
मगरा भेड़ की ऊन ने दिलाई बीकानेरी गलीचा की पहचान
बीकानेर. भुजिया और रसगुल्ला के साथ ही बीकानेरी ऊन भी विदेशों में अपनी अलग पहचान रखती है। इसकी मुख्य कड़ी है भेड़ पालन। बीकानेर में 'मगराÓ नस्ल की भेड़ें बहुतायत में पाई जाती है। इस भेड़ की ऊन की क्वालिटी गुणवत्ता युक्त होने के कारण इसके धागे से बना गलीचा आज भी विदेशों में अपनी अलग पहचान रखता है। इस भेड़ का पालन-पोषण कर काश्तकार रोजी-रोटी कमाते हैं। ऊन उद्योग से जुड़े जानकारों की माने तो 'मगराÓ नस्ल की भेड़ भारत ही नहीं वरन विश्व की श्रेष्ठ नस्लों में शुमार है। इसके अलावा प्रदेश की मारवाड़ी व चौखला नस्ल की भेड़ की ऊन से भी गलीचा बनाया जाता है। देशभर में भेड़ों की ४२ नस्लें है, इसमें राजस्थान में आठ नस्लें है।
१०० से १२५ रुपए प्रति किलो
मगरा भेड़ की ऊन सफेद व चमकीली होती है। इसकी क्वालिटी उत्तम होने के कारण इसकी दर १०० से १२५ रुपए प्रति किलो ग्राम है। इसका धागा बीकानेर में तैयार होता है, वहीं उत्तर प्रदेश के भदौही क्षेत्र में इस धागे से गलीचा बनाया जाता है। बीकानेर में ऊन की करीब २०० से अधिक ऊन की फैक्ट्रियां है, जहां पर धागा बनाया जाता है। ऊन व्यवसाय से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से करीब ५० हजार लोगों को रोजगार मिल रहा है।
यहां होती है नस्ल सुधार
बीकानेर में केन्द्रीय भेड़-ऊन अनुसंधान संस्थान है। जहां पर भेड़ों की नस्ल सुधार का काम होता है। यहां से अच्छी नस्ल के भेड(मेढ़े) को किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं। एक से दो साल का मेढ़ा किसानों को ५ हजार रुपए में मिल जाता है। केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एच.के. नरुला ने बताया कि इस भेड़ की ऊन से तैयार सामन्य गलीचा भी १० से १२ हजार रुपए में बिकता है।
मिलना चाहिए संरक्षण
भविष्य में भेड़ की मगरा नस्ल को बचाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। यहां की भौगोलिक स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है। पानी की उपलब्धता कम होने के कारण खतरा पैदा हो सकता है। साथ ही भेड़ व्यवसाय से युवाओं को जोडऩे के लिए आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण दिए जाने की दरकार है। तब ही इसका संरक्षण होगा।
- कमल कल्ला, अध्यक्ष, राज.वूलन इंडस्ट्रीज एसोएिशन, बीकानेर
Published on:
13 Apr 2019 11:00 am
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