनमें से एक मूर्ति श्री गुरु नानक देव जी के सुपुत्र और उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चंदजी की भी है। इतिहासकार अनिल धीर का कहना है कि यह मंगू मठ सिख प्रचारक भाई अलमस्त जी ने उदासी सम्प्रदाय (बाबा श्री चंद जी वाले) ने 1615 में बनवाया था। इतिहास में कुछ साक्ष्य मिलते हैं कि यह मठ श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरती 'गगन मै थाल रवि चंद दीपक बने उच्चारण स्थल पर बनाया गया था।
इतिहास में है मठ के प्रमाण (Historical evidence of Monastery )
इस बात का साक्ष्य ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखित 'त्वारीख गुरु खालसाÓ भाग प्रथम के पृष्ठ नंबर 96 में मिलती है। इतिहासकार धीर तो कहते हैं कि यहां किसी समय श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी होता रहा है, परन्तु एक बात तो स्पष्ट है कि गुरु साहिब का उड़ीसा पर बहुत प्रभाव था, जिसका अनुमान यहां आरती के उच्चारण के अलावा इस बात से ही हो जाता है कि जब दशम गुरु साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की स्थापना की तो शीश भेंट करने वाले पांच प्यारों में से एक भाई हिम्मत सिंह पुरी से ही आनंदपुर पहुंचे थे।
गुरू नानक ने पानी को किया था मीठा
फिर इससे पहले गुरु अर्जन देव जी ने उड़ीसा के भगत जयदेव जी की बाणी भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज की थी। जगन्नाथ पुरी मंदिर की कुल 60,000 एकड़ भूमि है, जिसके बारे में 15 अप्रैल, 2015 को सुप्रीम कोर्ट में फैसला मंदिर के पक्ष में हो चुका है, जिसमें मंगू मठ और पंजाबी मठ ही नहीं, बल्कि बाउली मठ भी आता है। यह बाउली मठ मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर समुद्र के निकट है। यह वह स्थल है, जहां गुरु नानक साहिब ने अपने पुरी निवास के समय निवास रखा था। यहां समुद्र के निकट होने के कारण भूमि निचला जल खारा था, क्षेत्र के लोग पीने वाले पानी के लिए परेशान थे। गुरु नानक साहिब ने अपनी तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक समझ का इस्तेमाल करते हुए यहां गहरी बाउली बनवाई, जिसका पानी मीठा और पीने योग्य था। यह बाउली बाबा नानक की क्षेत्र में महिमा का कारण बनीं।
मामला अकाल तख्त में गया
क्षेत्र के प्रमुख सिखों, जिनमें सतपाल सिंह सेठी और उड़ीसा सिख प्रतिनिधि बोर्ड के प्रधान महिन्द्र सिंह कलसी शामिल हैं, ने सेवा और समझबूझ से काम लेकर जगननाथ मंदिर ट्रस्ट तथा ओ़डिशा सरकार से यह 'बाउली साहिब मठÓ सिख कौम के लिए ले लिया है। यह मठ अधिकारिक तौर पर उड़ीसा सिख प्रतिनिधि बोर्ड तथा शिरोमणि कमेटी को सौंपा गया है, जहां उम्मीद करते हैं कि गुरु नानक देव जी के 550 वर्षीय प्रकाश उत्सव को समर्पित गुरुद्वारा साहिब स्थापित हो जायेगा। यह भी कहा जाता है कि किसी कथित संत ने पुरी मंदिर से दूर एक इमारत लेकर एक गुरुद्वारा बनाकर उसका नाम 'आरती साहिबÓ रखकर सिख इतिहास को भ्रमित करने की कोशिश भी की। मामला श्रीअकाल तख्त साहिब ने अपने हाथ में ले लिया है। कहा जाता है कि गुरुद्वारा आरती साहिब श्रीगुरुप्रबंधक समिति का हिस्सा नहीं माना जाता है। गौरतलब है कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एक सिख मां के बेटे हैं।
Published on:
09 Dec 2019 06:19 pm
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