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अपने बलबूते खड़ी की गोशाला, अब 500 गोवंश को मिल रहा आश्रय

-प्रेरणा: छोटे-छोटे प्रयास से बेसहारा गोवंश की समस्या का हो सकता है समाधान - अब ग्रामीणों की समिति को सौंपी कमान

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अपने बलबूते खड़ी की गोशाला, अब 500 गोवंश को मिल रहा आश्रय

अपने बलबूते खड़ी की गोशाला, अब 500 गोवंश को मिल रहा आश्रय

-दिनेश स्वामी

बीकानेर. बेसहारा गोवंश आज गांव से लेकर शहर तक की समस्या बनी हुई है। शहरों में भूख को शांत करने के लिए गाय-बछड़े और गोधे प्लास्टिक निगल रहे हैं। जो आंतों में फंसकर उसकी जान ले रहा है। वहीं ग्रामीण अंचल में खेतों में घुसने नहीं दिया जाता। कही जेबरा तार तो कहीं तार में छोड़े करंट से गोवंश घायल हो रहा है। एेसे में हजारों-लाखों निराश्रित गोवंश सड़क पर आ चुका है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति बछड़े, गोधे और बुड्ढ़ी गायों की है। एेसे हालात में निस्वार्थ भाव से संचालित गोशालाएं आशा की किरण के रूप में दिखती है। एेसा ही एक प्रयास बीकानेर के परिवार ने निजी स्तर पर गोशाला शुरू कर बेसहारा गोवंश को ठौर देने का काम किया है।

बीकानेर-कालू मार्ग पर आसेरा गांव के पास संचालित हो रही श्रीगोपाल गोशाला उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत्र है जो निराश्रित गोवंश के लिए कुछ करने का सोचते है। परन्तु खुद के पास सीमित संसाधनों को मानकर पीछे हट जाते है। गोपाल गोशाला की स्थापना 11 साल पहले बीकानेर के व्यापारी दामोदर प्रसाद सारस्वत और उनके पुत्र मनोज सारस्वत ने की। इसके लिए गांव वालों की भागीदारी रखते हुए समिति का रजिस्ट्रेशन कराया। फिर अपनी 13 बीघा कृषि भूमि पर बाड़बंदी कर 50 निराश्रित गोवंश के साथ शुरुआत की। आज इस गोशाला में 500 गाय, बछड़े, गोधे पल रहे हैं। गोशाला के खेत पड़ोसी हंसराज जाट बताते है कि वह रोजाना गोशाला में सेवा करने आते है। एेसे छोटे-छोटे प्रयास हर गांव में हो तो निराश्रित गोवंश इतनी बड़ी समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं हो सके।

माता की प्रेरणा से शुरुआत

मनोज सारस्वत बताते है कि माता गोमती देवी के आदेश पर गोशाला की स्थापना की। धीरे-धीरे आस-पास के गांवों में निराश्रित, बीमार घूमने वाले गोवंश को लाकर गोशाला में रखना शुरू किया। चारदीवारी, शैड निर्माण, पानी की खेळी, पानी की टंकियों का निर्माण, ठाकुर जी के मंदिर की स्थापना आदि कार्य आगे से आगे होते गए। ग्रामीण भी सहयोग के लिए आगे आते गए, लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया।

एम्बुलेंस की दरकार

अभी तक गोशाला को कोई बड़ी बाहरी मदद नहीं मिल रही थी। अधिकांश खर्च परिवार के सदस्य ही वहन करते थे। ग्रामीण चारा आदि दे जाते है। शेष जरूरत के हिसाब से खरीद कर लेते है। सरकार की ओर से अनुदान जरूर कुछ मिलने लगा है। अभी एक पशु एम्बुलेंस की जरूरत है। जिसकी मदद से सड़कों पर से बीमार या घायल गोवंश को गोशाला लाया जा सके। साथ ही मौजूदा गायों की तादाद 500 के पार हो जाने से चार शैड कम पडऩे लगे है। दो नए शैड बनाने की जरूरत है।

समिति की निगरानी में संचालन

दामोदर प्रसाद सारस्वत ने बताया कि कोषाध्यक्ष मालाराम, मंत्री धर्माराम ज्याणी समेत ग्रामीणों की समिति को गोशाला को सौंप रखा है। किसी से मदद मांगने नहीं जाते, जो करने आता है उसकी मदद स्वीकार करते है। ठाकुर जी के मंदिर में अमास्या को गायों के लिए गुड़ और देशी घी की लापसी बनाई जाती है। छोटे बछड़े-बछड़ी को अलग बाड़े में तथा गोधों को अलग बाड़े में रखते है। शेष गायों को अलग बाड़े में।