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विष्णुरूपी दूल्हे की निकली बारात, न दुल्हन मिली ना हुए फेरे

रियासतकालीन परम्परा    

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विष्णुरूपी दूल्हे की निकली बारात, न दुल्हन मिली ना हुए फेरे

विष्णुरूपी दूल्हे की निकली बारात, न दुल्हन मिली ना हुए फेरे

बीकानेर. रियासतकालीन परम्परा के तहत धुलंडी के दिन विष्णुरूप में दूल्हे की बारात निकली। 16 स्थानों पर दूल्हे को पोखने की रस्म हुई। लेकिन दूल्हे को ना दुल्हन मिली और ना ही फेरे हुए। दूल्हा और बारात बिना दुल्हन के फिर लौट आए। दशकों पुरानी परम्परा के तहत पुष्करणा ब्राह्मण समाज की हर्ष जाति के दूल्हे की बारात धुलंड़ी के दिन निकाली गई।

दूल्हे के घर-परिवार और समाज के लोग बाराती रूप में शामिल हुए। महिलाओं ने दूल्हे को पोखने की रस्म अदा की। विवाह के मांगलिक गीत गाए गए। बारातियों का जगह-जगह स्वागत किया। मोहता चौक आनन्द भैरव मंदिर से प्रारम्भ हुई बारात जिन मोहल्लों से होकर निकली वहां उल्लास और उमंग का माहौल रहा। पारम्परिक गीत और दोहे गाए गए।

यश हर्ष ने दूल्हे की भूमिका निभाई। हीरालाल हर्ष के अनुसार आपसी प्रेम सौहार्द और घनिष्ठ संबंधों के प्रतीक रूप में हर साल धुलंडी के दिन बारात निकाली जाती है। बारात में राधा किशन हर्ष, गिरिराज हर्ष, ओ पी हर्ष, राजेन्द्र हर्ष, श्रीकिशन हर्ष, कैलाश हर्ष, हर्ष कुमार, कुशाल चंद, मनमोहन, सुनील हर्ष, अनन्त कुमार, जगदीश, अशोक कुमार, हर्ष वद्र्धन, मनीष कुमार, बलदेव दास, विजय शंकर, लाला हर्ष, प्रेम कुमार सहित बड़ी संख्या में हर्ष जाति के बच्चों से बुजुर्ग तक शामिल हुए।