बीकानेर में रियासतकाल से गणगौर पूजन का स्वर्णिम इतिहास रहा है। होलिका दहन के दूसरे दिन से प्रारंभ होने वाले गणगौर पूजन उत्सव के दौरान पूरा शहर गणगौर पूजन के विविध रंगों से सराबोर रहता है। नन्ही-नन्ही बालिकाएं जहां सोलह दिवसीय पूजन अनुष्ठान करती है, वहीं पूर्व बीकानेर राज परिवार की गणगौर शाही लवाजमें के साथ सवारी जूनागढ़ की जनाना ड्योढ़ी से तीज व चतुर्थी को निकालने की परंपरा है। चौतीना कुआ से गणगौर दौड़ होती है। चैत्र शुक्ल तृतीया व चतुर्थी के दिन ढड्ढा चौक में चांदमल ढड्ढा की प्राचीन गणगौर का मेला भरता है। इस गणगौर के प्रति शहरवासियों की विशेष आस्था और श्रद्धा है। नख से शिख तक स्वर्ण आभूषणों से श्रृंगारित रहने वाली इस गणगौर के दर्शन-पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर साल ढड्ढा चौक पहुंचते है।
48 घंटे तक पुख्ता सुरक्षा घेरा चांदमल ढड्ढा की गणगौर बेशकीमती आभूषणों से श्रृंगारित रहने के कारण हथियारबंद पुलिस के सुरक्षा घेरे में रहती है। यशवंत कोठारी के अनुसार हवेली के अंदर व चौक में विराजित रहने के दौरान गणगौर प्रतिमा पूरे 48 घंटे सुरक्षा के कड़े घेरे में रहती है।
भाईया के प्रति अटूट आस्था चांदमल ढड्ढा की गणगौर प्रतिमा के साथ भाईया की छोटी प्रतिमा भी विराजित रहती है। भाईया की प्रतिमा भी स्वर्ण आभूषणों से श्रृंगारित रहती है। महिलाओं में इस भाईया के प्रति भी अटूट आस्था व श्रद्धा का भाव रहता है। इसके दर्शन के लिए शहर व ग्रामीण क्षेत्र के लोग पहुंचते हैं।